भारत में जातिप्रथा

 


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            *भाग - 1 जातिप्रथा* 

👉 विषय - *भारत में जातिप्रथा?* 

*👉पुस्तक -* भारत में जातिप्रथा एवं जातिप्रथा - उन्मूलन। *------------------------------*  

✍️ *(बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर सम्पूर्ण वाङमय खंड -01से*  

*👉 चतुर्थ भाग पृष्ठ संख्या-12से 15 तक* 

 *👉पृष्ठ संख्या-06 से 24 तक* 

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 *✍️भारत में जातिप्रथा संरचना, उत्पत्ति और विकास*

 *👉🏾9 मई, 1916 को कोलंबिया यूनिवर्सिटी, न्यूयार्क, अमरीका, में आयोजित* 

 *डॉ. ए.ए. गोल्डनवाइजर गोष्ठी में नृविज्ञान पर पठित लेख* 


 *👉🏾इंडियन एंटीक्वेरी (भारतीय पुरावशेष संकलन) मई 1917, खंड 41, से* 

  

 *✍️भारत में जातिप्रथा* 


👉🏾दूसरे दृष्टिकोण से देखने पर यद्यपि ब्रह्मचर्य व्रत उन मामलों में आसान है, जहां इसे सफलता से अपनाया जाता है, लेकिन फिर भी जाति की भौतिक सुख-समृद्धि के लिए लाभदायक नहीं है। 

👉🏾यदि वह सही अर्थों में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता है और सांसारिक सुखों का त्याग कर देता है, तो वह जाति के नैतिक मूल्यों या सजातीय विवाह के लिए खतरा नहीं होगा, जैसा कि उसके सांसारिक जीवन बिताने पर होता। जहां तक भौतिक सुख-समृद्धि का प्रश्न है, ब्रह्मचारी की तरह जीवनयापन करने वाला व्यक्ति जला दिए गए व्यक्ति के समान है। प्रभावी सौहार्दपूर्ण जीवन सुनिश्चित करने के लिए जाति के सदस्यों की निर्धारित संख्या होनी चाहिए।


👉🏾विधुरों पर ब्रह्मचर्य थोपना सैद्धांतिक और व्यावहारिक, दोनों दृष्टियों से विफल रहता है।

👉🏾 यह जाति के हित में है कि वह गृहस्थ रहे। समस्या केवल यह है कि उसे जाति में से ही पत्नी सुलभ कराई जाए। शुरू में इसमें कठिनाई होती है, क्योंकि जातियों में स्त्री और पुरुष का अनुपात एक-एक का है। इस तरह किसी के दुबारा विवाह की गुंजायश नहीं होती, क्योंकि जब जातियों की परिधियां बनी होती हैं तो विवाह योग्य पुरुषों और स्त्रियों की संख्या पूरी तरह संतुलित होती है। इन परिस्थितियों में विधुर को जाति में रखने के लिए उसका पुनर्निवाह उन बालिकाओं से किया जा सकता है, जो अभी विवाह योग्य न हों। विधुरों के लिए यह यथा संभव उपाय है।

👉🏾 इस प्रकार वह जाति में बन्दा रहेगा। इस प्रकार उनके जाति से बाहर निकलने और उनकी संख्या में कमी को रोक् जा सकेगा और सजातीय विवाह वाले समाज में नैतिकता भी बनी रहेगी।


👉🏾यह स्पष्ट है कि ऐसे चार तरीके हैं, जिन्हें अपनाने से स्त्री-पुरुषों में संख्या का अनुपात बनाए रखा जा सकता है:

 *👉🏾 (1)* स्त्री को उसके मृत पति के साथ सती कर दिया जा

 *👉🏾 (2)* उसे आजीवन विधवा रखा जाए, जो जलाने से कुछ कम पीड़ादायक है,

 *👉🏾 (3)* विधुत

भारत में जातिप्रथा को ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने को बाध्य किया जाए. और

