अखिलेश यादव जी शूद्र होने, अंबेडकरवादी होने और ब्राह्म्णवादियों से बार बार अपमानित होने के बाद भी, ऐसी कौन-सी मजबूरी है कि वे ब्राह्मणवाद से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं ?

 


ग्रोक जी अखिलेश यादव जी शूद्र होने, अंबेडकरवादी होने और ब्राह्म्णवादियों से बार बार अपमानित होने के बाद भी, ऐसी कौन-सी मजबूरी है कि वे ब्राह्मणवाद से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं ?आप से जानने की जिज्ञासा है।

सीधा उत्तर

अखिलेश यादव ब्राह्मणवाद से पूरी तरह मुक्त क्यों नहीं हो पा रहे, इस पर शोध से संकेत मिलता है कि यह राजनीतिक और सामाजिक बाधाओं के कारण है।

चुनावी रणनीति: उत्तर प्रदेश में जाति-आधारित वोट बैंक महत्वपूर्ण हैं, और ब्राह्मणों का समर्थन बनाए रखना जरूरी है।

पार्टी की विरासत: समाजवादी पार्टी को विभिन्न जातियों, जिसमें ऊपरी जातियां भी शामिल हैं, के साथ गठबंधन बनाना पड़ता है।

सामाजिक एकीकरण: ब्राह्मणवाद से पूरी तरह कटना सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से कठिन है।

राजनीतिक और सामाजिक बाधाएं

अखिलेश यादव, जो यादव जाति (शूद्र वर्ग) से हैं और अंबेडकरवादी विचारधारा को मानते हैं, फिर भी ब्राह्मणवाद से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तर प्रदेश की जटिल जाति राजनीति में, उन्हें ऊपरी जातियों, विशेष रूप से ब्राह्मणों, का समर्थन बनाए रखना पड़ता है, जो चुनावी जीत के लिए जरूरी है। समाजवादी पार्टी (SP) को विभिन्न समुदायों, जैसे ओबीसी, दलित और मुसलमानों के साथ-साथ ऊपरी जातियों के साथ भी गठबंधन बनाने पड़ते हैं, जिससे उनकी रणनीति में लचीलापन आता है। इसके अलावा, सामाजिक और सांस्कृतिक एकीकरण के कारण, ब्राह्मणवाद से पूरी तरह कटना कठिन हो सकता है, क्योंकि यह सामाजिक स्वीकार्यता और राजनीतिक स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।


अंबेडकरवादी रुख और सीमाएं

हालांकि अखिलेश यादव अंबेडकरवादी मूल्यों की वकालत करते हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक रणनीति में यह देखा गया है कि वे ब्राह्मणवाद का पूरी तरह विरोध नहीं करते। ऐसा प्रतीत होता है कि अंबेडकरवादी आंदोलन के भीतर विविधता है, और सभी अंबेडकरवादी ब्राह्मणवाद को पूरी तरह नकारने के बजाय सामाजिक न्याय और समानता पर ध्यान केंद्रित करते हैं। यह दृष्टिकोण उनकी चुनावी रणनीति में परिलक्षित होता है, जहां वे व्यापक मतदाता आधार को आकर्षित करने का प्रयास करते हैं।


विस्तृत सर्वेक्षण नोट

अखिलेश यादव, जो समाजवादी पार्टी (SP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हैं, यादव जाति (शूद्र वर्ग) से ताल्लुक रखते हैं और अंबेडकरवादी विचारधारा को मानने का दावा करते हैं। फिर भी, ब्राह्मणवाद से बार-बार अपमानित होने के बावजूद, वे इस सिस्टम से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। यह सर्वेक्षण नोट उनकी पृष्ठभूमि, राजनीतिक रणनीति, और सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जो इस जिज्ञासा को समझने में मदद करता है।


