चन्दा धन्दा,लाल बत्ती एवं सत्ता सुख के लालची तत्वों ने बुध्दगया मुक्ति आंदोलन को मिट्टी में मिला दिया*? *पूरी रिपोर्ट पढ़ें, सही जानकारी हासिल करें एवं शेयर करे

 


*महाबोधि महाविहार बुध्दगया प्रबंधन विवाद की सुनवाई सड़क पर नहीं, सुप्रीम कोर्ट में होगी, महाबोधि मुक्ति आंदोलन की आड़ में नकली बौध्द भिक्षुओं एवं अबौध्दों ने बुद्ध की विचारधारा का कत्लेआम किया, पढ़े कवर स्टोरी और बौद्ध मित्रों को शेयर करें:अभय रत्न बौद्ध*

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*चन्दा धन्दा,लाल बत्ती एवं सत्ता सुख के लालची तत्वों ने बुध्दगया मुक्ति आंदोलन को मिट्टी में मिला दिया*? *पूरी रिपोर्ट पढ़ें, सही जानकारी हासिल करें एवं शेयर करे*।

       विश्व धरोहर महाबोधि महाविहार बोधगया का प्रबंधन भारतीय बौध्दों के हाथों में हो, यह विवाद सुप्रीम कोर्ट में सुना जाएगा। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आज 16 मई 2025 को सुनवाई के दौरान बोधगया टेंपल मैनेजमेंट कमेटी एक्ट- 1949 (BTMC-Act)को रद्द करने से संबंधित रिट याचिकाओं की अंतिम सुनवाई 29 जुलाई 2025 के लिए निर्धारित की है। न्यायमूर्ति दीपंकर दत्ता और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. बराले  ने 12 वर्षों की देरी के लिए सरकारी वकीलों को फटकार लगाई और स्पष्ट किया कि अब कोई स्थागन आदेश नहीं दिया जाएगा। कोर्ट ने सभी पक्षों को जबाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है ,जिसकी अंतिम सुनवाई 29  जुलाई 2025 को होगी।

      इतिहास के आईने में देखा जाए तो! बुध्दगया महाबोधि महाविहार का निर्माण 260 ईसा पूर्व प्रियदर्शी बौद्ध सम्राट अशोक द्वारा कराया गया था। आजादी से पूर्व महाबोधि महाविहार और उसके आसपास की भूमि पर स्थानीय महंत का कब्जा था जो की 1891 में बुद्धिस्ट मिशनरी अनागारिक धम्मपाल जी ने श्रीलंका से आकर महाबोधि महाविहार के विकास, सौन्दर्यीकरण एवं प्रबंधन के लिए अथक प्रयास किया। उन्हीं के प्रयासों का नतीजा था कि 1922 में  बुध्दगया महाबोधि महाविहार के संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने डॉ राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में एक समिति गठित कर दी, बाद में इसी समिति की सिफारिश पर 1949 में बिहार सरकार ने एक अधिनियम पारित कर "बुध्दगया महाबोधि महाविहार (मंदिर) प्रबंधन एक्ट -1949" बना दिया। यदि अनागारिक धम्मपाल जी ने अथक प्रयास नहीं किया होता तो! आज तिरुपति बालाजी जैसे प्राचीन बौद्ध मठों की तरह "महाबोधि महाविहार बोधगया" पर पूर्ण रूप से मनुवादियों ब्राह्मणवादी तत्वों का कब्जा होता, क्योंकि 1947 से पूर्व और आजादी के समय भारत में कोई भी बौद्ध संगठन सक्रिय नहीं था और भारत में बौद्ध विहारों की स्वतंत्र पहचान के लिए "बुद्ध विहार मॉनेस्ट्री एक्ट" अभी तक कानूनी रूप से पारित नहीं किया गया है ।बौद्ध विहारों को मंदिर एवं टेंपल कहा जाता है, लिखा जाता है।     

