सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

Featured Post

कोरी-चमार समाज की क्षेत्रीयता

    *कोरी-चमार समाज की क्षेत्रीयता*   ‌‌‌      सोशल मीडिया पर आजकल अलग अलग ग्रुपों पर कई तरह की चर्चाएँ जोरों पर चल रही हैं। एक परिचर्चा कि कोरी चमार की ही उपजाति है, कोरी अलग से कोई जाति नहीं है तथा चमार को भी कोरी की उपजाति बताया जाता है। कोई भी किसी की बात मानने के लिये तैयार नहीं है। सबका अपना अपना कुतर्क है।       जिस जगह आग जलती है, विज्ञान का नियम है कि आप जितना आग के नजदीक होते हैं उतनी ही तपन आपको ज्यादा महसूस होगी। आप जैसे जैसे आग से दूर होते जाते हैं वैसे ही तपन कम होने लगती है। यदि आप अन्य क्षेत्रों में भी तपन महसूस करना चाहते हैं तो आपको वहाँ भी आग जलानी पड़ेगी।       गौतम बुद्ध के कार्यक्षेत्र कपिलवस्तु, सारनाथ, श्रावस्ती, बोधगया और राजगिरि आदि पूर्वांचल में आते हैं इसीलिए पूर्वांचल के मूल समाज वाले लोग उनके आदर्शों से ज्यादा प्रभावित रहे हैं जिनमें पूर्वांचल के कोरी और चमार समाज के लोगों ने बुद्ध के उपदेशों का कार्य रूप में परिवर्तित करने का सर्व प्रथम प्रयास किया है। वर्ग विहीन समाज की स्थापना के लिये उन्हो...
हाल की पोस्ट

हमें कौन अब तोड़ सकेगा~~~* *~~~~हम सब कच्चे धागे हैं

  *~~~हमें कौन अब तोड़ सकेगा~~~* *~~~~हम सब कच्चे धागे हैं~~~~* *पहले डर कर भाग रहे थे, अभी शर्म से भागे हैं।* *ये सपूत भारत के देखो, कितने बड़े अभागे हैं ?* छोटा काम अगर करते तो, उन्हें झिझक खाने लगती। आसपास की देख दशा, वो मन को सहलाने लगती। *छोटे मोटे काम उन्हीं पर, कब्जा है मजलूमों का।* *शानदार कपड़ा बनता है, लगे हाथ के लूमों का।* ईंट और गारा से ले कर, सभी मसालों वाले ये। पंचर जोड़ें करें वेल्डिंग, करते काम निराले ये। *मौसम के अनुसार यही तो, भुट्टा भून खिलाते हैं।* *और सिंघाड़ों को उबाल कर, कैसा रस बरसाते हैं ?* लखटकिया बन हर पत्थर को, ये ही टाँका करते हैं। नहीं मिला खाने को कुछ भी, तो ये फाँका करते हैं। *गरम गरम लोहा करते हैं, उस पर चोट लगाते हैं।* *पुरुष नहीं उनके बच्चे भी, ये करतब दिखलाते हैं।* फ़टे हुये जूतों को सिलते, और उन्हें चमकाते हैं। जो जितने भी पैसे दे दे, ये उसमें गम खाते हैं। *फेरी वाले कपड़े ले कर, घूम रहे हैं गलियों में।* *उसी उम्र के पढ़े लिखे हैं, मस्त यहाँ रँगरलियों में।* छोटे मोटे लगे खोमचे, और बतासे पानी के। बचपन के दिन बीत गये, अब आये दिवस जवानी के। *पढ़े लिखे जो दल...