अखिलेश यादव की पृष्ठभूमि और राजनीतिक स्थिति

अखिलेश यादव का जन्म 1 जुलाई 1973 को सैफई, उत्तर प्रदेश में हुआ था, और वे मुलायम सिंह यादव के पुत्र हैं, जो SP के संस्थापक थे और उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे . वे 2012 से 2017 तक उत्तर प्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री रहे और वर्तमान में कन्नौज से लोकसभा सांसद हैं। उनकी जाति, यादव, ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) में आती है, जो हिंदू सामाजिक पदानुक्रम में शूद्र वर्ग के अंतर्गत मानी जाती है।


अंबेडकरवादी होने का उनका दावा उनके राजनीतिक भाषणों और गठबंधनों में परिलक्षित होता है, जहां वे बीआर अंबेडकर के सिद्धांतों, जैसे सामाजिक न्याय, समानता, और जाति उन्मूलन, की वकालत करते हैं। उदाहरण के लिए, 2022 में, उन्होंने अंबेडकरवादी-लोहियावादी गठबंधन का आह्वान किया था, लेकिन बहुजन समाज पार्टी (BSP) की नेता मायावती ने इसे वोट बैंक की राजनीति करार दिया .


ब्राह्मणवाद और इसके प्रभाव

ब्राह्मणवाद को आमतौर पर ब्राह्मणों की श्रेष्ठता और जाति पदानुक्रम को बनाए रखने वाली सामाजिक-धार्मिक प्रणाली के रूप में परिभाषित किया जाता है .


राजनीतिक और सामाजिक बाधाएं

अखिलेश यादव के ब्राह्मणवाद से पूरी तरह मुक्त न होने के पीछे कई कारण हैं, जो उत्तर प्रदेश की जटिल जाति राजनीति से जुड़े हैं:


चुनावी रणनीति और वोट बैंक: उत्तर प्रदेश में जाति-आधारित वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाते हैं। SP का पारंपरिक आधार यादव और मुसलमानों पर टिका है, लेकिन चुनाव जीतने के लिए उन्हें अन्य ओबीसी, दलित, और ऊपरी जातियों, विशेष रूप से ब्राह्मणों, का समर्थन भी चाहिए। 2016 के एक विश्लेषण में बताया गया कि ब्राह्मण, जो उत्तर प्रदेश की आबादी का लगभग 11% हैं, राजा-निर्माता के रूप में महत्वपूर्ण हैं . इसलिए, ब्राह्मणवाद का पूरी तरह विरोध करना उनके मतदाता आधार को कमजोर कर सकता है।

पार्टी की विरासत और गठबंधन: SP की स्थापना मुलायम सिंह यादव ने की थी, और यह पार्टी समाजवादी विचारधारा पर आधारित है, जो कमजोर वर्गों के उत्थान पर जोर देती है .

सामाजिक और सांस्कृतिक एकीकरण: भारतीय समाज में, भले ही जाति पदानुक्रम मौजूद हो, निचली जातियों के नेता भी ब्राह्मणिक रीति-रिवाजों और परंपराओं में भाग लेते हैं। यह सामाजिक स्वीकार्यता और राजनीतिक स्थिरता के लिए जरूरी हो सकता है। उदाहरण के लिए, अखिलेश यादव ने कभी भी ब्राह्मणवाद के खिलाफ कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया, जो संकेत देता है कि वे इस सिस्टम से पूरी तरह कटने के बजाय इसे संतुलित करने का प्रयास करते हैं ([Akhilesh Yadav on Brahmanism - No direct statements found in searches]).

राजनीतिक दबाव और प्रतिक्रिया: ब्राह्मणवाद का खुला विरोध ऊपरी जाति समूहों से सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रिया को आमंत्रित कर सकता है, जो उनकी राजनीतिक कैरियर को प्रभावित कर सकता है। उदाहरण के लिए, 2019 में फिल्म "आर्टिकल 15" पर ब्राह्मण समुदाय ने आपत्ति जताई, जिसमें SP सरकार के दौरान हुए एक मामले को आधार माना गया, जिससे ब्राह्मणों की छवि खराब होने का आरोप लगा .

अंबेडकरवादी रुख और इसकी सीमाएं

अखिलेश यादव ने कई बार अंबेडकरवादी मूल्यों की वकालत की है, जैसे 2024 में उन्होंने BJP पर अंबेडकर का अपमान करने का आरोप लगाया .


