*~~~संसद पहले इतनी ज्यादा~~~*
*~~~हो सकी कभी बदनाम नहीं~~*
*इनको देवालय में भेजो, संसद में इनका काम नहीं।*
*संसद पहले इतनी ज्यादा, हो सकी कभी बदनाम नहीं।*
मिथकों को चित्रित कर के ये, हर रूप सजाने वाले हैं।
ये नियम कायदे क्या जाने, ये घंट बजाने वाले हैं।
*ये सब ग्रंथों का बोझ लिये, पीढ़ी दर पीढ़ी डोल रहे।*
*कुछ भी तो आविष्कार नहीं, ये मंत्र झूठ के बोल रहे।*
इनका जमीर है मरा हुआ, या कह दें इनके पास नहीं।
सब हवा हवाई रचा हुआ, जिसका कोई इतिहास नहीं।
*इनको कुछ भी आभास नहीं, हर जगह छिपी चिंगारी है।*
*इनकी इस अफरा तफरी में, अब कितनी मारा मारी है।*
अनपढ़ तो आखिर अनपढ़ हैं, ये उनसे और गये बीते।
पहले तो देश ठीक ही था, अब दौड़ रहा मरते जीते।
*पर जब से नासुकरे आये, जीना भी यहाँ मुहाल हुआ।*
*खाना पीना हँसना रोना, इन सबका भी तो काल हुआ।*
हर जगह उसी का राग छिड़ा, है चलन झूठ का बढ़ा हुआ।
अदना सा एक पुजारी भी, दसवीं मंजिल पर चढ़ा हुआ।
*हर ओर अराजक खेल चला, इस रंग बिरंगी टोली का।*
*घुसपैठ हुयी है घर घर में, अंदाज है बदला बोली का।*
ये देश नहीं चल पायेगा, मंदिर की घंटी वालों से।
अब शर्म हया भी नहीं बची, हम देख रहे हैं सालों से।
*नारों का प्रचलन गर्म हुआ, पर मर्म नहीं पहचाना है।*
*अब मूल नहीं पहले से हैं, अब बदला हुआ जमाना है।*
हैं सभी रोष में घूम रहे, वे ढलने देंगे शाम नहीं।
अनवरत लड़ाई चलनी है, करना बिल्कुल आराम नहीं।
*इनको देवालय में भेजो, संसद में इनका काम नहीं।*
*संसद पहले इतनी ज्यादा, हो सकी कभी बदनाम नहीं।*
*मदन लाल अनंग*
द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।
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