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सायरन बजेगा, बत्ती बुझाओ — 2025 में 1965 की स्क्रिप्ट!
“सायरन बजेगा, बत्ती बुझाओ!”
हाँ जी, 2025 में मोदी सरकार ने एक और टॉस्क लॉन्च किया है —
नाम है: ब्लैकआउट ड्रिल – मिशन अंधेरा!
युद्ध की तैयारी के नाम पर जनता से कहा जा रहा है:
“अंधेरा करो, दुश्मन को चकमा दो!”
अब सवाल ये है —
क्या सच में अंधेरा करने से आज के लड़ाकू विमान या मिसाइलें निशाना चूक जाती हैं?
थोड़ा इतिहास में झाँकते हैं…
1939 से 1945 के बीच, जब दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था —
ब्लैकआउट एक गंभीर सैन्य रणनीति थी।
शहरों की बत्तियाँ बुझा दी जाती थीं ताकि दुश्मन के विमान ऊपर से निशाना न लगा सकें।
1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध में भी ब्लैकआउट अपनाया गया
क्योंकि तब न GPS था, न सैटेलाइट। पायलट शहर की रोशनी देखकर बम गिराते थे।
लेकिन अब 2025 में?
अब दुश्मन की मिसाइलें कहती हैं:
“हमें रोशनी नहीं, लोकेशन चाहिए!”
और वो लोकेशन कौन देता है?
आपका मोबाइल, स्मार्ट टीवी, इंटरनेट राउटर और कॉलोनी के मोबाइल टॉवर।
आज की मिसाइलें और फाइटर जेट होते हैं:
• GPS-guided
• satellite-tracked
• infrared-seeking
• AI-enabled
• terrain-mapping ready
यानि अब हमला ऐसे होता है:
“लोकेशन मिल गई? बस, बटन दबाओ!”
लाइट जल रही हो या बंद — फर्क नहीं पड़ता।
अब जरा सायरन के और भी फायदे भी समझ लेते हैं-
युद्ध में नागरिकों के जान की रक्षा के लिये साइरन बजाने का मकसद होता है उन्हें सुरक्षित बंकरों में जाने का संकेत देना
अब सवाल ये है:
सायरन बजाना तो ठीक है — पर क्या आपने बंकर बनाए?
क्या हर मोहल्ले, हर शहर में
नागरिकों के बचाव के लिए कोई सुरक्षित ‘बंकर’ हैं?
क्या आपने बताया कि सायरन बजने पर किसे कहाँ जाना है,
असल में तो बंकर में खाने-पीने, दवा, वेंटिलेशन जैसी बुनियादी होनी चाहिये, ताकि ड्रिल के दौरान नागरिक उनका इस्तेमाल करने की प्रैक्टिस करें।
नहीं ना?
तो फिर ये ‘सायरन-बत्ती ड्रामा’ क्यों?
सरकार तो कहती है:
“मॉक ड्रिल है, नागरिक सुरक्षा अभ्यास है…”
शायद जैसे कोरोना काल में ताली-थाली से वायरस भगाया गया,
दीयों से महामारी जलाकर राख कर दी गई —
अब सायरन और ब्लैकआउट से मिसाइलों और ड्रोन को धोखा दिया जा रहा है!
नहीं, बात इतनी भर नहीं है—
असल उद्देश्य साफ़ है:
जनता के दिमाग़ में युद्धोन्माद भरना
लोगों में डर पैदा करो
युद्धोन्माद फैलाओ
असली मुद्दों से ध्यान भटकाओ
और जब कोई सवाल पूछे —
तो देशद्रोही, पाकिस्तानी एजेंट कह दो
अभी यह प्रयोग सीमित क्षेत्रों में किया जा रहा है, रिस्पॉन्स देखते हुए इसे पूरे देश में फैलाने की पूरी संभावना है, और फिर टॉस्क दिये जाने पर अगर किसने बत्ती नहीं बुझाई —
तो क्या होगा?
यह भी हो सकता है कि —
तो संघी पड़ोसी बोले: “ये देशद्रोही है!”
और अगली सुबह आपकी फोटो वायरल हो:
“ब्लैकआउट के दौरान देशद्रोही पकड़ा गया!”
खैर, जब देश का प्रधानमंत्री एक स्वघोषित ‘नॉन-बायोलॉजिकल’ अजूबा हो, और फासीवादी विषवेल को जड़ जमाने के लिये लगातार असल मुद्दों से ध्यान भटकाने की जरूरत हो, तो ऐसे हास्यास्पद ड्रामे आये दिन होने ही हैं।
याद है वो वाक़या?
जब प्रधानमंत्री ने कहा था:
“बादल थे, तो हमने पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक कर दी —
क्योंकि मैंने दिमाग़ लगाया, बादलों की वजह से दुश्मन का रडार काम नहीं करेगा !”
पीएम के इस ‘बादल बनाम रडार’ सिद्धांत पर
पूरा देश-दुनिया अपनी हँसी नहीं रोक पाये—
इसरो चुप, डीआरडीओ मौन,
मौसम विभाग शर्मिंदा,
पर भक्त तब भी बोले:
“देखो! ये है देसी वैज्ञानिक सोच! मोदी का मास्टरस्ट्रोक ”
अब 2025 में फिर वही स्क्रिप्ट —
थोड़ा नया मेकअप, पर वैसी ही नौटंकी—
बत्ती बुझाओगे तो,
दुश्मन को चकमा दे दोगे!
लेकिन याद रखिए —
असल जीत बत्ती बुझाने से नहीं,
दिमाग की बत्ती जलाने से मिलती है।
तो अगली बार सायरन बजे —
बत्ती बंद करने से पहले
थोड़ा सोच चालू कर लीजिए।
नहीं तो बाद में फिर से अपनी बेवकूफ़ी पर हँसना न पड़े।
सोचिये—
कहीं ऐसा न हो कि
अंधेरा सिर्फ कमरे में ना हो,
बल्कि दिमाग़ में,
और समाज में भी फैल चुका हो।