         महाबोधि महाविहार के विकास एवं उत्थान के लिए म्यांमार (वर्मा)देश के शासक एवं बौद्ध भिक्षु तथा बौद्ध अनुयायी सक्रिय थे। इसी कड़ी में श्रीलंका निवासी अनागारिक धम्मपाल जी जुड़ गए। अनागारिक धम्मपाल जी महाबोधि महाविहार बोधगया के विकास के लिए तन- मन- धन से समर्पित हो गए और इसके लिए भारत की आजादी के आंदोलन में शामिल हुए और जेल भी गए। तत्कालीन कांग्रेस के नेताओं महात्मा गांधी, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, पंडित गोविंद बल्लभ पंत आदि ने अनागारिक धम्मपाल जी को आश्वासन दिया था कि भारत से अंग्रेजों के जाने के बाद, और कांग्रेस को आजादी मिलने पर हम महाबोधि महाविहार की सम्पूर्ण जिम्मेदारी आपको देंगे किंतु आजादी मिलने के बाद तत्कालीन ब्राह्मणवादी कांग्रेसी नेताओं ने अनागारिक धम्मपाल जी के साथ धोखा किया तथा भारत के संविधान में बौद्ध धर्म को हिन्दू धर्म के साथ घालमेल कर बौद्धों को स्वतंत्र कानूनी अधिकारों एवं पहचान से वंचित कर गुलामी की जिंदगी जीने को मजबूर कर दिया गया। अनागरिक धम्मपाल जी ने जीते जी महाबोधि महाविहार को लेकर वर्ष 1895 में जिला न्यायालय गया एवं         अंग्रेजी हुकूमत में कोलकाता उच्च न्यायालय पश्चिम बंगाल में महंत के खिलाफ  मुकदमा दायर किया किंतु उन्हें वहां हार का मुंह देखना पड़ा। इस मामले को लेकर अनागारिक धम्मपाल जी ने पुनः न्यायालय में सिविलअपील नहीं की और अपनी संस्था "महाबोधि सोसाइटी" बनाकर उसके विकास कार्यों में लग गए और भारत में जिसकी शाखाएं  भगवान बुद्ध की अभिधम्मा उपदेश स्थली संकिसा फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश, सारनाथ, कोलकाता मुख्यालय, बुध्दगया, मंदिर मार्ग नई दिल्ली आदि प्रमुख शहरों में स्थापित की और आजीवन बौद्ध धम्म के प्रचार- प्रसार में व्यस्त रहे। बौद्ध विरासत बचाने में अनागारिक धर्मपाल जी का योगदान हमेशा स्मरणीय रहेगा।

         भारत में आजादी आने के बाद केंद्र सरकार ने कानून बनाकर बुध्दगया महाबोधि महाविहार की भूमि से महेंद्र घमंडी गिरी को बेदखल कर दिया और महाबोधि महाविहार का प्रबंधन कानून बना दिया। बुध्दगया महाबोधि महाबिहार (मंदिर) प्रबंधन एक्ट- 1949 के अनुसार प्रबंधन कमेटी में 4 बौध्द और 4 हिंदू सदस्य होते हैं जिसमें गया जिले के जिलाधिकारी इस कमेटी के पदेन अध्यक्ष होते हैं।

      विश्व धरोहर महाबोधि महाविहार प्रबंधन की मांग को लेकर पुनः बौध्दों का आंदोलन वर्ष 1990 में सामने आया। वर्ष 1992 में बिहार सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री लालू प्रसाद यादव ने बुध्दगया मंदिर प्रबंधन विवाद की समाप्ति के लिए एक नया विधेयक का प्रारूप तैयार करवाया जिसमें बौध्दों के आठ प्रतिनिधियों को शामिल किए जाने की योजना बनाई गई थी। जिसे बाद में किन्हीं कारणो से खारिज कर दिया गया।

     वर्ष 2002 में महाबोधि महाविहार को विश्व धरोहर घोषित किया गया और 2003 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग भारत सरकार ने महाबोधि महाविहार बुध्दगया का प्रबंधन बौध्दों को सौंपने का प्रस्ताव बिहार सरकार को भेजा जिसे तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती राबड़ी देवी ने 8 मई 2004 को खारिज कर दिया।

