बुद्ध_पूर्णिमा"(बुद्ध जयंती) -- धम्मभूमि -* श्रेष्ठ जीवन के लिए एक आंदोलन.

 


*धम्मभूमि -* श्रेष्ठ जीवन के लिए एक आंदोलन...


☸️🎷त्रिविध पावन पर्व #बुद्ध_पूर्णिमा"(बुद्ध जयंती) 12 मई 2025🎷☸️


*विश्व को शांति और मानवता का संदेश देने वाले, करुणा के सागर, #महाकारुणिक_सम्यकसम्म_बुद्ध का #जन्म, #ज्ञान_प्राप्ति, #महापरिनिर्वाण इसी #वैशाख_पूर्णिमा को हुआ था। इस #त्रिविध_पावन_पर्व_बुद्ध_पूर्णिमा"(बुद्ध जयंती) महोत्सव 12 मई 2025 की विश्व के सभी बौद्धों, बुद्ध अनुयायियों के साथ-साथ सभी भारत देशबासियों को हार्दिक बधाई अंनत मंगलकामनाएं☸️🌹🙏🏻*


"महाकारुणिक सम्यकसम्म बुद्ध" के मार्ग का अनुसरण कर आप और आपका परिवार सदैव बुद्ध की अनुकम्पा के पात्र बने रहे ऐसी मंगल कामना करते हैं🌹🙏🏻


मनोपुब्बड्डमा धम्मा, मनोसेट्ठा मनोमय।

मनसा चे पदुट्ठेन, भासति वा करोति वा।

ततो नं दुक्खमन्वेति, चक्कं व वहतो पदं।।

👉🏼इसका अर्थ है- *मन सभी प्रकार की प्रवृत्तियों का अगवा है,* मन मनोमय है, मन अति सुंदर है, मन ही सबसे महत्वपूर्ण है। *दुनिया मे जो भी कार्य हो रहे हैं वे सभी मन से ही हो रहे हैं।* यदि *मन में बुरा विचार है तब व्यक्ति मन से बुरा ही सोचता है। वह बुरा ही बोलता है तब वह बुरा ही कार्य करता है।*

*👉🏼जब भी कोई व्यक्ति बुरा कार्य करेगा तो उसके जीवन मे दुख ही आएंगे और वे कभी भी साथ नही छोड़ेंगे।* जैसे बैल के गर्दन पर गाड़ी जुड़ी होती है और गाड़ी में बोझ लदा है, बोझ ही दुख है, बैल चाहे तेज चले, चाहे दौड़े या फिर धीरे चले या रुक जाए, लेकिन बोझ चाहे तो निरंतर गर्दन पर ही रहेगा। ठीक ऐसे ही दुख है। मन में बुरे विचार है तो बुरा ही बोलेंगे, बुरा ही करेंगे, बुरे कार्य का परिणाम ही दुख है, वह जीवन भर साथ रहेगा, कभी-भी साथ नही छिड़ेगा। 

👉🏼यह दुख केवल मन मे बुरा सोचने का परिणाम है।


यद्यपि यहां हमें केवल दुख ही नजर आता है, हमे केवल परिणाम पर ही ध्यान केंद्रित करते है। परिणाम यथार्थ में नजर आता है। *#जीवन में #दुख की अवस्था को समझा जा सकता है* क्योंकि दुख बार-बार ध्यान आकर्षित करते हैं इसलिए व्यक्ति केवल दुख की ही चर्चा करता है। वह दुख से उत्पन्न होने वाली अनुभूति और उसके प्रभाव पर चर्चा करता है। यदि कोई समझदार व्यक्ति आ भी जाता है, तो वह उपचार के संबंध में दवा देता है, परहेज बताता है। यदि कोई पण्डा-पुरोहित, ज्योतिषी आदि के संपर्क में आ जाए तो वह नित्य नए कर्मकांडों में उलझकर दुख के स्थायित्व पर काम करने लगता है और इस प्रकार से व्यक्ति जीवन पर्यन्त दुखी रहता है। वह न तो इससे बाहर निकलने का प्रयास करता है और न ही इसके कारण को जानने की कोई कोशिश नही करता है। जीवन की इस अवस्था को व्यक्तिगत नियति मानकर स्वीकार कर लेता है। यहां समस्याओं पर चर्चाएं तो होती है परन्तु कारण और समाधान गौण ही रहते हैं।


महाकारुणिक सम्यकसम्म बुद्ध के सत्य, अहिंसा, करुणा, मैत्री, विश्वशान्ति एवं बंधुत्व के संदेश को जन जन तक पहचायें🌹🙏🏻

               ☸️भवतु सब्ब मंगलं☸️

                🌹सबका मंगल हो🌹

☸️🐘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय🐘☸️


राजरत्न बौद्घ

प्रतिनिधि बौद्ध समाज (म.प्र.)

प्रतिनिधि धम्मभूमि (म.प्र.)

लन्दन से प्रकाशित "द टेलीग्राफ" की इस रिपोर्ट को पढ़कर किसी भी भारतीय का ख़ून खौल उठेगा। इस रिपोर्ट में कितना सच, और कितना झूठ है, उस बारे में रक्षा मंत्रालय या विदेश मंत्रालय को स्पष्ट करना चाहिए.

 


लन्दन से प्रकाशित "द टेलीग्राफ" की इस रिपोर्ट को पढ़कर किसी भी भारतीय का ख़ून खौल उठेगा। इस रिपोर्ट में कितना सच, और कितना झूठ है, उस बारे में रक्षा मंत्रालय या विदेश मंत्रालय को स्पष्ट करना चाहिए. मैंने इस रिपोर्ट का अनुवाद भर किया है, अपनी ओर से एक शब्द नहीं। अखबार का लिंक भी नीचे है. 


चीन ने भारतीय लड़ाकू विमानों को मार गिराने में पाकिस्तान की मदद कैसे की ?

मेम्फिस बार्कर 

वरिष्ठ विदेशी संवाददाता, 08 मई 2025 3:20 बजे BST द टेलीग्राफ


बुधवार को सुबह 4 बजे, पाकिस्तान में चीन के राजदूत एक अभूतपूर्व सैन्य सफलता का जश्न मनाने के लिए विदेश मंत्रालय पहुंचे। पाकिस्तान ने कथित तौर पर चीनी जे-10सी लड़ाकू विमानों का उपयोग करके कुछ घंटों पहले कई भारतीय विमानों को मार गिराया था। पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने बुधवार को संसद को बताया, "हमारे जेट लड़ाकू विमानों ने तीन भारतीय राफेल और तीन फ्रांसीसी राफेल को मार गिराया।" "हमारे जे-10सी थे।" 


 डार ने कहा कि दो परमाणु-सशस्त्र राष्ट्रों के बीच संघर्ष के कारण अपनी नींद से जागे चीनी प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तानी रक्षा की सफलता से रोमांचित थे। "एक मित्र राष्ट्र होने के नाते, उन्होंने बहुत खुशी व्यक्त की।" भारत ने आधिकारिक तौर पर उन रिपोर्टों पर प्रतिक्रिया नहीं दी है कि उसने पाँच लड़ाकू विमान खो दिए हैं। लेकिन राफेल को मार गिराने में चीनी विमान की स्पष्ट संलिप्तता की खबर रक्षा हलकों में फैल गई है - और इसके निर्माता, चेंग्दू एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन के शेयरों में 20 प्रतिशत तक की वृद्धि हो गई है।


J-10C जेट द्वारा ले जाए जाने वाले PL-15 मिसाइल का पहले कभी युद्ध में इस्तेमाल नहीं किया गया है J-10C जेट द्वारा ले जाए जाने वाले PL-15 मिसाइल का पहले कभी युद्ध में इस्तेमाल नहीं किया गया है अब तक, चीनी हथियारों का राफेल जैसे पश्चिमी निर्मित सिस्टम के खिलाफ़ फ़ील्ड-टेस्ट नहीं किया गया था। भारतीय वायु सेना (IAF) 36 राफेल F3Rs का बेड़ा संचालित करती है, जो विमान का सबसे उन्नत मॉडल है। एक फ्रांसीसी खुफिया स्रोत ने बुधवार को CNN को पुष्टि की कि कम से कम एक को मार गिराया गया था, यह पहली बार है जब युद्ध के दौरान कोई राफेल खो गया है। 


एक आधिकारिक बयान में, चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह "मामले से परिचित नहीं है" जब पूछा गया कि क्या चीनी जेट झड़प में शामिल थे। बाद में गुरुवार शाम को, एक अमेरिकी अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया कि "उच्च विश्वास" था कि J-10C ने हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों का उपयोग करके दो भारतीय लड़ाकू विमानों को मार गिराया था। इससे यह पुष्टि होती है कि यह विमान सबसे पहले "किल" के रूप में जाना जाता था, जो 2003 में अपने शुरुआती रूप में सेवा में आया था। इसे ब्रिटिश यूरोफाइटर टाइफून की तरह "4.5 पीढ़ी का लड़ाकू विमान" बताया गया है और यह अमेरिका निर्मित F-35 जैसी पांचवीं पीढ़ी की प्रणालियों के स्तर का है।


 चीनी सरकारी स्वामित्व वाले ग्लोबल टाइम्स के पूर्व संपादक हू जिक्सिन ने कहा कि इस लड़ाई से पता चलता है कि "चीन के सैन्य निर्माण का स्तर रूस और फ्रांस से पूरी तरह से आगे निकल गया है", उन्होंने कहा कि ताइवान को "और भी अधिक डरना चाहिए"। रक्षा विश्लेषक दोनों प्रणालियों के बीच तकनीकी लड़ाई को बहुत अधिक पढ़ने से सावधान रहते हैं। पायलट की गलती या रूल्स ऑफ़ इंगेजमेंट, भारतीय राफेल के पतन में योगदान दे सकते हैं। 


