बाबासाहेब की प्रतिमा लगेगी : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

 


बाबासाहेब की प्रतिमा लगेगी : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय


आज़ाद भारत के इतिहास में संभवतः यह पहला अवसर है जब कुछ अधिवक्ताओं ने डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा स्थापित करने का विरोध किया है। यह विरोध न केवल विचारधारा की टकराहट को उजागर करता है, बल्कि भारतीय न्याय व्यवस्था के भीतर व्याप्त जातिवादी मानसिकता की गहरी परतों को भी सामने लाता है।


गौरतलब है कि जब जयपुर हाईकोर्ट परिसर में मनु की मूर्ति स्थापित की गई, तब किसी प्रकार का विरोध नहीं हुआ। परंतु जब मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, ग्वालियर खंडपीठ में बाबा साहेब की प्रतिमा स्थापित करने की बात आई, तो कुछ सामंतवादी, मनुवादी वकील विरोध में खड़े हो गए और धमकी भरे बयान देने लगे।


परिस्थितियाँ तब बदलीं जब मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, श्री सुरेश कैत—जो स्वयं अनुसूचित जाति समुदाय से आते हैं—ने प्रतिमा स्थापना को लेकर स्पष्ट आदेश जारी किया। उन्होंने अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट का उदाहरण देते हुए कहा कि यदि सर्वोच्च न्यायालय परिसर में बाबा साहेब की प्रतिमा स्थापित हो सकती है, तो उच्च न्यायालयों में भी उनका स्मारक स्थापित किया जाना स्वाभाविक है। यह निर्णय अंबेडकरवादी विचारधारा के लिए एक महत्त्वपूर्ण विजय है।


मुख्य न्यायाधीश के इस निर्णय से पहले ही अंबेडकरवादी वकीलों ने एक आवेदन प्रस्तुत किया था, जिसमें प्रतिमा स्थापना की मांग की गई थी। 14 अप्रैल को पहली बार मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में बाबा साहेब की जयंती भी आधिकारिक रूप से मनाई गई — यह पहल भी मुख्य न्यायाधीश कैत के नेतृत्व में ही संभव हुई।


विरोध करने वाले अधिवक्ताओं में बार एसोसिएशन के अध्यक्ष पवन पाठक का नाम विशेष रूप से सामने आया है, जिन्होंने न केवल प्रतिमा का विरोध किया बल्कि सार्वजनिक रूप से आपत्तिजनक बयान भी दिए। उनके साथ एक अन्य वकील ने भी अंबेडकरवादी संगठनों को धमकाया और प्रतिमा स्थापना को ‘सनातन विरोध’ कहकर सांप्रदायिक रंग देने की चेष्टा की।


इसके विपरीत, अंबेडकरवादी वकीलों ने लगातार संयम और संवैधानिक मार्ग अपनाते हुए संघर्ष जारी रखा। उनका स्पष्ट मत है कि जब अदालत की मंशा, आदेश और अनुमति प्राप्त है, तो मूर्ति स्थापना में बाधा उत्पन्न करने वाले मुट्ठीभर लोगों पर कार्रवाई की जानी चाहिए।


यह भूमि सरकारी है, किसी निजी व्यक्ति की नहीं। फिर भी अगर कुछ वकील अपने जातिवादी पूर्वाग्रह के चलते बाबा साहेब की प्रतिमा का विरोध कर रहे हैं, तो यह संविधान और सामाजिक न्याय की भावना का सीधा अपमान है। ऐसे लोगों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही अनिवार्य है, ताकि भविष्य में कोई संविधान निर्माता के सम्मान को चुनौती न दे सके।


मुख्य न्यायाधीश का आदेश स्पष्ट है — प्रतिमा लगेगी।

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