 *👉🏾 (4)* विधुर का ऐसी लड़की से विवाह कर दिया जाए, जिसकी आयु अभी विवाह योग्य न हो। हालांकि मेरे उपरोक्त विचार के अनुसार विधवा को जलाना और विधुर पर ब्रह्मचर्य व्रत थोपना सजातीय विवाह को बनाए रखने के लिए समूह के प्रयत्नों के प्रति संदेहास्पद सेवा होगी। 

👉🏾लेकिन जब साधनों को शक्ति के रूप में स्वतंत्र किया जाता है अथवा उन्हें गतिमान कर दिया जाता है, तो वे लक्ष्य बनते हैं। तब फिर ये साधन कौन सा लक्ष्य प्राप्त करते हैं। वे सजातीय विवाह की व्यवस्था को जारी रखते हैं। जब कि विभिन्न परिभाषाओं के हमारे विश्लेषण के अनुसार सजातीय विवाह और जाति एक ही बात है। अतः इन साधनों का अस्तित्व और जाति समरूप हैं, तथा जाति में इन साधनों का समावेश है।


👉🏾मेरे विचार में जाति-व्यवस्था में यह जाति की सामान्य क्रियाविधि है। अब हम अपना ध्यान इन उच्च सिद्धांतों से हटाकर हिन्दू समाज में विद्यमान जातिप्रथा और उसकी क्रियाविधि की जांच में लगाएं। मैं निःसंकोच कह सकता हूं कि अतीत के रहस्यों को खोलने वालों के मार्ग में अनेक कठिनाइयां आती हैं और निःसंदेह भारत में जाति-व्यवस्था अति प्राचीन संस्था है। 

👉🏾इन हालात में यह और भी ज्वलंत यथार्थ है कि जहां तक हिन्दुओं का संबंध है, उनके बारे में कोई आधिकारिक या लिखित संकेत नहीं हैं तथा भारतीयों का दृष्टिकोण ऐसा बन गया है कि वह इतिहास लेखन को मूर्खता मानते हैं, क्योंकि उनके लिए जगत मिथ्या है। लेकिन ये संस्थाएं जीवित रहती हैं, यद्यपि चिरकाल तक इनका लिखित प्रमाण नहीं रहता और उनके रीति-रिवाज व नैतिक मूल्य अवशेषों की भांति अपने आपमें एक इतिहास है। 

👉🏾हम अपने कर्तव्य में सफल होंगे, यदि हम अतिरेक पुरुष और अतिरेक स्त्री से संबंधित समस्याओं का हिन्दुओं द्वारा जो निदान किया गया है, उसकी जांच करें।


👉🏾सतही तौर पर देखने वालो व्यक्ति को हिन्दू समाज की सामान्य क्रियाविधि जटिल लगे, किन्तु वह स्त्रियों से संबंधित तीन असाधारण रीतियां प्रस्तुत करती है, ये हैं :

 *👉🏾1.* सती या विधवा को उसके मृत पति के साथ जलाना।

 *👉🏾2.* थोपा गया आजीवन वैधव्य, जिसके अंतर्गत एक विधवा को पुनःविवाह करने की आज्ञा नहीं है।

 *👉🏾3.* बालिका विवाह ।


👉🏾संन्यास के बाद भी विधुर में विकट लिप्सा होती है, परंतु कुछ मामलों में यह शुद्ध मानसिक कारणों से ही संभव है।


👉🏾जहां तक मैं समझता हूं, आज तक इन प्रथाओं के उद्भव की कोई वैज्ञानिक व्याख्या सामने नहीं आई है। अनेक दार्शनिक सिद्धांत इन प्रथाओं की प्रतिष्ठा में प्रतिपादित किए गए हैं, परंतु कहीं से इनके उद्भव और अस्तित्व का संकेत नहीं मिलता। सती सम्मानीय है (