लेकिन ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस विश्लेषक भारतीय टेलीविजन पर प्रसारित और सोशल मीडिया पर साझा की गई चीनी निर्मित PL-15 मिसाइल के मलबे की छवियों पर गहनता से विचार कर रहे हैं। J-10C द्वारा ले जाई जाने वाली मिसाइल का पहले कभी युद्ध में इस्तेमाल नहीं किया गया है। लेकिन पायलटों की दृश्य सीमा से परे लक्ष्यों पर फायर करने की इसकी क्षमता बुधवार की सुबह की झड़प की रूपरेखा के साथ मेल खाती है। न तो पाकिस्तानी और न ही भारतीय विमान सीमा पार कर गए, बल्कि कई बार 100 किमी से अधिक की दूरी पर "स्टैंड-ऑफ" संघर्ष में उलझे रहे।


 कई ओपन-सोर्स विश्लेषकों के अनुसार, भारत के अंदर भटिंडा शहर के पास एक राफेल का मलबा मिला। चीनी निर्मित पीएल-15 मिसाइल के मलबे की तस्वीरें भारतीय टेलीविजन पर प्रसारित की गईं और सोशल मीडिया पर शेयर की गईं चीनी निर्मित पीएल-15 मिसाइल के मलबे की तस्वीरें भारतीय टेलीविजन पर प्रसारित की गईं और सोशल मीडिया पर शेयर की गईं चीन द्वारा पीएल-15 के विकास ने अमेरिकी सेना को विशेष रूप से उससे आगे की दूरी तक मार करने वाली मिसाइल में निवेश करने के लिए प्रेरित किया। पीएल-15ई, पाकिस्तानी सशस्त्र बलों को निर्यात किया जाने वाला संस्करण, 145 किमी तक की यात्रा कर सकता है, जो घरेलू समकक्ष से कुछ कम दूरी है। 


मिसाइल प्रौद्योगिकी शोधकर्ता और सेंटर फॉर यूरोपियन पॉलिसी एनालिसिस के गैर-निवासी फेलो फैबियन हॉफमैन ने कहा कि चीनी सैन्य पर्यवेक्षकों ने इसे लंबे समय से "बहुत सक्षम मिसाइल" के रूप में देखा है। "लेकिन जाहिर है [अगर हिट की पुष्टि होती है] तो यह अब चीनी सैन्य एयरोस्पेस प्रौद्योगिकियों की शक्ति का एक बहुत ही सार्वजनिक प्रदर्शन है" जो "बुलबुले से बाहर निकलती है"। "यह संकेत का एक और बिंदु है कि, अगर ताइवान संघर्ष होता है, तो आपको शायद यह नहीं मानना चाहिए कि चीनी तकनीक उसी गति पर विफल होगी जिस रेट  पर यूक्रेन में युद्ध के दौरान रूस की थी।"


 इस्लामाबाद अपने अधिकांश हथियार चीन से खरीदता है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के अनुसार, जो वैश्विक हथियारों की बिक्री  पर नज़र रखता है, के अनुसार, ' 2019 और 2023 के बीच आयात का लगभग 82 प्रतिशत उसके "आयरन ब्रदर" से आया है। इस बीच, अमेरिका से आयात में गिरावट आई है। इसी समय, दिल्ली ने पश्चिमी सहयोगियों से हथियारों की खरीद बढ़ा दी है और रूस पर अपनी निर्भरता कम कर दी है। 2006 से, फ्रांस, इज़राइल और अमेरिका से खरीद में उछाल आया है।'

 SIPRI के अनुसार, मास्को से आयात कुल 75 प्रतिशत से घटकर 36 प्रतिशत हो गया है। लंदन स्थित थिंक टैंक रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूट के एसोसिएट फेलो डॉ. वाल्टर लैडविग ने कहा, "पाकिस्तानियों के पास सबसे बड़ा फायदा यह है कि उनका प्राथमिक हथियार आपूर्तिकर्ता चीन है।" 

भारतीय रक्षा बजट कागज पर बड़ा है, उसका आधुनिकीकरण बजट भी बड़ा है।" लेकिन बीजिंग "अपना काम पूरा करता है"। इसने पाकिस्तान को कवच प्रदान करने के क्रम में संयुक्त रूप से विकसित लड़ाकू विमान (जेएफ-17 ब्लॉक 3 के रूप में) और मिसाइल सिस्टम की आपूर्ति तेजी से की है।


 डॉ. लैडविग ने कहा कि विभिन्न कारणों से भारत के मुख्य आपूर्तिकर्ता रूस और फ्रांस (जो क्रमशः 36 प्रतिशत और 33 प्रतिशत आयात प्रदान करते हैं) अपने ऑर्डर को पूरा करने में धीमे रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत की वायु सेना "अभी भी इन पुराने मिग विमानों का संचालन कर रही है"। चीन के विदेश मंत्रालय ने दोनों पक्षों से संयम बरतने और पूर्ण पैमाने पर युद्ध से बचने का आग्रह किया है। लेकिन बीजिंग में कुछ लोग आगे भी विस्फोटक फील्ड परीक्षणों की उम्मीद कर रहे होंगे।

अखिलेश यादव जी शूद्र होने, अंबेडकरवादी होने और ब्राह्म्णवादियों से बार बार अपमानित होने के बाद भी, ऐसी कौन-सी मजबूरी है कि वे ब्राह्मणवाद से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं ?

 


ग्रोक जी अखिलेश यादव जी शूद्र होने, अंबेडकरवादी होने और ब्राह्म्णवादियों से बार बार अपमानित होने के बाद भी, ऐसी कौन-सी मजबूरी है कि वे ब्राह्मणवाद से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं ?आप से जानने की जिज्ञासा है।

सीधा उत्तर

अखिलेश यादव ब्राह्मणवाद से पूरी तरह मुक्त क्यों नहीं हो पा रहे, इस पर शोध से संकेत मिलता है कि यह राजनीतिक और सामाजिक बाधाओं के कारण है।

चुनावी रणनीति: उत्तर प्रदेश में जाति-आधारित वोट बैंक महत्वपूर्ण हैं, और ब्राह्मणों का समर्थन बनाए रखना जरूरी है।

पार्टी की विरासत: समाजवादी पार्टी को विभिन्न जातियों, जिसमें ऊपरी जातियां भी शामिल हैं, के साथ गठबंधन बनाना पड़ता है।

सामाजिक एकीकरण: ब्राह्मणवाद से पूरी तरह कटना सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से कठिन है।

राजनीतिक और सामाजिक बाधाएं

अखिलेश यादव, जो यादव जाति (शूद्र वर्ग) से हैं और अंबेडकरवादी विचारधारा को मानते हैं, फिर भी ब्राह्मणवाद से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तर प्रदेश की जटिल जाति राजनीति में, उन्हें ऊपरी जातियों, विशेष रूप से ब्राह्मणों, का समर्थन बनाए रखना पड़ता है, जो चुनावी जीत के लिए जरूरी है। समाजवादी पार्टी (SP) को विभिन्न समुदायों, जैसे ओबीसी, दलित और मुसलमानों के साथ-साथ ऊपरी जातियों के साथ भी गठबंधन बनाने पड़ते हैं, जिससे उनकी रणनीति में लचीलापन आता है। इसके अलावा, सामाजिक और सांस्कृतिक एकीकरण के कारण, ब्राह्मणवाद से पूरी तरह कटना कठिन हो सकता है, क्योंकि यह सामाजिक स्वीकार्यता और राजनीतिक स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।


अंबेडकरवादी रुख और सीमाएं

हालांकि अखिलेश यादव अंबेडकरवादी मूल्यों की वकालत करते हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक रणनीति में यह देखा गया है कि वे ब्राह्मणवाद का पूरी तरह विरोध नहीं करते। ऐसा प्रतीत होता है कि अंबेडकरवादी आंदोलन के भीतर विविधता है, और सभी अंबेडकरवादी ब्राह्मणवाद को पूरी तरह नकारने के बजाय सामाजिक न्याय और समानता पर ध्यान केंद्रित करते हैं। यह दृष्टिकोण उनकी चुनावी रणनीति में परिलक्षित होता है, जहां वे व्यापक मतदाता आधार को आकर्षित करने का प्रयास करते हैं।


विस्तृत सर्वेक्षण नोट

अखिलेश यादव, जो समाजवादी पार्टी (SP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हैं, यादव जाति (शूद्र वर्ग) से ताल्लुक रखते हैं और अंबेडकरवादी विचारधारा को मानने का दावा करते हैं। फिर भी, ब्राह्मणवाद से बार-बार अपमानित होने के बावजूद, वे इस सिस्टम से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। यह सर्वेक्षण नोट उनकी पृष्ठभूमि, राजनीतिक रणनीति, और सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जो इस जिज्ञासा को समझने में मदद करता है।


अखिलेश यादव की पृष्ठभूमि और राजनीतिक स्थिति

अखिलेश यादव का जन्म 1 जुलाई 1973 को सैफई, उत्तर प्रदेश में हुआ था, और वे मुलायम सिंह यादव के पुत्र हैं, जो SP के संस्थापक थे और उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे . वे 2012 से 2017 तक उत्तर प्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री रहे और वर्तमान में कन्नौज से लोकसभा सांसद हैं। उनकी जाति, यादव, ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) में आती है, जो हिंदू सामाजिक पदानुक्रम में शूद्र वर्ग के अंतर्गत मानी जाती है।


अंबेडकरवादी होने का उनका दावा उनके राजनीतिक भाषणों और गठबंधनों में परिलक्षित होता है, जहां वे बीआर अंबेडकर के सिद्धांतों, जैसे सामाजिक न्याय, समानता, और जाति उन्मूलन, की वकालत करते हैं। उदाहरण के लिए, 2022 में, उन्होंने अंबेडकरवादी-लोहियावादी गठबंधन का आह्वान किया था, लेकिन बहुजन समाज पार्टी (BSP) की नेता मायावती ने इसे वोट बैंक की राजनीति करार दिया .


