*RSS-भाजपा का फर्जी राष्ट्रवाद का विष पी रहा है भारतीय समाज*
RSS-भाजपा के फर्जी राष्ट्रवाद ने देश को जिस गर्त में धकेल दिया है, उसे समझने के लिए न तो किसी रॉकेट साइंस की जरूरत है और न ही आर्थिक विशेषज्ञता की। वह साफ तौर पर दिखाई दे रहा है।
अब देश को एक बार फिर उसी खाई में धकेलने के लिए भारत और यूनाइटेड किंगडम (यूके) के बीच मुक्त व्यापार समझौता (FTA) पर कल 24 जुलाइ, 2025 को चुनाव मे फ्रॉड करके तीसरी बार PM बन बैठे मोदी लंदन में हस्ताक्षर करने वाले हैं।
यदि ऐसा हुआ तो भारत पर ईस्ट इंडिया कंपनी की नीतियों जैसे निम्नलिखित नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं—
*1)* यूके से सस्ते आयात, विशेष रूप से वस्त्र, चमड़ा और अन्य श्रम-प्रधान उत्पादों में भारतीय MSME को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है। इससे स्थानीय उत्पादकों की बाजार हिस्सेदारी और आय घटना निश्चित है।
*2)* यूके के कृषि और डेयरी उत्पादों (जैसे पनीर, डेयरी-आधारित खाद्य पदार्थ) पर आयात शुल्क हटाने से भारतीय किसानों और डेयरी उद्योग को नुकसान होगा। स्थानीय उत्पादकों को सस्ते आयातित उत्पादों से प्रतिस्पर्द्धा करने में कठिनाई होगी, जिससे उनकी आय और रोजगार पर असर पड़ेगा। भारत-अमेरिका व्यापार समझौते के संदर्भ में कृषि क्षेत्र की चिंताएँ इससे भी बढ़ेंगी।
*3)* समझौते के तहत यूके से ह्विस्की, कारें और अन्य लक्जरी सामानों पर आयात शुल्क हटाने से ये उत्पाद भारत में सस्ते होंगे। इससे भारतीय बाजार में आयातित सामानों की बाढ़ आ सकती है, जो स्थानीय निर्माताओं, विशेष रूप से ऑटोमोबाइल और आतिथ्य क्षेत्रों में, प्रतिस्पर्द्धा को प्रभावित कर सकता है।
*4)* समझौते में बौद्धिक संपदा अधिकार शामिल हैं, जिनसे भारतीय जेनेरिक दवा उद्योग और नवाचार क्षेत्र के लिए चुनौतियाँ पैदा होंगी। यूके की सख्त बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) नीतियाँ भारतीय कंपनियों पर अतिरिक्त दबाव डाल सकती हैं, विशेष रूप से दवा और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में, जहाँ पेटेंट नियम लागू होने से लागत बढ़ सकती है।
*5)* यूके में अस्थायी रूप से काम कर रहे भारतीय कामगारों और उनके नियोक्ताओं को तीन साल तक सामाजिक सुरक्षा अंशदान देने से छूट मिलेगी, जिससे वहाँ की कंपनियों को सालाना लगभग 40 अरब रुपये (463 मिलियन डॉलर) की बचत होने का अनुमान है। यानी वहाँ काम करने वाले भारतीय जो पैसा भारत भेजते हैं, उसमें कमी आएगी।
*6)* यूके की कंपनियों को भारत में सरकारी खरीद तक पहुँच मिलेगी क्योंकि भारत वहाँ के आपूर्तिकर्ताओं को गैर-संवेदनशील सरकारी निविदाओं के लिए 2 अरब रुपए तक की सीमा के साथ पहुँच प्रदान करेगा। यानी, यूके की कम्पनियाँ भारत में 2 अरब रुपये की सीमा तक सरकारी टेंडर डाल सकेंगी।
यूके के सरकारी अनुमानों के अनुसार इस समझौते से ब्रिटिश सरकार और कॉर्पोरेट को भारत के सार्वजनिक खरीद बाजार तक पहुँच मिलेगी, जिसमें लगभग 40,000 निविदाएँ शामिल हैं, जिनका मूल्य लगभग 38 अरब पाउंड प्रति वर्ष है।
*7)* ब्रिटिश सरकार को इस व्यापार समझौते से लंबी अवधि में ब्रिटेन के सकल घरेलू उत्पाद में सालाना 4.8 अरब पाउंड (6.5 अरब डॉलर) की वृद्धि होने की उम्मीद है, जिससे वहाँ के उपभोक्ताओं को भारत से सस्ते वस्त्र, जूते और खाद्य पदार्थ मिल सकेंगे।
पिछले ग्यारह सालों में चीन के साथ भारत के द्विपक्षीय व्यापार संतुलन के संदर्भ में देखा जाए तो किसी भी ईमानदार देशभक्त का दिल दहल जाएगा।
यह है RSS के सर्वश्रेष्ठ तथा आदर्श स्वयंसेवक और भाजपा के सर्वमान्य नेता मोदी का राष्ट्रवाद!
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