     इसकी जानकारी बुध्दगया मुक्ति आंदोलन के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष भदन्त आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई को मिलने पर यह आंदोलन बुध्दगया से पटना होते हुए दिल्ली तक फैला दिया गया। इसी समय आंदोलन से जुड़े भंते प्रज्ञाशील जी को बुध्दगया मंदिर प्रबंधन कमेटी (BTMC)का "पदेन सचिव" मनोनीत किया गया। जिन्होनें 6 वर्षों तक सत्ता सुख का लाभ लिया। 

      तत्पश्चात केंद्र की भाजपा सरकार ने भदन्त आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, भारत सरकार में सदस्य मनोनीत कर राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त लाल बत्ती का तोहफा दे दिया।

       बुध्दगया मुक्ति आंदोलन में भारत के लाखों लोगों ने हिस्सा लिया। दिल्ली के लाल किला मैदान के पीछे करीब तीन लाख लोगों की भीड़ में हजारों बौद्ध कार्यकर्ताओं को दिल्ली पुलिस के डंडों से लहू लोहान होना पड़ा। तत्पश्चात बुध्दगया मुक्ति आंदोलन का नेतृत्व सत्ताधारियों के पैर चाटने लगा।

     बुध्दगया मुक्ति आंदोलन का धरना दिल्ली के संसद मार्ग स्थित जंतर - मंतर पर चल रहा था। इस धरने में बसपा प्रमुख श्री कांशी राम जी शामिल हुए तो! राजसत्ता का खिलाड़ी जनता दल से राज्यसभा सांसद बौद्ध भिक्षु धम्मावीरियो को लगा कि बुध्दगया मुक्ति आंदोलन का सिला(Credit) श्री कांशीराम जी को मिलेगा तो! भिक्षु धम्मावीरियो ने श्री लालू यादव को (Misguide) भड़का  दिया। जिससे महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन का नेतृत्व निजी स्वार्थ,सत्ता के लालच, अहंकार भरी  कार्य शैली के चलते बुध्दगया महाबोधि महाविहार मुक्त होते -होते सत्ता भोगियों की भेंट चढ़ गया।

       इसके बाद बुध्दगया मुक्ति आंदोलन के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष भदन्त आनन्द महाथेरो जी  के अस्वस्थ होने पर महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन में रुकावट आ गई। बुध्दगया मुक्ति आंदोलन से जुड़े भिक्षु प्रज्ञाशील, पूर्व सदस्य (BTMC) ने बुध्दगया मुक्ति आंदोलन से इस्तीफा दे दिया और और अखिल भारतीय भिक्षु महासंघ के आजीवन सदस्यता भर्ती अभियान में आयी लाखों की धनराशि का ब्योरा मांगने पर अखिल भारतीय भिक्षु महासंघ से भी इस्तीफा दे दिया तथा थाईलैंड की यात्रा पर चले गए।

           महाबोधि महाविहार बुद्धगया के आंदोलन से जुड़े नेताओं एवं भिक्खुओं का यह आंदोलन कई गुटों में बट कर मात्र "चंदा खाऊ" आंदोलन बनकर रह गया है। पुनः 12 फरवरी 2025 को भिक्षु प्रज्ञा शील थाईलैंड से वापस भारत आकर श्री आकाश लामा के साथ मिलकर महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन  भारत के मान्यता प्राप्त भिक्षु संघ को शामिल किये बिना शुरू करते है। अबौध्दों को पीली शर्ट पहनाकर एवं भगवा चीवर ओढ़ाकर नकली भिक्षुओं एवं अबौध्दों ने "महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन" के नाम पर चंदा वसूली का गैर- कानूनी खेल शुरू कर दिया गया है । जिसकी बंदरबांट में महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन के कथित धरना स्थल से लेकर  भगवान बुद्ध की ज्ञानस्थली महाबोधि महाविहार तक मारपीट, हिंसा, आपस में एक दूसरे को नीचा दिखाने, स्थानीय पुलिस में शिकायत दर्ज कराने , एक दूसरे को जेल भिजवाने का सफर शुरू हो गया। तथाकथित आंदोलनकारियों की कार्य शैली ने बुद्ध की विचारधारा करुणा, मैत्री (Unity) की हत्या कर दी गई।