ब्राह्मणवाद और इसके प्रभाव

ब्राह्मणवाद को आमतौर पर ब्राह्मणों की श्रेष्ठता और जाति पदानुक्रम को बनाए रखने वाली सामाजिक-धार्मिक प्रणाली के रूप में परिभाषित किया जाता है .


राजनीतिक और सामाजिक बाधाएं

अखिलेश यादव के ब्राह्मणवाद से पूरी तरह मुक्त न होने के पीछे कई कारण हैं, जो उत्तर प्रदेश की जटिल जाति राजनीति से जुड़े हैं:


चुनावी रणनीति और वोट बैंक: उत्तर प्रदेश में जाति-आधारित वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाते हैं। SP का पारंपरिक आधार यादव और मुसलमानों पर टिका है, लेकिन चुनाव जीतने के लिए उन्हें अन्य ओबीसी, दलित, और ऊपरी जातियों, विशेष रूप से ब्राह्मणों, का समर्थन भी चाहिए। 2016 के एक विश्लेषण में बताया गया कि ब्राह्मण, जो उत्तर प्रदेश की आबादी का लगभग 11% हैं, राजा-निर्माता के रूप में महत्वपूर्ण हैं . इसलिए, ब्राह्मणवाद का पूरी तरह विरोध करना उनके मतदाता आधार को कमजोर कर सकता है।

पार्टी की विरासत और गठबंधन: SP की स्थापना मुलायम सिंह यादव ने की थी, और यह पार्टी समाजवादी विचारधारा पर आधारित है, जो कमजोर वर्गों के उत्थान पर जोर देती है .

सामाजिक और सांस्कृतिक एकीकरण: भारतीय समाज में, भले ही जाति पदानुक्रम मौजूद हो, निचली जातियों के नेता भी ब्राह्मणिक रीति-रिवाजों और परंपराओं में भाग लेते हैं। यह सामाजिक स्वीकार्यता और राजनीतिक स्थिरता के लिए जरूरी हो सकता है। उदाहरण के लिए, अखिलेश यादव ने कभी भी ब्राह्मणवाद के खिलाफ कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया, जो संकेत देता है कि वे इस सिस्टम से पूरी तरह कटने के बजाय इसे संतुलित करने का प्रयास करते हैं ([Akhilesh Yadav on Brahmanism - No direct statements found in searches]).

राजनीतिक दबाव और प्रतिक्रिया: ब्राह्मणवाद का खुला विरोध ऊपरी जाति समूहों से सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रिया को आमंत्रित कर सकता है, जो उनकी राजनीतिक कैरियर को प्रभावित कर सकता है। उदाहरण के लिए, 2019 में फिल्म "आर्टिकल 15" पर ब्राह्मण समुदाय ने आपत्ति जताई, जिसमें SP सरकार के दौरान हुए एक मामले को आधार माना गया, जिससे ब्राह्मणों की छवि खराब होने का आरोप लगा .

अंबेडकरवादी रुख और इसकी सीमाएं

अखिलेश यादव ने कई बार अंबेडकरवादी मूल्यों की वकालत की है, जैसे 2024 में उन्होंने BJP पर अंबेडकर का अपमान करने का आरोप लगाया .


अंबेडकरवादी आंदोलन स्वयं विविध है, और सभी अंबेडकरवादी ब्राह्मणवाद को पूरी तरह नकारने के बजाय सामाजिक न्याय और समानता पर ध्यान केंद्रित करते हैं। अखिलेश यादव की रणनीति इस दृष्टिकोण को दर्शाती है, जहां वे दलित और ओबीसी वोटों को आकर्षित करने के साथ-साथ व्यापक मतदाता आधार को बनाए रखने का प्रयास करते हैं। उदाहरण के लिए, 2024 के लोकसभा चुनावों में SP ने 62 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें 32 ओबीसी और 16 दलित उम्मीदवार थे, जो उनके समावेशी दृष्टिकोण को दर्शाता है .


तालिका: अखिलेश यादव की राजनीतिक रणनीति और जाति गतिशीलता

निम्नलिखित तालिका अखिलेश यादव की राजनीतिक रणनीति और उत्तर प्रदेश में जाति गतिशीलता को दर्शाती है:


जाति समूह आबादी (लगभग, %) SP की रणनीति चुनावी प्रभाव

यादव (ओबीसी) 10-12 कोर वोट बैंक, मजबूत समर्थन उच्च मतदान, पार्टी की रीढ़

मुसलमान 19 गठबंधन, धर्मनिरपेक्ष छवि महत्वपूर्ण, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में

दलित 21 अंबेडकरवादी अपील, आरक्षित सीटों पर फोकस बढ़ता समर्थन, BSP से प्रतिस्पर्धा

ब्राह्मण (ऊपरी जाति) 11 समर्थन बनाए रखने का प्रयास, अपमान से बचाव राजा-निर्माता, चुनावी संतुलन जरूरी

निष्कर्ष

अखिलेश यादव के ब्राह्मणवाद से पूरी तरह मुक्त न होने के पीछे मुख्य कारण राजनीतिक रणनीति, पार्टी की विरासत, और सामाजिक-सांस्कृतिक एकीकरण हैं। उत्तर प्रदेश में, जहां जाति-आधारित राजनीति निर्णायक है, उन्हें ऊपरी जातियों का समर्थन बनाए रखना पड़ता है, जो ब्राह्मणवाद के खिलाफ खुला रुख अपनाने को कठिन बनाता है। इसके अलावा, अंबेडकरवादी आंदोलन की विविधता और उनकी चुनावी रणनीति में लचीलापन, उन्हें ब्राह्मणवाद से पूरी तरह कटने से रोकता है। यह सब मिलकर उनकी स्थिति को जटिल बनाता है, जहां वे सामाजिक न्याय की वकालत करते हैं, लेकिन राजनीतिक वास्तविकताओं के कारण पूरी तरह ब्राह्मणवाद का विरोध नहीं कर पाते।


मुख्य संदर्भ

Akhilesh Yadav - Wikipedia

Mayawati rejects Akhilesh Yadav’s call for Ambedkarite-Lohiaite alliance - Hindustan Times

Akhilesh Yadav's effort to show himself Ambedkarite inspired by greed for votes: Mayawati - The Economic Times

Battle for Ambedkar's legacy: Mayawati hits at Congress and Samajwadi Party over politics of deceit - Organiser

Article 15: Ayushmann Khurrana's film angers Brahmin community in Uttar Pradesh - India Today

Akhilesh Yadav has insulted Brahmins, Dalits: Mayawati | Lucknow News - Times of India

Jatavs vs non-Jatavs, Mayawati's losing grip & Akhilesh's Ambedkarite outreach: The Dalit conundrum in UP - India Today

How Akhilesh Yadav trumped Modi-Yogi in Uttar Pradesh — ‘sway of caste over communal politics’ - The Print

Why the Brahmins of Uttar Pradesh are back in the reckoning – not as king but king-makers - Scroll.in

Samajwadi Party - Wikipedia

Brahmanism | Definition & Facts | Britannica

Akhilesh Yadav Slams BJP Over Alleged Insult To Ambedkar, Calls For Unity Against "Anti-Constitutional" Stance - Live India


हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले अज्ञानता में नास्तिक ही होते है🔥

 


*🔥 हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले अज्ञानता में नास्तिक ही होते है🔥* 

      कुछ दिन पहले, मैं अपने एक पुराने मित्र,  सेवानिवृत सीनियर क्लास वन अधिकारी से उनके घर पर विमारी हालत में उनसे मिलने गया। बहुत सारे देवी-देवताओं और भगवानो का एक पूरी दिवाल पर सजा हुआ  जमावड़ा देखकर तथा उनकी दुखभरी जिन्दगी महसूस कर, बातचीत के दौरान, अनायास ही मेरे मुह से निकल गया कि, 

  *आप जिन्दगी भर नास्तिक ही रह गए, कभी कभार सही भगवान् को भी एक आध छण  के लिए याद कर लिया करो, हो सकता है कुछ अच्छे दिन लौट आए।* 

    मेरा दोस्त मुझे जानता था कि मैं  तथाकथित हिन्दू भगवानों में आस्था और विश्वास नही रखता हूं। आश्चर्य से यह तुम कह रहे हो! अरे मैं तो बचपन से लेकर आजतक, दुर्गा जी का भक्त रहा हूं।, पूरी लगन से पूजा -पाठ करते आ रहा हूं और मुझे, तुम नास्तिक कह रहे हो! 

