*ब्राह्मण राम को क्यों पूजते हैं?*
ब्राह्मण अपने से नीच क्षत्रिय की पूजा कभी भी नहीं करेगा❗
ब्राह्मणों ने हमेशा ही लोगों को गुमराह किया है. वास्तव में ब्राह्मण जिस राम को पूजते है वह क्षत्रिय नहीं बल्कि ब्राह्मण था, जिसका वास्तविक नाम पुष्यमित्र सुंग था, जो कि बौद्धों का कत्लेआम कराने वाला ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र सुंग था।
बुद्धमय भारत का अंतिम सम्राट बृहदत मौर्य ने दया करके अनाथ ब्राह्मण पुष्यमित्र सुंग को अपने सेना में भर्ती कर लिया. धीर धीरे पुष्यमित्र सुंग बृहदत मौर्य से नजदीकी बनाने की चाल चलने लगा. इसी शाजिस से पुष्यमित्र सुंग ने अपनी बहन का विवाह बृहदत मौर्य से करके साला बन गया और बदले में बृहदत मौर्य ने पुष्यमित्र सुंग को सेनापति बना दिया।
बस फिर क्या था, मौर्य काल में ब्राह्मणों का जो वर्चस्व खत्म हो गया था उस कारण ब्राह्मण बदले की आग में अंदर ही अंदर झुलस रहे थे और मौके के तलाश मे थे. इसलिए ब्राह्मणों ने पुष्यमित्र सुंग को बृहदत मौर्य के खिलाफ इतना नफरत भर दिया कि एक दिन सुबह दरबार आते समय ही पुष्यमित्र सुंग ने बृहदत मौर्य के पीठ में तलवार ⚔ घोंप दिया.
चूंकि सेना उसके कब्जे थी इसलिए किसी ने विरोध नहीं किया. इस तरह से पुष्यमित्र सुंग साकेत नगरी का, जो कि उस समय बौद्धों का बहुत बड़ा व्यापारिक केंद्र था, उस साकेत नगरी का राजा बन गया और बौद्धों का कत्लेआम कराना शुरू कर दिया.
बौद्धों के सिर काटकर लाने पर 100 सोने की मुद्रा ईनाम रख दिया. फिर क्या था साकेत नगरी में कत्लेआम हुआ. एक एक बौद्ध भिक्षु और बुद्धिष्ट की हत्या कि गयी, यहां तक की साकेत में एक भी योद्धा नहीं बचा, इसलिए ही साकेत का नाम अ+ योद्धा =अयोद्धा अर्थात योद्धा रहित, तब से साकेत नगरी को अयोध्या नगरी पुकारा जाने लगा।
जो बौद्ध या बौद्ध भिक्षु भाग सकते थे, दूसरे देशों में चले गए, जिसके कारण दूसरे देशों में बुद्ध धम्म फैल गया. आज भी अयोध्या के साथ बहने वाली नदी का नाम घाघरा नदी है, सरयू नदी का कोई इतिहास नहीं है , कोई सरकारी रिकार्ड नहीं है. गोंडा और अम्बेडकर नगर के बीच अयोध्या के आस पास के लगभग 15 किलोमीटर की दूरी के घाघरा नदी के हिस्से को ही सरयू नदी कहते हैं.
क्योंकि बौद्धो के कटे हुए सिर को नदी में फेंक दिया जाता था, इसलिए ही नदी में जहां वंहा घुमते सिर ही सिर मिलते थे, इसलिए सर +युक्त =सर युक्त से नदी को सरयू नाम पड गया और घाघरा नदी के 15 किलोमीटर के एरिया को सरयू नदी कहते हैं।
बौद्धो का कत्लेआम इतना ज्यादा हुआ कि कुछ लोग सोने की मुद्रा के लालच में एक ही सिर को बार बार दिखाकर ज्यादा से ज्यादा सोने की मुद्रा लेने लगे, ये पता लगने पर पुष्यमित्र सुंग ने सिर को फोड़ने का आदेश दे दिया था, जिससे कि दुबारा सिर दिखाकर सोने की मुद्रा न ले सके. आज नारियल फोड़ने की कुप्रथा ईसी का दूसरा रूप है।
इसीलिए ही ब्राह्मणों ने पुष्यमित्र सुंग को राम बनाकर, अग्नि शर्मा जिसका नाम वाल्मीकि पड़ा था, उस वाल्मीकि ने काल्पनिक रामायण लिखा था और शूद्रों को ही भालू बंदर नाम दिया था।
आज ब्राह्मण जिस राम को पूजते है वह क्षत्रिय नही ब्राह्मण था और उसका वास्तविक नाम पुष्यमित्र सुंग ही है .