*समाज परिवर्तन की बड़ी जिम्मेदारी ओबीसी के कंधों पर----*
ओबीसी समाज के लोग अभी भी एससी के लिए ब्राह्मणों से कम नहीं हैं वे यह बात कभी समझने की कोशिश ही नहीं करते कि हम जिस नजर से एससी के लोगों को देखते हैं ब्राह्मण क्षत्रिय उसी नजर से हमें भी देखते हैं देखते ही नहीं बल्कि बोली भाषा में उसी तरह की अभद्रता स्पष्ट दिखाई देती है ।
समतावादी समाज बनाने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी ओबीसी वर्ग की है उसे एससी को खुले मन से गले लगाना होगा और उनके साथ हर प्रकार से ऐसा व्यवहार करना होगा कि उन्हें महसूस हो कि उनके साथ ओबीसी द्वारा हर प्रकार से बराबरी का व्यवहार किया जा रहा है ।
दूसरी तरफ सवर्णों को भी यह मेसेज देना होगा कि वे अपना पारंपरिक नजरिया बदलें अपनी बोली भाषा से लेकर हर प्रकार के व्यवहार में बदलाव लाएं और यह भी स्पष्ट मेसेज दिया जाना चाहिए कि अब उनके द्वारा किसी भी एससी एसटी ओबीसी का उत्पीड़न बर्दाश्त नहीं किया जायेगा।
इतना ही नहीं एससी एसटी ओबीसी को मिलकर यह फैसला करना होगा कि जाति आधारित पारंपरिक अभिवादन प्रथा गुरू जी पायलागी ,बाबू साहब जयराम जी की जैसी ऊंच नीच का भेदभाव बढ़ाने वाली
परंपरा को हमेशा हमेशा के लिए परित्याग करें।
मनु-स्मृति के आधार पर बनी इस अभिवादन प्रथा को जड़ से समाप्त करना होगा ।
ओबीसी वर्ग न किसी से जातिगत अहंकार वश प्रथम अभिवादन की अपेक्षा करे और न ही किसी की उच्चता के दंभ को संतुष्ट करने के लिए प्रथम अभिवादन करे।
नीच ऊंच छूआछूत की गंदगी को साफ करने के साथ साथ मनुवादियों द्वारा फैलाए गए बेशुमार अंधविश्वासों की गंदगी को साफ करने की जिम्मेदारी भी ओबीसी वर्ग को अपने कंधों पर उठानी होगी और पूरे समाज में खुलकर अपने समतावादी महापुरुषों फुले साहू अम्बेडकर पेरियार आदि के वैज्ञानिकता वादी विचारों का प्रचार-प्रसार करना होगा।
और खासकर एससी एसटी वर्ग के साथ बराबरी का व्यवहार करके भाईचारा स्थापित करने का कार्य युद्धस्तर पर करना होगा और मनुवादियों के दुष्प्रचार के प्रभाव से बाहर निकलकर बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर के महान विचारों को जानना और आत्मसात करना होगा उनकी और अन्य महापुरुषों की जयंती आदि में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना होगा और अपने उन महापुरुषों के सपनों का प्रबुद्ध और समृद्ध भारत बनाने हेतु पूरी ताकत से मैदान में उतरना होगा।
भारत की संस्कृति मानवता वादी समतावादी वैज्ञानिकता वादी नैतिकता वादी बौद्ध संस्कृति थी विषमता वादी अंधश्रद्धा वादी मनुवादी जिसे अब हिन्दू नाम की चादर में लपेट कर जोर शोर से प्रचारित किया जा रहा है वह भारत की संस्कृति नहीं विकृति है ओबीसी समाज को अपनी गौरवशाली बौद्ध संस्कृति को पुनर्स्थापित करने के लिए पूरी ताकत झोंकनी होगी ।
हमें यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि हमें जो कुछ भी न्याय अधिकार मिल रहा है वह समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय जैसे महान मानवीय मूल्यों पर आधारित संविधान के कारण ही मिल रहा है जो मानवीय मूल्य समतावादी बौद्ध संस्कृति की देन हैं ।
विषमता वादी, ब्राह्मण एकाधिकार वादी, मनुवादी कथित हिन्दू धर्म की नहीं।
उसमें तो चौथे दर्जे का नागरिक शूद्र बनाकर शिक्षा संपत्ति शस्त्र मान सम्मान के अधिकार से वंचित करने का ही प्रावधान है और उसी के आधार पर हजारों सालों तक हर प्रकार का शोषण करके अपाहिज बना दिया गया जिसके कारण बाबा साहेब को संविधान में आरक्षण की व्यवस्था करनी पड़ी।
जिसे खत्म करने के लिए हिन्दुत्व के नाम से सत्ताधारी मनुवादी एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। ओबीसी को शासन प्रशासन में संख्यानुपात प्रतिनिधित्व न मिले इसके लिए आज तक मनुवादियों ने ओबीसी की जनगणना नहीं होने दी ।
ओबीसी ही नहीं एससी एसटी को भी बाबा साहेब की ये बातें हमेशा याद रखनी चाहिए।
*जो समाज अपना इतिहास नहीं जानता वह भविष्य का निर्माण नहीं कर सकता*
*जो मित्र और शत्रु की पहचान न करा सके वह शिक्षा किस काम की?*
*गुलामों को गुलामी का एहसास करा दो वह अपनी बेड़ियां खुद तोड़कर फेंक देगा।*
*चन्द्र भान पाल (बी एस एस)*