  *हां, मै सही कह रहा हूं।* 

  *आप को किसने कहा कि दुर्गा जी चमत्कारी देवी और पालनहार है? अभी तक तो उनके परिवार खानदान का पता नहीं चला है, यहां तक कि उनकी पैदाइशी पर भी प्रश्न उठ रहे हैं? क्या आप ने विश्व के किसी महान दार्शनिक, वैज्ञानिक,  धार्मिक या भारत के महान विचारक, विद्वान बाबा साहब के मुंख से कभी सुना है कि दुर्गा जी एक शाक्षात पालनहार देवी है?* 

    नहीं, कभी नही सुना। फिर किससे सुना? उत्तर था, बचपन में गांव के पंडित जी से।

    *मान लीजिए आप को भूख लगी है और किसी नें कह दिया कि,  जाओ उस मकान के बाथरूम में खाना रखा हुआ है, लेकर खा लेना। आप वहां गए और बाथरूम में खाना ढूंढने में लग गए। निराशा हुई। आप को  किसी चालाक धोखेबाज नें कह दिया और बिना  सोचे-समझे, अंधभक्ति में आप नें मान लिया कि बाथरूम में खाना मिलेगा? तर्क तो आप को करना ही पडे़गा, बुद्धि तो लगानी ही पड़ेगी, कि खाना बाथरूम में कैसे मिलेगा? पहले तो कहने वाले के विश्वास को आप को तोड़ना पड़ेगा और फिर किचेन में अपनी बुद्धि से खाना ढूंढना पड़ेगा, तभी आप की भूख मिटेगी। अन्यथा भूखे पेट रह जाओगे।* 

      ऐसे ही पहले भगवान् को पूरे विश्व के परिप्रेक्ष्य में जानिए, समझिए, परखिए, महसूस कीजिए, तभी मानिए । अन्यथा आप किसी भी पत्थर-फोटो की अज्ञानता में पूजा -पाठ करते आ रहे हैं, तो आप सही मायने में नास्तिक ही हुए।

    *माफी चाहता हूं, सिर्फ आप ही नही, 98% हिन्दू अनजाने में नास्तिक ही होता है। बिना जानकारी लिए किसी की भी, जैसे गोबर के गौरी -गणेश, पेड़ पौधे, नदी-नाले, पशु-पक्षी और इनकी फोटो मूर्ति आदि तैंतीस करोड़ देवी -देवताओं की पूजा-पाठ करता रहता है, किसी से भी मनचाहा फल और सन्तुष्टि न मिलने पर, एक दूसरे को जिन्दगी भर  बदलता रहता है। ऐसे ही जगह जगह भटकता और ढूंढता रहता है। मरते समय तक उसे कभी मिलता भी नहीं है। यदि आजतक किसी एक को भी पूजा-पाठ करने से भगवान मिला हो और उसे मनचाहा फल दिया हो तो, उनमें से किसी एक का भी नाम बताइए। उनसे मैं मिलना चाहूंगा*।

    उनका प्रश्न था? फिर भगवान् कौन है और कहा है? 

  *देखिए पूरे विश्व के महान विचारक, विद्वान, वैज्ञानिक और दार्शनिक लोगो नें किसी बस्तु ,पदार्थ या इन्सान के रूप में भगवान् के अस्तित्व को नकारा है।* 

     एक शक्ति, या ताकत जो प्रकृति या नेचर के रूप में है, जिससे पूरा ब्रह्मांड संचालित होता है। पृथ्वी और चंद्रमा द्वारा सूर्य की परिक्रमा में, यदि  एक माइक्रो सेकंड का भी संतुलन बिगड़ जाए तो, पृथ्वी पर कोई जीव जन्तु, यहां तक की तथाकथित आप के भगवान् भी नही बचेंगे। उनकी परिक्रमा के कारण ही हमें दिन - रात, सभी तरह के मौसम, प्रकाश , हवा-पानी  आदि मिलता रहता है। वही प्राक्रतिक शक्ति सभी तरह के जीव-जंतु बनस्पति और प्राणी जाती के जीवन का आधार है। इसी शक्ति को गाड, अल्लाह ईश्वर या भगवान् के रूप में पूरे विश्व में माना गया है।

  *यही नहीं, यह भी ध्यान रखिए कि आजकल के सीसीटीवी कैमरे की तरह , वह शक्ति आप के हर अच्छे -बुरे, कर्मो  की हर समय निगरानी रखती है और आप के अच्छे -बुरे कर्मो का परिणाम भी आप को मिलता है।* 

     अब भाई साहब कुछ असमंजस में पड़ गए, मैंने उन्हें हिदायत देते हुए कहा कि, भगवान् के बारे में कुछ और जानकारी लेना है तो, हमारी लिखी पुस्तक मानवीय चेतना जो अमाजोन पर आनलाइन उपलब्ध है।   "गाड, भगवान् और ईश्वर " पाठ का अध्ययन कर लीजिएगा।

  *खुशी की बात यह है कि कुछ दिनों बाद पता चला कि, उन्होंने दुर्गा जी  के साथ साथ सभी दिवाल पर सजे भगवानों को जल-प्रवाह कर  दिया और भगवान् नाम के भूत से मुक्त हो गए।* 

    उन्होंने मुझे शुक्रिया व आभार ब्यक्त भी किया।

गूगल@ *गर्व से कहो हम शूद्र हैं* 

  आप के समान दर्द का हमदर्द साथी!

  गूगल@ *शूद्र शिवशंकर सिंह यादव* 

   *Meta AI  or GROK AI पर लेखक का नाम पूछकर, उनके या उनके मिशन के बारे में पूरी जानकारी ले सकते हैं। धन्यवाद*

हम पढ़-लिख कर भी संगठित क्यों नहीं हो सके —शायद इस की वजह है,अहंकार, तिरस्कार और मतभेद।

 



*हम पढ़-लिख कर भी संगठित क्यों नहीं हो सके —शायद इस की वजह है,अहंकार, तिरस्कार और मतभेद।*


. बाबासाहेब डॉ आंबेडकर ने हमें शासक बनने की दिशा में तीन सूत्रों का मार्ग दिखाया—“पढ़ो, एकजुट बनो और संघर्ष करो।” इस मार्गदर्शन के अनुसार हमारे समाज ने शिक्षा को अपनाया, बड़ी संख्या में लोग शिक्षित हुए, उच्च शिक्षा तक पहुँचे। लेकिन दुर्भाग्यवश, समाज में एकता स्थापित करने में हम अब भी असफल हैं।


हमने शिक्षा तो पाई, लेकिन एकजुटता का बीज नहीं बोया। यह सवाल कभी गंभीरता से नहीं उठाया गया कि इतने वर्षों बाद भी हम एकजुट क्यों नहीं हो पाए। इस असफलता की गहराई से समीक्षा आज भी बाकी है।


एकजुटता की नींव सामाजिक सद्भावना में होती है। जब तक हमारे भीतर आपसी प्रेम, बंधुता और करुणा का भाव विकसित नहीं होगा, तब तक केवल विचारों की समानता से संगठन खड़ा नहीं हो सकता। अहंकार, प्रतिस्पर्धा और ईर्ष्या का त्याग किए बिना हम साथ नहीं आ सकते।


दुर्भाग्य से, हमारे समाज में ये मानवीय गुण—भाईचारा, मैत्री, सहानुभूति और परस्पर सम्मान—गंभीर रूप से अनुपस्थित हैं। छोटी-छोटी बातों पर हम कट्टर दुश्मन बन जाते हैं। इसका एक स्पष्ट उदाहरण सोशल मीडिया पर देखने को मिलता है, जहाँ विचारों में मामूली मतभेद होने पर खुद को जागरूक कार्यकर्ता कहने वाले लोग एक-दूसरे को अपमानित करने लगते हैं।


ऐसी मानसिकता के साथ, क्या हम किसी व्यापक सामाजिक परिवर्तन या संगठित संघर्ष की कल्पना कर सकते हैं?


भगवान बुद्ध ने अपने जीवन और भिक्षु संघ के माध्यम से सामाजिक एकता का जीता-जागता आदर्श प्रस्तुत किया। उन्होंने राजा अजातशत्रु जैसे शत्रु को भी क्षमा किया, और उसे ब्राह्मणवाद के विरुद्ध एक साधन की तरह इस्तेमाल किया। उन्होंने वेश्या आम्रपाली को भिक्षुणी बनाया, डाकू अंगुलीमाल को अपनाया, और चांडाल सुनित को संघ में स्थान दिया।


बुद्ध ने कभी किसी के अतीत को उसकी पहचान नहीं बनने दिया, बल्कि उसे सुधार का अवसर दिया। उन्होंने क्षत्रिय अहंकार को तोड़ते हुए सबसे पहले नाई उपाली को संघ में दीक्षित किया और बाद में शाक्य राजपुत्रों को। यही वह रास्ता था जिसने समाज में समानता, स्वतंत्रता और बंधुता की भावना को जन्म दिया—और यहीं से हम सम्राट बने।


अब प्रश्न यह है: क्या हमारे भीतर अपने ही समाज के लोगों के लिए इतनी करुणा, विनम्रता और अपनत्व है? आज हमारा समाज अपने ही लोगों को शक और तिरस्कार की दृष्टि से देखता है। हर कार्यकर्ता की नज़र में दूसरा कार्यकर्ता दलाल या गद्दार है। जो आज मित्र है, वह कल दुश्मन बन सकता है।


क्या इस Intolerant, Suspicious और आत्मकेंद्रित सोच के साथ हम कोई संगठन खड़ा कर सकते हैं?