 *👉🏾ए. के. कुमार स्वामी: सती ए डिफेंस आफ द ईस्टर्न वीमेन इन द सोशियोलोजिकलरिव्यू, वोल्यूम, VI, 1913)* क्योंकि यह पति-पत्नी के बीच शरीर और आत्मा की संपूर्ण एकात्मकता और श्मशान से परे तक समर्पण को दर्शाती है, क्योंकि इसमें पत्नीत्व को साकार रूप दिया गया है. जैसा कि उमा ने अच्छी तरह उस समय स्पष्ट किया है, जब उन्होंने कहा था, "हे महेश्वर, अपने पतिदेव के लिए नारी का समर्पण ही उसका सम्मान है, यही उसका शाश्वत स्वर्ग है।

 *" भावुकता में वह आगे कहती हैं: "* 

👉🏾मेरी धारणा है कि यदि आप मुझसे संतुष्ट नहीं हैं तो मेरे लिए स्वर्ग की कामना करना बेकार है।

 *"👉🏾 आजीवन वैधव्य क्यों सम्माननीय है, मैं नहीं जानता, न ही मुझे कोई ऐसा व्यक्ति मिला है, जो इसकी प्रशंसा करता हो. हालांकि इसका पालन करने वाले अनेकानेक हैं। बालिका विवाह की प्रशंसा में डॉ. केतकर कहते हैं: "* 

👉🏾एक सच्चे आस्थावान स्त्री अथवा पुरुष को विवाह सूत्र में बंधने के बाद अन्य पुरुष-स्त्री से लागव नहीं करना चाहिए। इस प्रकार की पवित्रता न केवल विवाह के उपरांत, बल्कि विवाह पूर्व भी आवश्यक है, क्योंकि चारित्र्य का केवल यही सही आदर्श है। किसी अपरिणीता को पवित्र नहीं माना जा सकता, यदि वह उस व्यक्ति के अलावा जिससे उसका विवाह होने वाला है. किसी अन्य व्यक्ति से प्रणय करती है। यदि वह ऐसा करती है तो यह पाप है। इसलिए एक लड़की के लिए यह अच्छा होगा कि कामवासना जागृत होने से पूर्व उसे यह पता होना चाहिए कि उसे किससे प्रेम करना हैं तब उसका विवाह किया जाए।


👉🏾ऐसी हवाई और कुतर्क की बातें यह तो प्रमाणित करती हैं कि ऐसी प्रथाओं को क्यों सम्मानित किया गया, परंतु हमें यह नहीं बतातीं कि ये रिवाज कैसे पड़े। मेरा यह मानना है कि इनको सम्मान देने का कारण ही यह है कि इन्हें अपनाया गया। जिस किसी को भी 18वीं शताब्दी के व्यक्तिवाद का थोडा सा ज्ञान होगा। वह मेरे कथन का सार समझ जाएगा। सदा से यह प्रथा रही है कि आंदोलनों का सर्वोपरि महत्व होना है। 

👉🏾बाद में उन्हें न्याय-संगत बनाने के लिए और उन्हें नैतिक बल देने के लिए उन्हें दार्शनिक सिद्धांतों का संबल दे दिया जाता है। इसी तरह मैं निवेदन करता हूं कि इसी कारण इन रिवाजों की प्रशंसा की गई, क्योंकि इनके चलन को प्रोत्साहन देने के लिए प्रशंसा की जरूरत थी। 

 *👉🏾प्रश्न यह है कि ये कैसे बढ़े?* 

👉🏾 मेरा विचार है कि जाति संरचना में इनकी आवश्यकता थी और उनको लोकप्रिय बनाने के लिए सिद्धांतों की बैसाखी पकड़ा दी गई। हम जानते हैं कि ये रिवाज कितने क्रूर, कष्टकारी और घातक हैं।