मनुष्यों के लिए नैतिकता धम्म है, अनैतिकता अधर्म ।

  🌻धम्म प्रभात🌻  "चत्तारी ठानानि नरो पमत्तो,  आपज्जति परदारूपसेवी।  अपुञ्ञलाभं न निकामसेय्यं,  निन्दं ततियं निरयं  चतुत्थं। ।"           - धम्मपद: निरय वग्गो अर्थात- प्रमादी एवं  परस्त्रीगामी मनुष्य  की चार गतियां हैं- अपुण्य का लाभ,  सुख से न निद्रा, तीसरे निन्दा और  चौथे नरक ( दु:ख )  अनाथपिण्डिक श्रेष्ठी के खेमक नाम का एक स्वरूपवान भानजा था। उसे स्त्रियां  देखते ही मोहित  हो जाती थी। वह भी स्त्रियों के साथ रमण करने में रत रहता था। अनैतिक कर्म करते हुए वह पकडा जाता था। राजा के कर्माचारियों उन्हें तीन बार पकड कर राजा के सामने हाजिर  किया गया। वह अनाथपिण्डिक के भानेज होने के कारण  राजाने उसे सजा नहीं दी। उसे छोड दिया। महाश्रेष्ठी अनाथपिण्डिक ने देखा की उनका भानेज अनैतिक कर्म करता है और  सुधर ने का नाम नहीं लेता है। यह जानकर  खेमक को भगवान के पास  ले गया। श्रेष्ठी ने खेमक की बुरी आदत के विषय में भगवान को बताया। तथागत उस समय जेतवन महाविहार में थे। उन्होंने खेमक को उपदेश...

बच्चों के जन्म को व्यवसाय बना लिया गया है।

  इस ओर और अधिक ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि बच्चों के जन्म को व्यवसाय बना लिया गया है। *॥ बच्चे को जन्म देने की प्रक्रिया पर ओशो की अंतर्दृष्टी ॥* फ्रांस का एक मनोवैज्ञानिक मां के पेट से बच्चा पैदा होता है तो उसको एकदम से टब में रखता है--गरम पानी में, कुनकुने। और चकित हुआ है यह जान कर कि बच्चा इतना प्रफुल्लित होता है कि जिसका कोई हिसाब नहीं। तुम यह जान कर हैरान होओगे कि इस मनोवैज्ञानिक ने--उस मनोवैज्ञानिक का सहयोगी मेरा संन्यासी है, उस मनोवैज्ञानिक की बेटी मेरी संन्यासिनी है--पहली बार मनुष्य जाति के इतिहास में बच्चे पैदा किए हैं, जो रोते नहीं पैदा होते से, हंसते हैं। हजारों बच्चे पैदा करवाए हैं उसने। वह दाई का काम करता है। उसने बड़ी नई व्यवस्था की है। पहला काम कि बच्चे को पैदा होते से ही वह यह करता है कि उसे मां के पेट पर लिटा देता है, उसकी नाल नहीं काटता। साधारणतः पहला काम हम करते हैं कि बच्चे की नाल काटते हैं। वह पहले नाल नहीं काटता, वह पहने बच्चे को मां के पेट पर सुला देता है। क्योंकि वह पेट से ही अभी आया है, इतने जल्दी अभी मत तोड़ो। बाहर से भी मां के पेट पर लिटा देता है और बच्...

क्या RSS को दशहरे के आयोजनों में हथियारों के प्रदर्शन हेतु अनुमति लेनी होती है? यदि हाँ, तो किस कानून के तहत?

  🛑 गृह मंत्रालय का चौंकाने वाला जवाब: क्या RSS को हथियार दिखाने की खुली छूट मिली है? RTI (सूचना का अधिकार) के तहत पूछे गए बेहद गंभीर सवालों पर गृह मंत्रालय ने या तो "जानकारी उपलब्ध नहीं है" कहा या RTI कानून की धारा 2(f) का हवाला देकर जवाब देने से साफ इंकार कर दिया है। 👉 RTI में पूछे गए मुख्य सवाल: क्या RSS द्वारा दशहरे पर सार्वजनिक रूप से हथियारों (जैसे तलवारें, बंदूकें आदि) के प्रदर्शन के लिए कोई नीति, आदेश या परिपत्र जारी किया गया है? 📌 जवाब: "सूचना उपलब्ध नहीं है।" क्या 2010 से 2024 के बीच इन आयोजनों को लेकर मंत्रालय को कोई शिकायत, रिपोर्ट या जानकारी मिली है? 📌 जवाब: "सूचना उपलब्ध नहीं है।" क्या इन हथियारों की जाँच, पंजीकरण या किसी केंद्रीय/राज्य एजेंसी द्वारा निरीक्षण किया गया है? 📌 जवाब: "सूचना उपलब्ध नहीं है।" क्या RSS को दशहरे के आयोजनों में हथियारों के प्रदर्शन हेतु अनुमति लेनी होती है? यदि हाँ, तो किस कानून के तहत? 📌 जवाब: RTI की धारा 2(f) का हवाला देते हुए, "हम सलाह या स्पष्टीकरण नहीं दे सकते।" क्या ऐसे आयोजनों को लेकर ...

