99% चिवरधारी बौद्ध भिक्षुओं तथाकथित बौद्ध मठाधीश, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बौद्ध नेताओं को बौद्धों के संवैधानिक अधिकारों का कोई ज्ञान नहीं है। वे लोग डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर और बुद्ध की जयंती के नाम पर सत्ता पक्ष धारी मनुवादी हिंदुओं को मुख्य अतिथि अतिथि आमंत्रित कर समाज को धोखा देकर अपनी मात्र नेता गिरी करते हैं। और वर्षों से धर्म के नाम पर चंदा धंधे का खेल खेलते हैं। और पद और प्रतिष्ठा पाने के लिए नेतागिरी करते हैं। यही कारण है कि वर्षों से बौद्ध विरासत पर ब्राह्मण हिंदुओं ने कब्जा कर रखा है। यही कारण है की अयोध्या जो साकेत बौद्ध विरासत थी उसे पर भी न्यायालय को मोहरा बनाकर मनुवादी ब्राह्मणों ने कब्जा कर लिया है, और उस बौद्ध विरासत पर बुद्ध के हृदय स्थल उनके छाती पर राम का मंदिर निर्माण कर दिया गया है। और वर्षों से बोधगया महाबोधी बुद्ध विहार को ब्राह्मणों के कब्जे से मुक्त नहीं किया जा रहा है। इसके लिए तथाकथित बौद्ध भिक्षु बौद्ध मठाधीश बौद्ध नेता, और अंधभक्त जिम्मेदार है। कौन क्या कहता है, क्या बोलता है। उसकी परवाह नहीं करना चाहिए। भगवान बुद्ध के सत्य के राह पर चलना मानवता का काम करना है। आप बिल्कुल सत्य लिख रहे हैं। अंधभक्त फड़फड़ा रहे हैं, उन्हें फड़फड़ाने दो। आखिर आकाश लामा को 10 मई को बोधगया मुक्ति आंदोलन स्थगित करने की घोषणा क्यों करनी पड़ी थी ॽ जबकि12 मई को 12 लाख लोग बोधगया में बौद्ध पूर्णिमा के दिन शामिल होंगे ऐसाआवाहन किया गया था । अचानक ही आंदोलन स्थगित करने की घोषणा क्यों की गई ॽ आंदोलन स्थगित करने की घोषणा के वक्त आकाश लामा प्रज्ञाशील भंते और चंद्रबोधी पाटिल चंदू पाटिल दिखाई दे रहे थे। जिनका वर्षों से मनुवादी विचारधारा से ताल मेल रहा है। बोधगया महाबोधी बुद्ध विहार मुक्ति आंदोलन के को तेज धार देने वाले ओजस्वी वक्ता एक बौद्ध भिक्षु को सुनियोजित षडयंत्र रचकर जेल में डाल दिया गया है। उसे बिना आचार्य बौद्ध भिक्षु को जेल से रिहा करने के बजाय आंदोलन स्थल बोधगया को छोड़कर देश प्रदेश में सभा सम्मेलन किया जा रहा है। यह सब चंदा के धंधे का खेल खेला जा रहा है। बोधगया आंदोलन स्थल में डटे हुए बहुजन मीडिया प्रमुखों की अंदरुनी खबर के अनुसार ढाई करोड़ रूपये का चंदा का धंधा किया गया है।