संभल जाओ मंजर~~~* *~~~बदलने लगे हैं

 



*~~~~संभल जाओ मंजर~~~~*

*~~~~~~बदलने लगे हैं~~~~~~* 


*नजर का गिराना नजर का उठाना,*

*नजर का बचाना कहाँ तक चलेगा ?*

संभल जाओ मंजर बदलने लगे हैं, 

ये झूठा जमाना कहाँ तक चलेगा ?

*न जाने थे पहले न समझे थे पहले,*

*सभी भीड़ के साथ चलने लगे थे।*

गुजारा समय कुछ तो बातों में यों ही, 

नजारे सभी तो बदलने लगे थे।

*कभी रूबरू हो के जाना नहीं था,*

*हवा में ही उड़ना बहुत रास आया।*

गिरी गाज इतनी संभल भी न पाये, 

गमें दौर में कोई न पास आया।

*सभी जिन्दगी के लिये लड़ रहे थे,*

*कदम किस दिशा की तरफ बढ़ रहे थे ?*

किताबों समाचार पत्रों में देखा, 

पता चल गया झूठ ही पढ़ रहे थे।

*यही ताजगी थी न पहले पढ़ा था,*

*नया जाल किसने कहाँ पर गढ़ा था ?*

बहुत लग रहे थे अजाने से चेहरे, 

कहाँ कौन कैसे शिखर पर चढ़ा था ?

*चले थे बड़े शूरमा जैसे कितने,*

*उन्हें देख कर ही समेटा गया था।*

खड़े हो गये थे जो अवरोध बन के, 

बिना बात के ही लपेटा गया था।

*नहीं लोग पचड़े में अब पड़ रहे हैं,*

*कई हैं जो जेलों में ही सड़ रहे हैं।*

उन्हें हौसलों की जरूरत नहीं है, 

खुलेआम सड़कों पे ही लड़ रहे हैं।

*इधर हैं उधर हैं सभी बे खबर हैं,*

*कयासों में हालात गाने लगे हैं।*

अभी नींद टूटी गुलामी के पल से, 

सभी दूसरों को जगाने लगे हैं।

*खड़े पास थे वे भी हँसने लगे हैं,*

*निगाहों को उनकी भी डंसने लगे हैं।*

लगातार ऐसी हवा चल रही है, 

बहुत लोग निर्दोष फँसने लगे हैं।

*अभी तो महा जाल डाला गया है,*

*नया रास्ता ही निकाला गया है।*

गुलामों की औकात होती नहीं है, 

अँधेरे में सिक्का उछाला गया है।

*अभी कोई कीमत नहीं है हमारी,*

*हमें आजमाना कहाँ तक चलेगा ?*

सभी जान कर जान लेने को निकले, 

पुराना ठिकाना कहाँ तक चलेगा ?

*नजर का गिराना नजर का उठाना,*

*नजर का बचाना कहाँ तक चलेगा ?*


*मदन लाल अनंग*

द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।

*1-*  वैचारिक खोज बीन के आधार पर समसामयिक, तर्कसंगत और अकाट्य लेखन की प्रक्रिया *मध्यम मार्ग समन्वय समिति* के माध्यम से जारी  *2300 से अधिक लेख/रचनायें* सोशल मीडिया पर निरंतरता बनाये हुए हैं।

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