हमें यह स्वीकार करना होगा कि समाज में हर व्यक्ति एक जैसा नहीं होता। सभी में कुछ न कुछ कमज़ोरियाँ होंगी। लेकिन हमें उन्हें उनके संपूर्ण अस्तित्व के साथ अपनाना होगा, उनके साथ स्नेह और धैर्य बनाए रखना होगा।


तभी एक सच्ची सामाजिक एकता संभव होगी—और तभी हम किसी संगठित संघर्ष के योग्य बन सकेंगे।


*नमो बुद्धाए।               जय भीम।*

फुले" फिल्म को देखने की कई वजहें हैं:

 


*"फुले" फिल्म को देखने की कई वजहें हैं:*


1. **ऐतिहासिक और सामाजिक महत्व**: यह फिल्म ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले की प्रेरणादायक जिंदगी पर आधारित है, जिन्होंने 19वीं सदी में भारत में शिक्षा, सामाजिक सुधार और महिलाओं के अधिकारों के लिए क्रांतिकारी काम किया। उनकी कहानी प्रेरणा देती है और सामाजिक बदलाव के महत्व को दर्शाती है।


2. **शिक्षा और जागरूकता**: फिल्म दर्शकों को जातिगत भेदभाव, महिलाओं की स्थिति और शिक्षा के महत्व जैसे गंभीर मुद्दों पर सोचने के लिए प्रेरित करती है। यह इतिहास के एक महत्वपूर्ण हिस्से को समझने का मौका देती है।


3. **शानदार अभिनय और निर्देशन**: फिल्म में प्रभावशाली अभिनय (प्रियांशु पैन्यूली और अनघा अटूल जैसे कलाकार) और संवेदनशील निर्देशन (अनुराग साई द्वारा) है, जो कहानी को जीवंत बनाता है।


4. **सांस्कृतिक मूल्य**: यह फिल्म भारतीय समाज के मूल्यों, संघर्षों और सुधारकों के योगदान को उजागर करती है, जो हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है।


5. **प्रासंगिक संदेश**: आज के समय में भी समानता और शिक्षा के लिए फुले दंपति का संघर्ष प्रासंगिक है, जो दर्शकों को वर्तमान सामाजिक मुद्दों पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है।


अगर आप इतिहास, सामाजिक सुधार, या प्रेरणादायक कहानियों में रुचि रखते हैं, तो "फुले" आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प विकल्प है l 


*फूले फिल्म पैराडाइज टॉकीज फैजाबाद में दिनांक 9 मई 2025  से प्रातः 11:00 बजे से प्रथम शो तथा सायं 6:30 बजे से दूसरा शो  चलेगा* l

भारत ने ये कौन सा ऑपरेशन कर दिया कि पुंछ में 15 भारतीय मारे गए, 50 लोग टूट फूटकर अस्पताल में पड़े हैं, सैकड़ों एकड़ फसल खराब हो गई। तमाम गांव नेस्तनाबूद हो गए। हजारों लोग अपने ही देश मे शरणार्थी बन गए हैं।

 



भारत ने ये कौन सा ऑपरेशन कर दिया कि पुंछ में 15 भारतीय मारे गए, 50 लोग टूट फूटकर अस्पताल में पड़े हैं, सैकड़ों एकड़ फसल खराब हो गई। तमाम गांव नेस्तनाबूद हो गए। हजारों लोग अपने ही देश मे शरणार्थी बन गए हैं।

क्या जम्मू कश्मीर के पुंछ में मारे गए भारतीयों के देह से खून नहीं बहा है? उनके लिए भारत के देशभक्त नागरिकों का खून क्यों नहीं खौल रहा है? उनका धर्म पूछकर नहीं मारा गया है, इसलिए लोगों का खून नहीं खौला? वो ग्रामीण बेचारे तो कश्मीर में तफरी करने भी नहीं गए थे, अपनी खेती बाड़ी कर रहे थे, अपने घरों में सो रहे थे।

आन्दोलन के संदर्भ में भारतीय संविधान शिल्पी डॉक्टर बीआर अम्बेडकर ने कहा था कि 👉"मुझे निष्ठावान लोग चाहिए, बुद्धि की कमी (भरपाई) मैं पूरी कर दुंगा

 


*"📗🖊️आन्दोलन के संदर्भ में भारतीय संविधान शिल्पी डॉक्टर बीआर अम्बेडकर ने कहा था कि 👉"मुझे निष्ठावान लोग चाहिए, बुद्धि की कमी  (भरपाई) मैं पूरी कर दुंगा l*

*👉 आंदोलन वह होता है जिसका एक उद्देश्य (मकसद)  होता है और करोड़ों करोड़ों लोग उसे पूरा करने के लिए कार्य करते हैं अर्थात मकसद एक और करोड़ों लोगों का सहभाग, जब करोड़ों लोग एक साथ एक लक्ष्य की पूर्ती के लिए काम करते हैं तब जाकर कोई बड़ा काम होता है, छोटा काम तो चंद आदमी भी पूरा कर लेते हैं बड़ा काम या बड़ा मकसद एक आदमी के बस की बात नहीं है. बड़ी समस्याओ का अगर समाधान करना चाहते हैं तो बड़ी ताकत का निर्माण करना होगा, राष्ट्रीय स्तर की संगठित शक्ति का निर्माण करना होगा l जब एक उद्देश्य, एक लक्ष्य, एक ही मकसद के लिए सभी की निष्ठा हो, तब एक विशाल संगठित शक्ति का निर्माण होगा और उस विशाल संगठित शक्ति का समय, काल तथा परिस्थितियों के अनुसार उपयोग और प्रयोग करने वाली नेतृत्व क्षमता (Leadership) भी उपलब्ध हो तब जाकर बड़ा काम किया जा सकता है.*

       *राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले ने व्यवस्था परिवर्तन का एकल (सिंगल हैंडेड) आंदोलन चलाया था, क्रांतसूर्य बिरसामुंडा ने साहुकारो, महाजनो एवं दीकूओ के खिलाफ स्वयं  अकेले नेतृत्व कर आंदोलन चलाया l भारतीय संविधान शिल्पी बाबा साहब डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने अकेले अपने बलबूते पर आंदोलन  चलाया और परिणाम निकालकर बताया l* 

                    *डॉक्टर बीआर अंबेडकर का इतिहास हमारे सामने है, बाबा साहब के समय में उनके साथ जो बुद्धिजीवि लोग काम कर रहे थे उनके ऊपर बाबा साहब को भरोसा नही था, इसीलिए बाबा साहब निराश, दु:खी होकर कहते हैं कि मैं बेशुमार मुसीबतों, कठिनाइयों का सामना करके व्यवस्था परिवर्तन के इस कारंवा को यहां तक लाया हूं लेकिन मुझे इस कारंवा को  आगे ले जाने के लिए दूर- दूर तक कोई नौजवान नजर नहीं आता है,                                     👉बाबा साहब किसी नौजवान मे कौनसा गुण देख रहे थे, जो उन्हे किसी नौजवान मे दिखाई नहीं दे रहा था. बाबा साहब को व्यवस्था परिवर्तन के उद्देश्य के प्रति निष्ठा किसी नौजवान मे नजर नहीं आ रही थी l*

            *👉उद्देश्य के प्रति निष्ठा के संबंध में बाबा साहब डॉ बीआर अंबेडकर के आंदोलन के समय के कुछ ऐतिहासिक उदाहरणों से  समझा जा सकता है l*

       *📗🖍️उदाहरण नंबर (1) आरडी भंडारे (रामचंद्र धोंडीब भंडारे) जो कि बाबा साहब के साथ काम करने वाले विश्वसनीय व्यक्ति थे, बाद में कांग्रेस ने आर.डी. भंडारे को बिहार का राज्यपाल बनाया था, एक बार बाबा साहब को आंदोलन चलाने के दौरान किसी काम के लिए 25000(रु.पच्चीस हजार) की जरूरत थी, उस समय के कांग्रेस पार्टी के एक बड़े नेता एसके पाटिल (सदाशिव कानोजी पाटिल) जो बाबा साहब के समर्थक भी थे, एस.के. पाटिल से बाबा साहब ने पच्चीस हजार(25000रू) रुपए की मांग की, एस.के. पाटिल ने बाबा साहब को 25000रु देने का आश्वासन दिया, तब बाबा साहब ने अपने साथ काम करने वाले विश्वसनीय व्यक्ती आर.डी. भंडारे को एस.के. पाटिल के पास रुपए लेने भेजा l आरडी भंडारे को एस.के. पाटिल ने 25000रु दे भी दिए, मगर आरडी भंडारे ने वह 25000रु बाबा साहब को दिए ही नहीं स्वयं रख लिए l इस बात से अनुमान लगाया जा सकता है कि जो लोग बाबा साहब के साथ धोखा कर सकते हैं वे कितने बड़े धोखे बाज होंगे, बाबा साहब को धोखा देने वाले आर.डी. भंडारे को कांग्रेस पार्टी ने बिहार का महामहिम राज्यपाल बनाकर उपकृत और पुरुषकृत किया l*,

               *उदाहरण नंबर 2📗🖍️ आर.आर. भोले बाबा साहब के आंदोलन में काम करने वाले एक कार्यकर्ता थे, जब 24 सितंबर 1932 में पूना पेक्ट हुआ था, तब पूना पेक्ट के विरोध में बाबा साहब के कहने पर आर.आर .भोले ने जेल भरो आंदोलन चलाया था l पूना पेक्ट के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में कांग्रेस पार्टी ने 1982 में पूना पेक्ट के समर्थन में एक कार्यक्रम करने की योजना बनाई और उस कार्यक्रम के लिए एक कमेटी गठित की गई, जिसका चेयरमैन आर.आर. भोले को बनाया गया.  👉🤔अर्थात जिस आरआर भोले नामक आदमी ने बाबा साहब के कहने पर पूना पेक्ट 1932  के विरोध में जेल भरो आंदोलन चलाया था, उसी आर.आर. भोले को कांग्रेस पार्टी ने 1982 में पूना पेक्ट के समर्थन में आयोजित कार्यक्रम की कमेटी का चेयरमैन बनाया , क्या आरआर भोले ने इसके बदले कुछ नहीं लिया होगा l*

                                  *बाबा साहब डॉ बी.आर. अंबेडकर के साथ काम करने वाले उक्त दो लोगो के उदाहरण निष्ठा के संबंध में यहां प्रस्तुत किये गये है ताकि आंदोलन के इतिहास एवं व्यवस्था परिवर्तन  एवं सामाजिक निष्ठा के संबंध में सीख लेने के लिए लोगो को कुछ सीखने , समझने, चिन्तन मनन करने को मिले🌹🙏🙏🌹 ll* 