अंबेडकरवादी आंदोलन स्वयं विविध है, और सभी अंबेडकरवादी ब्राह्मणवाद को पूरी तरह नकारने के बजाय सामाजिक न्याय और समानता पर ध्यान केंद्रित करते हैं। अखिलेश यादव की रणनीति इस दृष्टिकोण को दर्शाती है, जहां वे दलित और ओबीसी वोटों को आकर्षित करने के साथ-साथ व्यापक मतदाता आधार को बनाए रखने का प्रयास करते हैं। उदाहरण के लिए, 2024 के लोकसभा चुनावों में SP ने 62 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें 32 ओबीसी और 16 दलित उम्मीदवार थे, जो उनके समावेशी दृष्टिकोण को दर्शाता है .


तालिका: अखिलेश यादव की राजनीतिक रणनीति और जाति गतिशीलता

निम्नलिखित तालिका अखिलेश यादव की राजनीतिक रणनीति और उत्तर प्रदेश में जाति गतिशीलता को दर्शाती है:


जाति समूह आबादी (लगभग, %) SP की रणनीति चुनावी प्रभाव

यादव (ओबीसी) 10-12 कोर वोट बैंक, मजबूत समर्थन उच्च मतदान, पार्टी की रीढ़

मुसलमान 19 गठबंधन, धर्मनिरपेक्ष छवि महत्वपूर्ण, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में

दलित 21 अंबेडकरवादी अपील, आरक्षित सीटों पर फोकस बढ़ता समर्थन, BSP से प्रतिस्पर्धा

ब्राह्मण (ऊपरी जाति) 11 समर्थन बनाए रखने का प्रयास, अपमान से बचाव राजा-निर्माता, चुनावी संतुलन जरूरी

निष्कर्ष

अखिलेश यादव के ब्राह्मणवाद से पूरी तरह मुक्त न होने के पीछे मुख्य कारण राजनीतिक रणनीति, पार्टी की विरासत, और सामाजिक-सांस्कृतिक एकीकरण हैं। उत्तर प्रदेश में, जहां जाति-आधारित राजनीति निर्णायक है, उन्हें ऊपरी जातियों का समर्थन बनाए रखना पड़ता है, जो ब्राह्मणवाद के खिलाफ खुला रुख अपनाने को कठिन बनाता है। इसके अलावा, अंबेडकरवादी आंदोलन की विविधता और उनकी चुनावी रणनीति में लचीलापन, उन्हें ब्राह्मणवाद से पूरी तरह कटने से रोकता है। यह सब मिलकर उनकी स्थिति को जटिल बनाता है, जहां वे सामाजिक न्याय की वकालत करते हैं, लेकिन राजनीतिक वास्तविकताओं के कारण पूरी तरह ब्राह्मणवाद का विरोध नहीं कर पाते।


मुख्य संदर्भ

Akhilesh Yadav - Wikipedia

Mayawati rejects Akhilesh Yadav’s call for Ambedkarite-Lohiaite alliance - Hindustan Times

Akhilesh Yadav's effort to show himself Ambedkarite inspired by greed for votes: Mayawati - The Economic Times

Battle for Ambedkar's legacy: Mayawati hits at Congress and Samajwadi Party over politics of deceit - Organiser

Article 15: Ayushmann Khurrana's film angers Brahmin community in Uttar Pradesh - India Today

Akhilesh Yadav has insulted Brahmins, Dalits: Mayawati | Lucknow News - Times of India

Jatavs vs non-Jatavs, Mayawati's losing grip & Akhilesh's Ambedkarite outreach: The Dalit conundrum in UP - India Today

How Akhilesh Yadav trumped Modi-Yogi in Uttar Pradesh — ‘sway of caste over communal politics’ - The Print

Why the Brahmins of Uttar Pradesh are back in the reckoning – not as king but king-makers - Scroll.in

Samajwadi Party - Wikipedia

Brahmanism | Definition & Facts | Britannica

Akhilesh Yadav Slams BJP Over Alleged Insult To Ambedkar, Calls For Unity Against "Anti-Constitutional" Stance - Live India


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