*धम्मभूमि -* श्रेष्ठ जीवन के लिए एक आंदोलन...
☸️🎷त्रिविध पावन पर्व #बुद्ध_पूर्णिमा"(बुद्ध जयंती) 12 मई 2025🎷☸️
*विश्व को शांति और मानवता का संदेश देने वाले, करुणा के सागर, #महाकारुणिक_सम्यकसम्म_बुद्ध का #जन्म, #ज्ञान_प्राप्ति, #महापरिनिर्वाण इसी #वैशाख_पूर्णिमा को हुआ था। इस #त्रिविध_पावन_पर्व_बुद्ध_पूर्णिमा"(बुद्ध जयंती) महोत्सव 12 मई 2025 की विश्व के सभी बौद्धों, बुद्ध अनुयायियों के साथ-साथ सभी भारत देशबासियों को हार्दिक बधाई अंनत मंगलकामनाएं☸️🌹🙏🏻*
"महाकारुणिक सम्यकसम्म बुद्ध" के मार्ग का अनुसरण कर आप और आपका परिवार सदैव बुद्ध की अनुकम्पा के पात्र बने रहे ऐसी मंगल कामना करते हैं🌹🙏🏻
मनोपुब्बड्डमा धम्मा, मनोसेट्ठा मनोमय।
मनसा चे पदुट्ठेन, भासति वा करोति वा।
ततो नं दुक्खमन्वेति, चक्कं व वहतो पदं।।
👉🏼इसका अर्थ है- *मन सभी प्रकार की प्रवृत्तियों का अगवा है,* मन मनोमय है, मन अति सुंदर है, मन ही सबसे महत्वपूर्ण है। *दुनिया मे जो भी कार्य हो रहे हैं वे सभी मन से ही हो रहे हैं।* यदि *मन में बुरा विचार है तब व्यक्ति मन से बुरा ही सोचता है। वह बुरा ही बोलता है तब वह बुरा ही कार्य करता है।*
*👉🏼जब भी कोई व्यक्ति बुरा कार्य करेगा तो उसके जीवन मे दुख ही आएंगे और वे कभी भी साथ नही छोड़ेंगे।* जैसे बैल के गर्दन पर गाड़ी जुड़ी होती है और गाड़ी में बोझ लदा है, बोझ ही दुख है, बैल चाहे तेज चले, चाहे दौड़े या फिर धीरे चले या रुक जाए, लेकिन बोझ चाहे तो निरंतर गर्दन पर ही रहेगा। ठीक ऐसे ही दुख है। मन में बुरे विचार है तो बुरा ही बोलेंगे, बुरा ही करेंगे, बुरे कार्य का परिणाम ही दुख है, वह जीवन भर साथ रहेगा, कभी-भी साथ नही छिड़ेगा।
👉🏼यह दुख केवल मन मे बुरा सोचने का परिणाम है।
यद्यपि यहां हमें केवल दुख ही नजर आता है, हमे केवल परिणाम पर ही ध्यान केंद्रित करते है। परिणाम यथार्थ में नजर आता है। *#जीवन में #दुख की अवस्था को समझा जा सकता है* क्योंकि दुख बार-बार ध्यान आकर्षित करते हैं इसलिए व्यक्ति केवल दुख की ही चर्चा करता है। वह दुख से उत्पन्न होने वाली अनुभूति और उसके प्रभाव पर चर्चा करता है। यदि कोई समझदार व्यक्ति आ भी जाता है, तो वह उपचार के संबंध में दवा देता है, परहेज बताता है। यदि कोई पण्डा-पुरोहित, ज्योतिषी आदि के संपर्क में आ जाए तो वह नित्य नए कर्मकांडों में उलझकर दुख के स्थायित्व पर काम करने लगता है और इस प्रकार से व्यक्ति जीवन पर्यन्त दुखी रहता है। वह न तो इससे बाहर निकलने का प्रयास करता है और न ही इसके कारण को जानने की कोई कोशिश नही करता है। जीवन की इस अवस्था को व्यक्तिगत नियति मानकर स्वीकार कर लेता है। यहां समस्याओं पर चर्चाएं तो होती है परन्तु कारण और समाधान गौण ही रहते हैं।
महाकारुणिक सम्यकसम्म बुद्ध के सत्य, अहिंसा, करुणा, मैत्री, विश्वशान्ति एवं बंधुत्व के संदेश को जन जन तक पहचायें🌹🙏🏻
☸️भवतु सब्ब मंगलं☸️
🌹सबका मंगल हो🌹
☸️🐘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय🐘☸️
राजरत्न बौद्घ
प्रतिनिधि बौद्ध समाज (म.प्र.)
प्रतिनिधि धम्मभूमि (म.प्र.)