*जय जोहार, जय भीम, जय बिरसा, जय ज्योतिबा, जय भारत, जय मूलनिवासी 🙏🙏 l*

PHULE Movie - कांतिशिवा टाकीज बैतूल में दिनाँक 09 मई 2025 दिन शुक्रवार से प्रदर्शित की जा रही है ।

 


#विशेष_सूचना

मुझे बताते हुए बड़ी खुशी हो रही है कि एवं बड़े गर्व की बात है

बैतूल जिले के सभी सम्मानीयजनो, माताओ,बहनो को अवगत किया जाता है की

बहुजन समाज मे जन्मे सामाजिक क्रांति के प्रणेता,क्रांतिसूर्य ,महात्मा ज्योतिबा फूले एवं भारत की प्रथम महिला शिक्षिका माता सावित्री बाई फुले के जीवन संघर्ष पर आधारित फिल्म #फुले

 कांतिशिवा टाकीज बैतूल में दिनाँक 09 मई 2025 दिन शुक्रवार से प्रदर्शित की जा रही है ।सभी इस मूवी को अधिक से अधिक संख्या में सपरिवार अवश्य देखे।पूरे सप्ताह भर का शेड्यूल इस प्रकार रहेगा।


शुक्रवार - 3 बजे से 6 बजे तक

शनिवार  - 3 बजे से 6 बजे तक

रविवार -  6 बजे से 9 बजे तक

सोमवार - 6 बजे से 9 बजे तक

मंगलवार - 3 बजे से 6 बजे तक

बुधवार  - 3 बजे से 6 बजे तक

गुरुवार - 6 बजे से 9 बजे तक 

    अतः आप सभी इसका अधिक से अधिक प्रचार प्रसार करे एवं निर्धारित समय पर उपस्थित होकर इस मूवी को अवश्य देखे एवं सामाजिक जाग्रति में अपना सहयोग प्रदान करे।

जो माँ बाप अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजेगा, उस पर 1 रुपया सजा के तौर पर जुर्माना लगाने वाले शिक्षणप्रेमी

 



जो माँ बाप अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजेगा,

उस पर 1 रुपया सजा के तौर पर जुर्माना लगाने वाले शिक्षणप्रेमी,शासन प्रशासन में भागीदारी के जनक छत्रपती शाहू महाराज के 146 वें जन्मदिन कि बहुत बहुत बधाइयाँ।


डॉ॰बाबासाहब अंबेडकर के बैरिस्टर बनने के बाद राजर्षि छत्रपति शाहुजी महाराज उनसे मिलने स्वयं मुंबई के डबक कॉलोनी में उनके घर गए। बाबासाहब के जो साथी बाहर खड़े थे, उनसे उन्होने कहा कि “जाओ, डॉ॰ अंबेडकर जी को बताओ कि मैं उनसे मिलने आया हूँ।” बाबासाहब जब बाहरआये और उन्होने साक्षात शाहुजी महाराज को घर के बाहर देखा, तो उन्हे बड़ा आश्चर्य हुआ कि एक राजा मुझसे मिलने मेरे घर आया हैं!! उन्होने शाहुजी महाराज से कहा “आप राजा हो, छत्रपति हो। आपने कहा होता तो मैं स्वयं ही कोल्हापुर आ जाता। आपने इतनी परेशानी क्यों उठाई?”। तब छत्रपति शाहूजी महाराज ने जवाब दिया कि

 “हम किस बात के राजा? हम तो परंपरा से राजा बने है। परंपरा से तो कोई भी राजा बन सकता है। 

आप ‘ज्ञान के राजा’ हो। ‘ज्ञान का राजा’ हर कोई नहीं बन सकता। आप बैरिस्टर हुए हो, इसलिए कल हम, आप के सम्मान में आपकी रैली निकालने वाले हैं। आप कोल्हापुर आईये।”..... उसके बाद इतिहास में ये अविस्मरणीय घटना हुई कि एक राजा ने,ब्राह्मणी व्यवस्था दवारा अछूत बनाए एक वर्ग के व्यक्ति,जो बैरिस्टर हुआ इसलिए उनकी रैली निकाली और उन पर फूल बरसाकर उनका अभिनन्दन और सम्मान किया .....!!

जातिभेद की दीवारों को तोड़कर इंसान को इंसानियत सीखाने वाले महान लोकराजा राजर्षि छत्रपति शाहुजी महाराज को कोटी कोटी नमन ...!!💐💐


प्रतिनिधित्व के जनक, राजर्षी छत्रपति शाहूजी महाराज जी(OBC) के जन्मदिन दिवाली के जैसे मनाना चाहिए।

(बाबा साहब अम्बेडकर)

भारत स्थायी गुलामों का साम्राज्य है। जब तक इस देश में साम्राज्यवादी ब्राह्मणवाद का राज रहेगा, तब तक हमारे लोग इस ब्राह्मणवादी गुलामी से मुक्त नहीं हो सकेंगे।

 



*भारत स्थायी गुलामों का साम्राज्य है। जब तक इस देश में साम्राज्यवादी ब्राह्मणवाद का राज रहेगा, तब तक हमारे लोग इस ब्राह्मणवादी गुलामी से मुक्त नहीं हो सकेंगे।* 


- सरदार जीवन सिंह (राष्ट्रीय अध्यक्ष, बहुजन द्रविड़ पार्टी)


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_प्रिय बहुजन द्रविड़ भाइयों और बहनों,_


दिनांक 4 मई, 2025 (रविवार) को मध्य प्रदेश में उज्जैन जिले के तराना विधानसभा क्षेत्र में बहुजन द्रविड़ पार्टी की एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई।


इस बैठक में बहुजन द्रविड़ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सरदार जीवन सिंह जी को मुख्य अतिथि और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एडवोकेट अशोक सिंह जी को विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया। बैठक की अध्यक्षता वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता माननीय रामप्रसाद बाड़वाल जी ने की। प्रदेश उपाध्यक्ष माननीय लाल सिंह सोलंकी, प्रदेश प्रवक्ता माननीय किशन सूर्यवंशी एवं अन्य पार्टी पदाधिकारियों सहित बैठक में कई और महत्वपूर्ण लोग उपस्थित हुए।


_बहुजन द्रविड़ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सरदार जीवन सिंह जी ने कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा,_


आज यहां आपसे मिलकर मुझे बहुत ख़ुशी और सम्मान की अनुभूति हो रही है। आज का दिन आपके और मेरे लिए बहुत ऐतिहासिक दिन है।


भाइयों, हमारे साथियों ने पहले यह कार्यक्रम हालुखेड़ी में आयोजित करने की योजना बनाई थी, लेकिन भाजपा शासकों और स्थानीय प्रशासन को बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर की जयंती का यह कार्यक्रम बर्दास्त नहीं हुआ इसलिए उन्होंने हालुखेड़ी गांव में कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति ही नहीं दी। लेकिन उन्हें मालूम होना चाहिए कि हम मान्यवर कांशीराम साहब के शिष्य हैं और मान्यवर कांशीराम साहब के शिष्य कभी पीछे नहीं हटते। इसलिए हमारे युवा साथी किशन सूर्यवंशी जी ने तुरंत यहां इटावा गांव में कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बना ली। 


मैं पेरियार की धरती तमिलनाडु से आपके यहां आया हूँ और मनुवादी शासन-प्रशासन के अनेक षड्यंत्रों के बावजूद भी आज मध्य प्रदेश में इस कार्यक्रम को संबोधित कर रहा हूँ। इसलिए हमारे वैचारिक दोस्तों के लिए यह एक बड़ा संदेश और भाजपा, कांग्रेस जैसी मनुवादी पार्टियों के मुँह में कड़ा तमाचा भी है। 


हमारे अंदर यह जो हौसला है वह पेरियार का हौसला है। इसलिए आपको भी थांथाई पेरियार और मान्यवर कांशीराम से कुछ सबक सीखना चाहिए। क्योंकि भाजपा, आरएसएस और कांग्रेस के लिए हमारे यह दो महापुरुष सबसे ज्यादा ख़तरनाक प्रतीक हैं। 


उन्होंने आगे कहा कि, मैं पूरे देश में घूमता हूँ, लेकिन जब मैं तथाकथित अम्बेडकरवादियों को देखता हूँ तो पता चलता है कि उन्होंने आज अपनी विश्वसनीयता, मूल्य, धार्मिकता और आत्मविश्वास खो दी है। जय भीम बोलने वाले ज्यादातर लोग आज या तो मनुवादी पार्टियों के पिछलग्गु बने हुए हैं या उनके गुंडों के रूप में काम कर रहे हैं। तथाकचित दलितों के लिए यह बहुत ख़तरनाक स्थिति है।


मैं आज जहां भी जाता हूँ तो लोग जय भीम, जय भीम, जय जय भीम करते नजर आते हैं, लेकिन जब मैं उनका चरित्र देखता हूँ तो मुझे इन जय भीम बोलने वालों से कुछ भी सीखने की प्रेरणा नहीं मिलती। मैं इन लोगों से आज तक एक भी सकारात्मक सबक नहीं सीख पाया। 


उन्होंने आगे कहा कि, यह लोग हाथ में तम्बाकू रगड़ते हुए जय जय भीम करते रहते हैं। बीड़ी-सिगरेट फूँकते हुए जय भीम करते रहते हैं। यहां तक की शराब की दुकान में शराब की बोतल खरीदते वक्त भी यह जय भीम करते रहते हैं। हमारे लोग कौन सा आचार और कौन सी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं? इसलिए अब आप लोग ही मुझे बताइए कि मैं आपसे क्या शिक्षा ग्रहण करूँ? मैं आपसे कुछ सीखना चाहता हूँ, इसीलिए तीन हजार किलोमीटर दूर से चलकर यहां आपके पास आया हूँ। 