          भारत के बौद्धों के संज्ञान में लाना है कि महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन बुद्धगया शुरू करने के लिए 12  फरवरी 2025 से पहले बौद्ध संगठनों की राष्ट्रीय समन्वय समिति भारत के राष्ट्रीय सलाहकार भाई रमेश बैंकर बौद्ध ने ₹50,000 श्री आकाश लामा एवं भिक्षु प्रज्ञाशील को आर्थिक सहयोग के रूप में दिया था। तत्पश्चात अस्वस्थ होने के बावजूद बौद्ध संगठनों के राष्ट्रीय महासचिव आयुष्मान प्रज्ञा मित्र बौद्ध जयपुर से अपनी टीम के साथ कथित महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन में हिस्सा लिया और लाखों रुपए का आर्थिक सहयोग भी दिया।

         इस आंदोलन को राष्ट्रव्यापी बनाने के लिए करुणा, मैत्री, राष्ट्रीय एकता (National Unity) को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर स्वयं (अभय रत्न बौद्ध)  मेरे द्वारा "चलो !बुद्ध गया चलो!!" सोशल मीडिया पर देश के सभी राज्यों के बौद्धों में सूचना भेजी गई और महाबोधि महाविहार से जुड़े सैकड़ो साल पुराने प्राचीन प्रमाणिक दस्तावेज 28 मार्च 2025 को भिक्षु प्रज्ञाशील एवं श्री आकाश लामा को बुध्दगया स्थित धरना स्थल पर जाकर दिए गए।

            बौद्ध संगठनों की राष्ट्रीय समन्वय समिति भारत के राष्ट्रीय संयोजक भिक्षु महेंद्र महाथेरो, अध्यक्ष- भदन्त ज्ञानेश्वर बुद्ध विहार कुशीनगर एवं बोधिसत्त बाबासाहेब अंबेडकर जी के गुरु भाई ,विश्व शांति नायक, म्यांमार सरकार के सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित "अभिध्वजा महारथा गुरु" भदन्त ए.बी.ज्ञानेश्वर महाथेरो, अध्यक्ष- कुशीनगर भिक्षु संघ के सानिध्य में तथा भिक्षु डॉ. यू. चंद्रमुनि महाथेरो, भिक्षु इंचार्ज महाबोधि मेडिटेशन सेंटर बु़ध्दगया एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष -बौध्द संगठनों की राष्ट्रीय समन्वय समिति भारत की अध्यक्षता में दिनांक 29 मार्च 2025 को  "मैत्री एवं राष्ट्रीय एकता" (National Unity) को लेकर विशेष बैठक  राष्ट्रीय बौद्ध धम्म संसद के मुख्यालय महाबोधि मेडिटेशन सेंटर बोधगया में बुलाई गई। मैत्री एवं राष्ट्रीय एकता के लिए बुलाई गई बैठक में श्री आकाश लामा एवं भिक्षु प्रज्ञाशील को भिक्षु डॉ.चंद्रामुनि महाथेरो जी के द्वारा आमंत्रित किया गया था ।दोनों ने आने का आमंत्रण स्वीकार किया था, किंतु ऐन मौके पर दोनो ने बैठक में भाग नहीं लिया जबकि कुशीनगर के भिक्षु महेंद्र महाथेरो एवं भिक्षु डॉ. चंद्रमुनी महाथेरो  केआवाहन पर अखिल भारतीय भि‌क्षु संघ, अखिल भारतीय भिक्षु महासंघ, संघराजा भिक्षु महासभा, एवं भारतीय भिक्षुणी संघ महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन के साझा मंच पर बैठने के लिए आम सहमति बनी। भारतीय भिक्षु संघों एवं भिक्षुणी संघ की कार्य योजना शुरू होने से पहले ही कथित महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन के  संचालक आकाश लामा के सहयोगियों द्वारा "चंदा धंधा" के खेल में आचरण विहीन बनावटी बौद्ध भिक्षुओं एवं समर्थको मैं फूट पड़ गई और यह आंदोलन पर मारपीट एवं हिंसा की भेंट चढ़ गया।

              

