*~~~उनको शायद पता नहीं है~~~*
*~~~~डूब रही है नाव पुरानी~~~~*
*अपनी मंजिल दूर कहाँ है, हर कोई मजबूर कहाँ है ?*
*कदम चलेंगे तब जानेंगे, छिपा हुआ वो नूर कहाँ है ?*
सदी बहुत बदनाम हुयी है, चलते चलते शाम हुयी है।
उनकी बातें यहीं छोड़ दो, वहाँ दशहरी आम हुयी है।
*कहीं बरसते शोले होंगे, वे उस पर भी बोले होंगे।*
*नशा उतरने से पहले ही, राज अनेकों खोले होंगे।*
तन्हाई में भी मस्ती है, डूब गयी सारी बस्ती है।
मंहगाई का रूप समझ लो, बोतल तो फिर भी सस्ती है।
*वे सबको समझाने वाले, रूप बदल कर आने वाले।*
*उनको भी सब पता रहा है, मुँह से छीने गये निवाले।*
निर्दयता का जोर चला है, देखो चारो ओर चला है।
इंसानों में पैदा हो कर, देखो कहाँ कठोर चला है ?
*किसने अब तक दी कुर्बानी, बहुत चली है जंग जुबानी।*
*उनको शायद पता नहीं है, डूब रही है नाव पुरानी।*
क्यों इंसान हुआ बहरा है, चेहरे पर चेहरा ठहरा है।
समझ नहीं आयेगा सबको, शायद राज बहुत गहरा है।
*पाठ पुराना रटने वाले, नहीं किसी से पटने वाले।*
*लोग कसम खा के निकले हैं, नहीं राह से हटने वाले।*
नहीं किसी से डरने वाले, वारा न्यारा करने वाले।
निकल पड़े हैं मैदानों में, जीने वाले मरने वाले।
*जीने का दस्तूर कहाँ है, योवन भी भरपूर कहाँ है ?*
*कुछ दर्पण में देख रही हैं, माथे का सिन्दूर कहाँ है ?*
*अपनी मंजिल दूर कहाँ है, हर कोई मजबूर कहाँ है ?*
*कदम चलेंगे तब जानेंगे, छिपा हुआ वो नूर कहाँ है ?*
*मदन लाल अनंग*
द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।
*1-* वैचारिक खोज बीन के आधार पर समसामयिक, तर्कसंगत और अकाट्य लेखन की प्रक्रिया *मध्यम मार्ग समन्वय समिति* के माध्यम से जारी *2300 से अधिक लेख/रचनायें* सोशल मीडिया पर निरंतरता बनाये हुए हैं।
*2-* कृपया कापी राइट का उल्लंघन न करें तथा रचनाओं को अधिक से अधिक अग्रसारित करें।
*3-* यदि आप सोशल मीडिया पर प्रसारित पूर्व की रचनाओं को पढ़ना चाहते हैं तो कृपया आप *अनंग साहब* के फेसबुक मित्र बनकर *मध्यम मार्ग समन्वय समिति* पेज पर जाकर पढ़ सकते हैं।
*4- सम्पर्क सूत्र~*
मो. न. 9450155040