उन्होंने आगे कहा कि, आज भी हमारे लोग गुलामों का जीवन क्यों जी रहे हैं? वह आजतक जानवरों से बदतर जीवन क्यों जी रहे हैं? इसका कारण ब्राह्मण नहीं, बल्कि हमारे अपने लोग ही हैं।


हमारे लोग अपने गांवों और घरों में बाबासाहेब की मूर्ति और फोटो लगाकर ही संतुष्ट हो जाते हैं। जबकि मैंने इस गांव में कोई डॉक्टर, इंजीनियर, पायलेट, अच्छा अधिवक्ता और न्यायाधीश नहीं देखा, तो फिर आपके जय भीम, जय भीम करने का क्या औचित्य रह जाता है? आप तो बाबासाहेब का नाम लेने के भी योग्य नहीं हैं।


उन्होंने आगे कहा कि, मान्यवर कांशीराम साहब ने अपने समय में नारा दिया था, ""वोट हमारा, राज तुम्हारा - नहीं चलेगा, नहीं चलेगा।" अगर आप इस नारे को याद रखते तो शायद आपका कुछ भला हो जाता, लेकिन आज आप इस नारे को भी भूल गए हैं। आपका वोट आपका नहीं है, क्योंकि आप अपने दुश्मन को वोट देते हैं। एक तरफ आप भाजपा, कांग्रेस जैसी मनुवादी पार्टियों को वोट देकर उन्हें सत्ता में बैठाते हैं और दूसरी तरफ जय भीम, जय भीम का राग भी अलापते हैं। आप मान्यवर कांशीराम जी को भूल चुके हैं, इसीलिए आप ब्राह्मणवादी क्रूरता, हिंसा और अपमान का सामना कर रहे हैं। 


मैं मध्य प्रदेश के बीडीपी नेता श्री लाल सिंह सोलंकी जी का हृदय से धन्यवाद करना चाहता हूँ, क्योंकि जब मैं कल इन्दौर एयरपोर्ट में उतरा तो वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने एयरपोर्ट आकर मेरा स्वागत किया।


आप सभी मेरे भाई-बहन हैं। मैं आपको भाई-बहन क्यों कह रहा हूँ? इस भाई शब्द का मतलब कॉमरेड से कहीं बढ़कर है। भाई का मतलब है कि मेरी और आपकी रगों में एक ही खून बह रहा है। यह शब्द हमें आपस में जोड़ता है।


उन्होंने आगे कहा कि, आपका खून और मेरा खून एक ही मकसद के लिए लड़ रहा है। वह मकसद है आत्मसम्मान और गरिमा। मध्य प्रदेश इस देश का केंद्र बिंदु है। मैं यहां से तीन हजार किलोमीटर दूर कन्याकुमारी का हूँ। मेरा खून भी आत्मसम्मान और गरिमा के लिए लड़ रहा है। अगर आप यहां से तीन हजार किलोमीटर उत्तर की ओर जम्मू-कश्मीर जाएं तो वहां भी हमारे समाज के भाई निवास करते हैं। वह भी इसी ऊर्जा के साथ आत्मसम्मान और गरिमा के लिए लड़ रहे हैं। 


आप देखिए कि बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर, मान्यवर कांशीराम साहब, थांथाई पेरियार, छत्रपति शाहूजी महाराज, महात्मा जोतिबा फुले, श्री नारायणा गुरु, बिरसा मुंडा, टंट्या मामा, कैप्टन जयपाल सिंह मुंडा आदि महापुरुषों ने इतना लम्बा संघर्ष क्यों किया? उन्होंने हमारे लिए समानता और भाईचारा प्राप्त करने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने हमारे लिए स्वतंत्रता और न्याय की प्राप्ति के लिए संघर्ष किया।


अगर आप पांच सौ साल पहले का इतिहास देखें तो गुरु नामदेव, गुरु कबीर, गुरु रविदास, गुरु नानक, गुरु गोबिंद सिंह जी ने भी हमारी समानता के लिए संघर्ष किया। यह सभी गुरु, भगत एक समतावादी समाज की स्थापना करना चाहते थे। वे आए और चले गए, लेकिन उनका संघर्ष आज भी जारी है। हम और आप आज भी समतावादी समाज की स्थापना के लिए संघर्ष कर रहे हैं।


हमारा यह संघर्ष कोई आज, कल, परसों या एक साल पहले शुरू किया गया संघर्ष नहीं, बल्कि समानता का यह संघर्ष गुरु नामदेव के समय से आज तक चलता आ रहा है।


उन्होंने आगे कहा कि, दुनिया के किसी भी देश ने इस तरह का संघर्ष नहीं किया। दुनिया के किसी भी देश ने समानता के लिए इतना लम्बा संघर्ष नहीं किया। परन्तु हम आज तक समतावादी समाज की स्थापना के लिए संघर्ष क्यों कर रहे हैं?


हमारे लोग हजारों वर्षों से यह संघर्ष क्यों कर रहे हैं? हमारे लोग यह संघर्ष साम्राज्यवादी ब्राह्मणवाद के कारण कर रहे हैं। साम्राज्यवादी ब्राह्मणवाद ही हमारी समस्या का मूल जड़ है। इसके कारण ही हमारे लोगों ने बहुत कुछ सहा है और आज भी सह रहे हैं। 


हमारे भगत, गुरु और बहुजन द्रविड़ नेता बहुजन द्रविड़ समाज को इस ब्राह्मणवादी विचारधारा से हमेशा सतर्क रहने की सलाह देते रहे हैं। हमारे गुरुओं, भगतों ने इस साम्राज्यवादी ब्राह्मणवाद के खिलाफ संघर्ष किया और चले गए, लेकिन हम लोग आज भी इस साम्राज्यवादी ब्राह्मणवाद के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। क्यों? क्योंकि आप लोग अपने प्रति और अपने समाज के प्रति ईमानदार नहीं हैं।


उन्होंने आगे कहा कि, ब्राह्मणवादी ताकतों के दिमाग में सिर्फ एक ही विचार चलता है। वह देश के बहुसंख्यक लोगों को गुलाम और ब्राह्मणों की सर्वोच्चता बनाए रखना चाहते हैं।


उनके पास सिर्फ एक ही एजेंडा है, लेकिन आपके पास कई एजेंड़ा और कई भगवान हैं। आप लोग हमेशा अपने भगवान के चरणों में ही लेटे रहते हैं। आपके भगवान ही आज आपकी सबसे बड़ी समस्या बन गए हैं। आपका परिवार आपकी समस्या नहीं है, बल्कि आपके अपने भगवान ही आपकी मुख्य समस्या हैं। आपके यह भगवान आपको इस ब्राह्मणवादी गुलामी से मुक्ति नहीं दिला सकते। वह आपको कभी भी स्वतंत्र नहीं करा सकते।


उन्होंने आगे बताया कि, थांथाई पेरियार ने तमिलनाडु में तर्कसंगत आंदोलन की शुरुआत की थी। उन्होंने तमिल लोगों के बीच तर्कसंगत आंदोलन इसलिए शुरू किया ताकि लोग सोचना शुरू करें कि उनके लिए क्या सही है और क्या गलत है। दूसरा आंदोलन उन्होंने आत्मसम्मान के लिए शुरू किया था। इस तरह पेरियार के पास सिर्फ दो ही एजेंडा थे। तर्कसंगत और आत्मसम्मान।


आप अगर रोड़ तरफ कहीं पेशाब करते हैं, तो किसी न किसी व्यक्ति को कहते हैं कि पानी डाल दो भाई हाथ धोना है। लेकिन इधर उत्तर भारत में, जिसे हमारे लोग गौमूत्र क्षेत्र के नाम से सम्बोधित करते हैं। यहां एक तरफ लोग अपना पेशाब करने के बाद हाथ धोते हैं, लेकिन दूसरी तरफ गाय का पेशाब पीते हैं, उससे अपना मुँह धोते हैं। इसलिए मैं कहता हूँ कि आप लोग अब सोचना शुरू करो की क्या सही है और क्या गलत है?


उन्होंने आगे कहा कि, भारत स्थायी गुलामों का साम्राज्य है। जबकि भारत के अलावा ऐसी गुलामी की व्यवस्था के खिलाफ जिस भी देश में लोगों ने विद्रोह शुरू किया वहां 50, 60, 70 वर्षों के अंदर ही वह गुलामी से मुक्त होने में सफल रहे। उन्होंने उस गुलामी से स्वतंत्रता पा ली, लेकिन हमारे लोग इस गुलामी की व्यवस्था से मुक्त होने के लिए पिछले 2000 वर्षों से आजतक संघर्ष करते आ रहे हैं। हम आज तक मुक्त क्यों नहीं हुए? हमारे लोग पिछले दो हजार वर्षों से गुलाम क्यों हैं?