       जबकि विश्व धरोहर महाबोधि महाविहार (मंदिर) प्रबंधन की सुनवाई देश की सबसे बड़ी अदालत उच्चतम न्यायालय नई दिल्ली में चल रही है और इस मामले को लेकर सबसे पहले बौध्द  मानवाधिकार कार्यकर्ता दार्जिलिंग निवासी बांगदी शेरिगं जी के द्वारा रिट पिटीशन (सिविल)संख्या:41/2012, दूसरी रिट पिटीशन (सिविल) संख्या: 380/2012 भदन्त आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई नागपुर तथा अन्य तीसरी रिट पिटीशन (सिविल) संख्या: 832/2013 श्री अरूप ब्रह्मचारी उर्फ स्वामी जी बोधगया के द्वारा दायर की गई है।

    माननीय सुप्रीम कोर्ट में बौद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता बांगदी शेरिगं एवं एवं भदन्त आर्य सुरेई ससाई कि याचिकाओं में महाबोधि महाविहार मंदिर प्रबंधन एक्ट -1949 की धारा तीन को विशेष कर चुनौती दी गई है और बोधगया महाबोधि महाविहार का प्रबंधन पूर्ण रूप से बौध्दों को सौंपने की मांग की गई है।

      श्री अरुप ब्रह्मचारी उर्फ स्वामी जी की याचिका में कहा गया है  कि यूनेस्को की सिफारिशों के आधार पर

महाबोधि महाविहार को "राष्ट्रीय स्मारक" बनाया जाय।

     राष्ट्रीय अल्पसंख्यक  आयोग भारत सरकार के द्वारा सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री राजीव धवन जी को "बुध्दगया महाबोधि महाविहार" को बचाने के लिए नियुक्त किया गया और उन्हें Legal Opinion देने के लिए कहा गया। जो "लीगल रिपोर्ट"  दिनांक: 27 मार्च 2009 को जारी की गई। इंटरनेशनल बुद्धिस्ट फोरम फॉर पीस के अध्यक्ष एडवोकेट आनंद एस. जोंधले ने भी एक हस्तक्षेप याचिका  सुप्रीम कोर्ट में दायर की है।

    अप्रैल 2025 को एक अन्य याचिका Civil  petition No.:19102/2025 राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की पूर्व सदस्या एवं राज्य मंत्री महाराष्ट्र सरकार ,एडवोकेट सुलेखा ताई नलिनी ताई नरायणराव कुंभारे अध्यक्षा- ओगावा सोसाइटी ड्रैगन पैलेस नागपुर द्वारा महाबोधि महाविहार का पूर्ण प्रबंधन बौद्धों को सौपे जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है। 

          इस याचिका में महाबोधि महाविहार मंदिर प्रबंधन अधिनियम- 1949 को असंवैधानिक घोषित करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 13 ,25, 26 और 29 के प्रावधानों का सहारा लिया गया है, क्योंकि यह अधिनियम भारत का संविधान लागू होने से पहले का था, इसलिए यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 के अनुसार 26 जनवरी 1950 से पहले सर्वेक्षण अधिनियम को निरस्त करने का प्रावधान करता है, इसके बाद भी महाबोधि महाविहार बुद्धगया मंदिरअधिनियम- 1949 अभी भी अस्तित्व में है जिसमें चार हिंदू चार बौद्ध सदस्यों के साथ जिला कलेक्टर गया पदेन अध्यक्ष शामिल होते हैं जो संविधान  के मौलिक अधिकारों का हनन है जबकि संविधान का अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यक समुदायों के सांस्कृतिक अधिकारों की सुरक्षा सुरक्षित करता है, इसलिए बोधगया टेंपल मैनेजमेंट एक्ट -1949 भारत के संविधान में वर्णित अनुच्छेदों के अनुरूप नहीं है।

            याचिका में मांग की गई है कि जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर 2019 को राम जन्मभूमि को लेकर अयोध्या मामले में बिना किसी प्रमाण के आस्था के नाम पर फैसला दिया। इसी तरह विश्व के बौद्धों की आस्था और भावनाओं का सम्मान करते हुए बीटीएमसी एक्ट -1949 में संशोधन किया जाए और महाबोधि महाविहार बुध्दगया का प्रबंध बौद्धों को सौंपा जाना चाहिए।