👉🏾 रिवाज साधन मात्र हैं, जब कि उन्हें आदर्श घोषित किया गया। परंतु यह हमें परिणामों के बारे में भ्रमित नहीं कर सकते। सरलता से कहा जा सकता है कि साधनों को आदर्श बना देना आवश्यक होता है और इस मामले में तो खासतौर से उन्हें भारी प्रेरणा देकर उत्साहित किया जाता है।

👉🏾 साधन को साध्य मान लेने में कोई हर्ज नहीं है. किन्तु हम अपने साधन की प्रकृति नहीं बदद सकते। आप कानून बना सकते हैं कि सभी बिल्लियां कुत्ते हैं, जैसे आप किसी साधनाको उद्देश्य मान सकते हैं। परंतु आप साधन की प्रकृति में परिवर्तन नहीं कर सकते। 

👉🏾अतः आप बिल्लियों को कुत्ते नहीं बना सकते। ठीक ऐसे ही साधन को साध्य मान सकते हैं। इसी कारण मेरा यह कहना ठीक है कि साधन और साध्य को एकाकार कर दिया जाए, परंतु यह कैसे उचित ठहराया जा सकता है कि जातिप्रथा और सजातीय विवाह प्रथा के लिए सतीप्रथा, आजीवन विधवा अवस्था और बालिका विवाह, विधवा स्त्री और विधुर पुरुष की समस्या के समाधान हैं। 

👉🏾सजातीय विवाह-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए ये रिवाज आवश्यक हैं, जब कि सजातीय विवाह प्रथा के अभाव में जातिप्रथा का अस्तित्व बने रहना संदेहास्पद है।


 *👉🏽क्रमशः  आगे पंचम भाग में पढ़ेगें।* 

              *------समाप्त------* 

आपने *'अम्बेडकर संदेश'* को पढ़ने के लिए अपना अमूल्य योगदान दिया, इसके लिए साधुवाद। 

🙏आप सभी प्रबुद्ध जनों को सहर्ष अवगत कराना है कि *बाबासाहब की इच्छानुकूल* एक वैचारिकी सेन्टर बनाने के लिए, रिंगरोड ग्रीन सिटी फरीदपुर सारनाथ वाराणसी,उत्तर प्रदेश  में 14000sq ft जमीन की खरीदारी हो चुकी है। अब इसका निर्माणकार्य प्रगति पर है।

  आप सभी बाबासाहब के अनुयाइयों से अनुरोध है कि यदि इस वैचारिकी सेन्टर के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान करना चाहते हैं तो,  एकाउंट नम्बर नीचे दिया गया है। आप योगदान कर सकते हैं।

👉 *S.B.I* .

    *A/C-39086814478* 

  *IFSC-SBIN0007233* 


 *BAHUJAN BODHI SAMAJ SANGHARSH SAMITI* 

में अवश्य धम्मदान करेंगे।

🙏🏻सभी बुद्विजीवियों से अनुरोध  है  धम्मदान कि स्क्रीनशॉट/ छाया प्रति भेजनें का  कष्ट करेगें।

👉   *महत्वपूर्ण सभाओं में आपको,राष्ट्रीय  पदाधिकारियों द्वारा सम्मानित किया जाएगा।* 

नोट- आपको 'डा अम्बेडकर संदेश' कैसा लगता है, इस बारे में अपने विचारों/ सुझावों से  सहर्ष अवगत कराएंगे।

इसी आशा और विश्वास के साथ 

🙏आपको नमो बुद्धाय जय भीम व बहुत बहुत साधुवाद। 

💐💐💐💐💐💐💐


 *🙏आपका मिशनरी साथी* 

            विजय कुमार बौद्ध 

             *संकलनकर्ता* 

       *"डॉ अम्बेडकर संदेश "* 

     *(सदस्य  BBS-3)* 

     *ज्ञानभूमि बौद्धगया* 

       प्रांतिय कोषाध्यक्ष 

    *ABAJKA* बिहार

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