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हमें कौन अब तोड़ सकेगा~~~* *~~~~हम सब कच्चे धागे हैं

 


*~~~हमें कौन अब तोड़ सकेगा~~~*

*~~~~हम सब कच्चे धागे हैं~~~~*


*पहले डर कर भाग रहे थे, अभी शर्म से भागे हैं।*

*ये सपूत भारत के देखो, कितने बड़े अभागे हैं ?*

छोटा काम अगर करते तो, उन्हें झिझक खाने लगती।

आसपास की देख दशा, वो मन को सहलाने लगती।

*छोटे मोटे काम उन्हीं पर, कब्जा है मजलूमों का।*

*शानदार कपड़ा बनता है, लगे हाथ के लूमों का।*

ईंट और गारा से ले कर, सभी मसालों वाले ये।

पंचर जोड़ें करें वेल्डिंग, करते काम निराले ये।

*मौसम के अनुसार यही तो, भुट्टा भून खिलाते हैं।*

*और सिंघाड़ों को उबाल कर, कैसा रस बरसाते हैं ?*

लखटकिया बन हर पत्थर को, ये ही टाँका करते हैं।

नहीं मिला खाने को कुछ भी, तो ये फाँका करते हैं।

*गरम गरम लोहा करते हैं, उस पर चोट लगाते हैं।*

*पुरुष नहीं उनके बच्चे भी, ये करतब दिखलाते हैं।*

फ़टे हुये जूतों को सिलते, और उन्हें चमकाते हैं।

जो जितने भी पैसे दे दे, ये उसमें गम खाते हैं।

*फेरी वाले कपड़े ले कर, घूम रहे हैं गलियों में।*

*उसी उम्र के पढ़े लिखे हैं, मस्त यहाँ रँगरलियों में।*

छोटे मोटे लगे खोमचे, और बतासे पानी के।

बचपन के दिन बीत गये, अब आये दिवस जवानी के।

*पढ़े लिखे जो दलित, वही घबराते हैं इन कामों से।*

*उनको लगता जुड़े रहें वे, ऊँचे ऊँचे नामों से।*

काम अनेकों अलग अलग, भाषाओं वाले करते हैं।

पता नहीं क्यों दलित अभी भी, इन कामों से डरते हैं।

*जो इन कामों को करते हैं, ये जीवन की धारा है।*

*इसमें ही मुस्लिम समाज का, सबसे बड़ा सहारा है।*

जिस दिन काम बन्द कर देंगे, जीवन धारा टूटेगी।

बची हुयी आबादी फिर, इन महलों को ही लूटेगी।

*देख रहा है इन्हें जमाना, हम इनसे भी आगे हैं।*

*हमें कौन अब तोड़ सकेगा, हम सब कच्चे धागे हैं।*

*पहले डर कर भाग रहे थे, अभी शर्म से भागे हैं।*

*ये सपूत भारत के देखो, कितने बड़े अभागे हैं ?*


*मदन लाल अनंग*

द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।

*1-*  वैचारिक खोज बीन के आधार पर समसामयिक, तर्कसंगत और अकाट्य लेखन की प्रक्रिया *मध्यम मार्ग समन्वय समिति* के माध्यम से जारी  *2700 से अधिक लेख/रचनायें* सोशल मीडिया पर निरंतरता बनाये हुए हैं।

*2-* कृपया रचनाओं को अधिक से अधिक अग्रसारित करें।


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