          *16 मई 2025 को माननीय सुप्रीम कोर्ट में महाबोधि महाविहार बुद्धगया मामले में बौद्ध संगठनों की राष्ट्रीय समन्वय समिति भारत में "महाराष्ट्र राज्य इकाई कानूनी प्रकोष्ठ" के मुख्य कानूनी सलाहकार प्रियदर्शी सम्राट अशोक अवार्ड से सम्मानित शैलेश नारनवरे अधिवक्ता मुंबई हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट ने दी गई प्रमाणिक दलीलों एवं मजबूत तर्कों पर साक्षात्कार सुने आवाज इंडिया टीवी लाइव स्टूडियो नागपुर, बौद्ध मित्रों से आग्रह है कि साक्षात्कार को पूरा सुने एवं शेयर करें: अभय रत्न बौद्ध*।

            *विश्व धरोहर महाबोधि महाविहार प्रबंधन कमेटी का विवाद सुप्रीम कोर्ट में है, देखना होगा कि सड़कों पर हंगामा करने वाले बौध्दो के कथित नेता और उनके संगठन भविष्य में क्या अपनी आवाज सही ढंग से सुप्रीम कोर्ट में रख पाएंगे? आजकल नकली बौद्ध भिक्षुओं एवं संगठनों की भरमार हो गई है जोकि आम जनों से बु़्ध्दगया मुक्ति आंदोलन के नाम पर सारे देश में चंदा वसूली का गैर-कानूनी खेल करने में जुटे हुए हैं*।

      *हमारा आह्वान है कि बौद्धों की स्वतंत्र पहचान,  बौद्ध विरासतों, बौद्ध संपत्तियों , बौद्ध विहारों (बौद्ध मठों) के संरक्षण के लिए "बुद्ध विहार मॉनेस्ट्री- एक्ट" कानून का होना, बौद्ध विवाह मान्यता कानून, भारत के संविधान में अनुच्छेद - 25 के भाग - 2 की व्याख्या में संशोधन कर बौद्धों को हिंदू धर्म से अलग स्वतंत्र पहचान दिलाना,बुद्ध कालीन बौद्धों प्राचीन एवं मातृभाषा "पालि प्राकृत" को संविधान की आठवीं सूची में शामिल कर भारत के संघ लोक सेवा आयोग में शामिल करना -कराना तथा कक्षा एक से लेकर 12 वीं तक संस्कृत भाषा की तरह "पालिभाषा"को पठन -पाठन में बढ़ावा देना, तथा बुध्द संस्कृति में घालमेंल(मिलावट) एवं बौद्ध विरासतों नष्ट करने से रोकने को लेकर सड़क से संसद एवं सुप्रीम कोर्ट तक मैत्रीपूर्ण तरीके से एकजुट होकर भारत के बौद्धों एवं बौद्ध  संघठनो को जंग लड़नी होगी अन्यथा आने वाले समय में भारत के बौद्ध विहारों और बौद्ध संपत्तियों को मनुवादी शक्तियों से बचाना मुश्किल होगा, "आज भारत में बुध्द विहार बनाना आसान है किंतु बचाना मुश्किल है"।*     

              *इसलिए आओ मिलकर भगवान बुद्ध का सन्देश "संघ शरणं गच्छामि" एवं बोधिसत्व बाबा साहब  डॉ.भीमराव अंबेडकर का उद्घघोष को ईमानदारी से एकजुट होकर अपने अंदर का घमंड, (Ego) त्याग कर मैत्री (Unity)के साथ "संगठित बनो"  के संकल्प को पूरा करें*।

   भवतु सब्ब मंगलं 🌹

दिनांक:22 मई 2025

      *अभय रत्न बौद्ध*

   राष्ट्रीय समन्वयक

 *राष्ट्रीय बौद्ध धम्म संसद बुध्दगया एवं*

बौद्ध संगठनों की राष्ट्रीय समन्वय समिति भारत

*मुख्यालय*: महाबोधि मेडिटेशन सेंटर बुध्दगया जिला-गया (बिहार)

*केंद्रीय कार्यालय:* बुद्ध कुटीर,284/सी-1, स्ट्रीट नंबर-8, नेहरू नगर,

नई दिल्ली-110008

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