उनको शायद पता नहीं है~~~* *~~~~डूब रही है नाव पुरानी

 


*~~~उनको शायद पता नहीं है~~~*

*~~~~डूब रही है नाव पुरानी~~~~*


*अपनी मंजिल दूर कहाँ है, हर कोई मजबूर कहाँ है ?*

*कदम चलेंगे तब जानेंगे, छिपा हुआ वो नूर कहाँ है ?*

सदी बहुत बदनाम हुयी है, चलते चलते शाम हुयी है।

उनकी बातें यहीं छोड़ दो, वहाँ दशहरी आम हुयी है।

*कहीं बरसते शोले होंगे, वे उस पर भी बोले होंगे।*

*नशा उतरने से पहले ही, राज अनेकों खोले होंगे।*

तन्हाई में भी मस्ती है, डूब गयी सारी बस्ती है।

मंहगाई का रूप समझ लो, बोतल तो फिर भी सस्ती है।

*वे सबको समझाने वाले, रूप बदल कर आने वाले।*

*उनको भी सब पता रहा है, मुँह से छीने गये निवाले।*

निर्दयता का जोर चला है, देखो चारो ओर चला है।

इंसानों में पैदा हो कर, देखो कहाँ कठोर चला है ?

*किसने अब तक दी कुर्बानी, बहुत चली है जंग जुबानी।*

*उनको शायद पता नहीं है, डूब रही है नाव पुरानी।*

क्यों इंसान हुआ बहरा है, चेहरे पर चेहरा ठहरा है।

समझ नहीं आयेगा सबको, शायद राज बहुत गहरा है।

*पाठ पुराना रटने वाले, नहीं किसी से पटने वाले।*

*लोग कसम खा के निकले हैं, नहीं राह से हटने वाले।*

नहीं किसी से डरने वाले, वारा न्यारा करने वाले।

निकल पड़े हैं मैदानों में, जीने वाले मरने वाले।

*जीने का दस्तूर कहाँ है, योवन भी भरपूर कहाँ है ?*

*कुछ दर्पण में देख रही हैं, माथे का सिन्दूर कहाँ है ?*

*अपनी मंजिल दूर कहाँ है, हर कोई मजबूर कहाँ है ?*

*कदम चलेंगे तब जानेंगे, छिपा हुआ वो नूर कहाँ है ?*



*मदन लाल अनंग*

द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।

*1-*  वैचारिक खोज बीन के आधार पर समसामयिक, तर्कसंगत और अकाट्य लेखन की प्रक्रिया *मध्यम मार्ग समन्वय समिति* के माध्यम से जारी  *2300 से अधिक लेख/रचनायें* सोशल मीडिया पर निरंतरता बनाये हुए हैं।

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