जब तक ब्राह्मणवाद इस देश पर राज करेगा, तब तक हमारे लोग इस ब्राह्मणवादी गुलामी की व्यवस्था से नहीं बच सकेंगे। किसी के पास भी इस गुलामी की व्यवस्था को बदलने का अधिकार नहीं है। इसीलिए वे लोग कहते हैं कि यह गुलामी की व्यवस्था सनातन है, क्योंकि इसे भगवान ने बनाई है। यह गुलामी की व्यवस्था स्थायी है। इस व्यवस्था को बदलने का किसी को अधिकार नहीं है। 


जब तक इस देश में सनातन धर्म का राज रहेगा तब तक गुलामी की यह व्यवस्था जारी रहेगी। जब तक यह व्यवस्था जारी रहेगी तब तक समानता और गरिमा के लिए संघर्ष भी जारी रहेगा।


आप लोग कहते हैं कि भारत का संविधान बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर ने बनाया है। हमारे संविधान ने इस देश में समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व, न्याय और लोकतंत्र की गारंटी दी है।


ठीक है, हमारा संविधान हमें सबकी गारंटी देता है। लेकिन यह सनातन धर्म किसने बनाया? ब्राह्मण कहते हैं कि सनातन धर्म भगवान ने बनाया है। इसलिए इसमें कोई परिवर्तन नहीं हो सकता।


मैं आपसे एक सवाल पूछ रहा हूं कि भारत में संविधान का राज है या सनातन धर्म का राज? एक तरफ संविधान समानता की बात करता है, तो वहीं दूसरी तरफ सनातन धर्म आपकी समानता के खिलाफ खड़ा है। फिर भी आप लोग ही सनातन धर्म के ढोते हैं। आप लोग ही सनातन धर्म के सबसे बड़े सपोटर्स हैं। 


उन्होंने आगे कहा कि, मध्य प्रदेश में एससी/एसटी लोग बहुसंख्यक हैं। मुझे लगता है कि यहाँ करीब 45% जनसंख्या आपकी है, लेकिन आपने क्या किया है? आप लोगों ने सनातनियों को इस मध्य प्रदेश में राज करने के लिए चुना है।


एक तरफ आप संविधान बचाने का आंदोलन चलाते हैं और दूसरी तरफ संविधान विरोधी सनातनी लोगों को चुनकर सत्ता में लाते हैं, तो फिर आप ही बताइए की दोषी कौन है? दोषी आप लोग हैं। इसलिए आपको अपने लोगों और अपनी आगामी पीढ़ी के लिए बहुत सावधान होकर सोचने की जरूरत है।


उन्होंने आगे कहा कि, यह मिशन हमने या हमारी बहुजन द्रविड़ पार्टी ने शुरू नहीं किया। बल्कि यह मिशन गुरु नामदेव, गुरु कबीर, गुरु रविदास, गुरु नानक जी ने शुरू किया था। उनका यह मिशन अभी भी अपनी मंजिल की तलाश में है। हमारे गुरुओं का यह बेगमपुरा मिशन हम कब पूरा करेंगे?


हम सभी इस देश के मूलनिवासी हैं। यह हमारी भूमि है। यहां की खानें, जंगल, पहाड़ हमारे हैं। लेकिन हमारे जंगल, पहाड़ों को किसने कब्ज़ा रखा है। वह कौन लोग हैं जो हमारी भूमि को बर्बाद कर रहे हैं?


हम बहुसंख्यक लोग हैं। आप चाहे कश्मीर से कन्याकुमारी की ओर देखें या आसाम से गुजरात की ओर। पूरे देश में हमारे लोग निवास करते हैं, फिर भी इस देश में राज किसका है?


लोकतंत्र का सिद्धांत कहता है कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था में बहुसंख्यक लोग राज करेंगे। इस देश में हम बहुसंख्यक लोग हैं, लेकिन देश में राज किसका है? मुट्ठीभर संख्याबल वाले लोग इस देश में राज कर रहे हैं, तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है? हम लोग ही उन्हें चुनकर अपने ऊपर अत्याचार करने की ताकत दे रहे हैं।


उन्होंने आगे कहा कि, जब से हमें यह फर्जी स्वतंत्रता मिली है, तब से ब्राह्मणवादी ताकतों ने हमारे दलित समुदाय में बहुत से चमचे नेता पैदा किए हैं।


आज से मैं उन चमचों को सैलून गुलाम कहूंगा। क्योंकि आप देखिए की दलित, आदिवासी प्रतिनिधि के नाम पर आज 131 सांसद संसद में बैठे हैं, लेकिन उनमें से एक भी सांसद आपकी समस्याओं पर बात नहीं करता। यह सैलून गुलाम आपको खुश करने के लिए नहीं, बल्कि भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी जैसी ब्राह्मणवादी पार्टियों को खुश करने के लिए काम करते हैं।


आप उन्हें मालिक के रूप में देखते हैं। लेकिन वह मालिक नहीं हैं, बल्कि उनका काम अपने मालिक को संतुष्ट करना है। इसलिए ये सैलून गुलाम अपना सारा समय कांग्रेस, बीजेपी, कम्युनिस्ट पार्टी जैसी मनुवादी पार्टियों को सजाने-सावरने में लगा देते हैं। वे आपके विकास, आपकी उन्नति के लिए काम नहीं करते। वह आपके बच्चों की शिक्षा के विषय में नहीं सोचते। वे सभी मनुवादी पार्टियों के पिछलग्गु बने घूमते हैं। 


वे कुछ नहीं हैं। वे अकेले हैं, लेकिन एक ख़ास उद्देश्य से ही कांग्रेस, भाजपा जैसे दल उन्हें आगे बढ़ाते हैं, क्योंकि वह उनके गुलाम हैं। इन गुलामों को चुनाव के समय समाज के बीच मालिक की तरह इसलिए पेश किया जाता है, ताकि समाज भ्रमित होकर इनकी बात मान ले और चुनाव जिता दे।


यह सब समाज के गद्दार लोग हैं। इसलिए हमें इन गद्दारों से एक निश्चित दूरी बनाकर रहना चाहिए। इनसे हमेशा सतर्क रहना चाहिए। इन्हें अपने गांव, कस्बे और जिले में भी नहीं घुसने देना चाहिए।


उन्होंने आगे कहा कि, आज हम यहां समाधान पर चिंतन करने के लिए इकठ्ठा हुए हैं। हमारे लोग जहां भी जाते हैं समस्याओं पर चर्चा करने के लिए बहुत उत्सुक नज़र आते हैं, लेकिन वह समाधान पर चर्चा करने के लिए तैयार नहीं होते। लेकिन मन्यावर कांशीराम साहब हमेशा हमारे लोगों की समस्याओं के समाधान के विषय में सोचते थे।


हमारे ज्यादातर लोग किसी न किसी सामाजिक मूवमेंट के साथ जुड़े होते हैं। अगर आप अपनी समस्या का तात्कालिक समाधान चाहते हैं तो आप सामाजिक मूवमेंट के माध्यम से वह समाधान प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन अगर आपको अपनी समस्या का दीर्घकालिक समाधान चाहिए तो आपको राजनीति में भाग लेना पड़ेगा। और यदि आप अपनी समस्या का स्थाई समाधान चाहते हैं तो आपको इस ब्राह्मणवादी संस्कृति को त्यागना पड़ेगा। आपको सांस्कृतिक परिवर्तन करना पड़ेगा। क्योंकि सांस्कृतिक परिवर्तन ही आपका स्थाई समाधान हैं।


आप देखिए की इस देश में दो राज्य कुछ अलग राज्य हैं। तमिलनाडु और पंजाब। पंजाब के लोग हमारे जैसा जीना पसंद नहीं करते। इसलिए उन्होंने बहुत पहले ही सांस्कृतिक परिवर्तन करके अपने लिए स्थाई समाधान तलाश लिया और खुशहाल जीवन जी रहे हैं। 


अब आप तमिलनाडु को देखिए, वहां भी सांस्कृतिक परिवर्तन हुआ है। वे लोग ब्राह्मणवादी विचारधारा के बिल्कुल खिलाफ हैं। पेरियार ने तमिलनाडु में तर्कसंगत मूवमेंट शुरू किया था। उनके इस तर्कसंगत मूवमेंट की वजह से आज तमिलनाडु कुछ हद तक सुरक्षित है और वहां भी आज हमारे लोग बहुत खुशहाल जीवन जी रहे हैं।


पंजाब और तमिलनाडु ने सांस्कृतिक परिवर्तन के माध्यम से समस्या का स्थाई समाधान खोजा और उसे अपनाया इसलिए आज वह दूसरे राज्यों की तुलना में बेहतर जीवन जी रहे हैं।


अंत में, मैं आपसे बस यही कहना चाहता हूँ कि हमें राजनीतिक परिवर्तन के लिए संघर्ष करना है। क्योंकि बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर ने कहा है कि, "राजनीतिक सत्ता मास्टर चाबी है, अगर यह राजनीतिक सत्ता आपके हाथों में होगी तो आप इससे सबकुछ बदल सकते हैं।" 


इसलिए हमें राजनीतिक परिवर्तन के लिए संघर्ष करना है और इसके साथ ही साथ चुपचाप हमें सांस्कृतिक परिवर्तन के लिए भी समाज को तैयार करना है।


अगर हम राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तन यानी मीरी-पीरी को साथ लेकर चलते हैं तो गुरु रविदास का "बेगमपुरा खालसा राज" मिशन बहुत जल्द इस देश में फले-फूलेगा। इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात को विराम देता हूँ। बहुत-बहुत धन्यवाद! वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फ़तेह।


तत्पश्चात उपस्थित बहुजन मिशनरियों को सरदार भजन सिंह जी द्वारा सिख इतिहास में लिखित "फूल जो लहू में खिले" पुस्तक का हिंदी संस्करण वितरित किया गया।


इसके बाद दिनांक 5 मई, 2025 को उज्जैन गेस्ट हॉउस में भी उज्जैन के कई बहुजन कार्यकर्ताओं ने मुलाक़ात कर पार्टी में शामिल होने की इच्छा जाहिर की। उन्हें भी फूल जो लहू में खिले पुस्तक भेंट की गई। धन्यवाद!

गुरुओं के समानता मिशन में...

उज्जैन से,

*बीबीसीआई न्यूज़, नई दिल्ली*


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