*~~~तुम भी तो एक इकाई हो~~~*
*~~~अपने घर को आबाद करो~~~*
*हम रहें न रहें पर लगता, घबराहट उनकी बोल रही।*
*अच्छा युग आने वाला है, ये आहट सब कुछ खोल रही।*
पहले ऐसे न खड़े हुये, न पहले ऐसे बड़े हुये।
समझो तो युग ही बीत गया, हमको इन सबसे लड़े हुये।
*अवरोध लगाने वालों का, आभार व्यक्त करना होगा।*
*मिथकों से पिण्ड छुड़ाने को, खुद को सशक्त करना होगा।*
शोषक हैं सारे लोग नहीं, इन जाति व्यवस्था वालों में।
अंतर्मन की आँखें खोलो, है हुनर नहीं नक्कालों में।
*कठपुतली बन कर बैठे हैं, बस हाथ हिलाया करते हैं।*
*बातों ही बातों में देखो, वे जहर पिलाया करते हैं।*
ऐसी क्या आफत आन पड़ी, उनकी लगती है भीड़ बढ़ी।
ये बस प्रचार का जादू है, मर्दानी भी तो नहीं लड़ी।
*कुछ बिके हुये संदर्भ, चीख कर बोल रहे अपनी भाषा।*
*जो पाया वही बचाया है, टूटी उनकी भी अभिलाषा।*
ये हवा कभी गर्मी पाकर, ऊपर को उठती जाती है।
सब तितर वितर जो जाता है, घर घर में आग लगाती है।
*उनकी बेवश आवाजों में, मत समय और बर्बाद करो।*
*तुम भी तो एक इकाई हो, अपने घर को आबाद करो।*
होंगे अपने मजबूत पाँव, तब ही कुछ तो चल पाओगे।
वरना ये है माहौल अलग, इसमें फँस कर जल जाओगे।
*भक्तों को उसकी खबर नहीं, करती अब तक किल्लोल रही।*
*सब कुछ गया रसातल में, ये हवा बेरुखी डोल रही।*
*हम रहें न रहें पर लगता, घबराहट उनकी बोल रही।*
*अच्छा युग आने वाला है, ये आहट सब कुछ खोल रही।*
*मदन लाल अनंग*
द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।
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