क्षत्रपति_शिवाजी महाराज और #क्षत्रपति शंभाजी महाराज की धोखे से हत्त्या की ब्राह्मणों ने यह भी पढ़ाना चाहिए।

  #ब्राह्मण_आतंक #ब्राह्मण_कलम कसाई है।  पहले मुगलों और अंग्रेजों के अधीन, अब मराठों के नाम पर पेशवा के अधीन बताकर इतिहास को निरन्तर गलत तरीके से प्रस्तुत जा रहा है . एनसीईआरटी के शिक्षाविदों की ऐसी भूलें गंभीर सवाल उठाती हैं। क्या ये विद्वान भारत के तथ्यात्मक इतिहास को सही रूप में प्रस्तुत करने में सक्षम हैं? इस पर गहरा संदेह है। यह सिर्फ संयोग नहीं बल्कि प्रयोग नजर आ रहा  है, देश भर में एक विचारधारा को स्थापित होने देने के लिए क्षत्रिय इतिहास को या तो दबाया गया या तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया।” ब्राह्मण वर्चस्व स्थापित किया जा रहा है।  #भिमा_कोरेगांव भी पढाया जाना चाहिए।  #क्षत्रपति_शिवाजी महाराज और #क्षत्रपति शंभाजी महाराज की धोखे से हत्त्या की ब्राह्मणों ने यह भी पढ़ाना चाहिए।  ये #पेशवा को मराठा कह रहे हैं।  जय मूलनिवासी ब्राह्मण विदेशी dna

प्रश्न - बलाई बुनकर दिवस 7अगस्त को क्यो मनाया जाता है?

  *प्रश्न - बलाई बुनकर दिवस 7अगस्त को क्यो मनाया जाता है?* ,*****************""********* *कोई *दिवस मनाना* ,ये एक फिनोमिना है। 90 के दशक के बाद से,,, गैर सवर्ण जातियों में जो राजनीतिक, शैक्षणिक जागरूकता आई है,,,, वो सांस्कृतिक विरासत के माध्यम से ,,,,, अपने आप को क्षेत्रीय मूल्यों जैसे निमाड़ी, गुजराती, मेवाड़ी , सालवी,मालवी,,,, इत्यादि से ऊपर उठ कर,,,,,,,,,,,*किसी एक चिन्ह या विशिष्ठता के साथ* एकजुट होने के रूप मे प्रकट हो रही है। आप और हम इस परिवर्तन को देखने वाली पीढ़ी है। केवल बलाई समाज की बात नही है। सभी st,sc,obc जातियां इस चरण से गुजर रही है। कृपया विचार करे 🙏 बलाई जाति उड़ीसा, पंजाब, महाराष्ट्र, गोवा ,उत्तराखंड मे भी पाई जाती है।  लेकिन इनमें कोई कॉमन सांस्कृतिक जोड़ नही है। केवल एक सांझा हथकरघे का इतिहास है,,, जिसका मशीनी उद्योग और विदेशी मिलो के कपड़े के कारण, खात्मा हो गया। 7 अगस्त 1905 के *स्वदेशी आंदोलन* में हमारे बलाई पूर्वजों ने बहुत प्रयास किए। पश्चिमी भारत में इस स्वदेशी आंदोलन में बलाई बंधुओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इससे बलाई बुनकर बंधुओं में राजनीतिक स...