*संविधान - संवाद* (15) -- की अगली कड़ी

 

   *संविधान - संवाद*  (15)

          की अगली कड़ी

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मैं ठहरा रहा - "सड़क सा" 

वो "मुसाफिर सा" गुजर गए,

आर्टिकल्स (अनुच्छेदों) को देखा 

"मील का पत्थर सा"

और सफर पर निकल गए ।


मील के पत्थर पे लिखा था 

आर्टिकल (अनुच्छेद) 1,

मंजिल था "भारत" दैट इज इंडिया,

पर कमबख्त "हिन्दुस्तान" में अटक गए,

मोड़ तो कहीं न था पूरे सफर में

पर जाने कैसे रास्ता भटक गए ।


अब की बार मील का पत्थर पे लिखा था 

आर्टिकल (अनुच्छेद) 15, 

मंजिल था "विभेद का अंत"

पर कमबख्त जाति, लिंग, धर्म भेद और क्षेत्रवाद की खानदानी परम्परा में सटक गए,

दीवार तो कहीं न था पूरे सफर में 

पर जाने कैसे वे इस खूंटी पे अटक गए ।


अगले मील के पत्थर पे लिखा था 

आर्टिकल अनुच्छेद 51क (ज),

मंजिल था "मानवतावाद और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना" 

पर कमबख्त गाय, गोबर और गंगा आरती में मटक गए, 

भूखी रही इंसानियत 

और पशु सुरक्षा के नाम पर 

करोड़ों - अरबों रूपए गटक गए ।

धरी के धरी रह गई वैज्ञानिकता की सोंच 

और वैज्ञानिक भी पत्थर पे सर पटक गए ।


मील के पत्थर का अगला संकेत था 

आर्टिकल (अनुच्छेद) 38(2), 

लक्ष्य था "प्रत्येक स्तर पर आय की असमानताओं को दूर करना,"

परन्तु इन कमबख्तों ने नीतियां ही ऐसी बनाई 

कि बढ़ती गई विषमता की खाई,

करते रहे पलायन और होती रही लड़ाई 

अन्नदाता फांके खा रहे और व्यापारी लूटे मलाई।

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