हिरा , काच की जिसमें तृष्णा बुझती नहीं वही कीमत आंकते।
पहले तो यह तय करने की जरूरत है पूजा का स्वरूप, तरीका क्या?
बिना अंधविश्वासी पूजा किए किसी के भी प्रति सम्मान, आदर नहीं रखा जा सकता? मनुष्य के उनके माता पिता सम्मानीय है। तो क्या रोज सबेरे शाम पैर पड़े, आरती उतरे उनकी प्रशंसा मे प्रार्थना गीत गाए मजिरा बजाएं? ये व्यवहारिक है?माता पिता कैसे कि रोज संतान उनके पैर पड़े गुण गान करवाए? ये संतान करे तभी संतान जीवन सुख मय बनाएंगे ?आदर सम्मान भाव , भावन का , आदर सम्मान पूजा मनुष्य के skull के भीतर मन विचार सोच में हैं। अच्छा बुरा, मान अपमान सब विचारों में उत्पन्न या गतिशील है।
सभी प्राणी मात्र के प्रति प्रेम, करुणा, मैत्री, भाईचारा, समता, स्वतंत्रता, न्याय का सोच हो व्यवहार हो यही तथागत बुद्ध का धम्म है, इसे अंधविश्वास फैलाने वालों ने धर्म बना कर भय भर कर , बिना कोई श्रम किए सभी इच्छा पूरी करने के धर्म ईश्वर देव मूलनिवासी के दिमाग में प्रवेश कराया , करा रहे। मनुष्य मनुष्य में घृणा नफरत, ऊंच नीच, छोटा बड़ा, घृणित जाति भेद छुआछूत, शुद्र स्तर थोपना, नारी दासता, आदिवासी का अलगीकरण ये किसने थोपे मूलनिवासी पर , क्यों थोपे और ये दुनिया के किस धर्म में है? ये मूलनिवासी को जानना जरूरी है। संविधान खत्म करने के लिए मूलनिवासी को मूर्ख बनाया जा रहा। पूजा मतलब उस बात चिज की पूरी जानकारी से है या पूजा का मतलब अंधविश्वासी कर्म कांड या धूप जल दूध, दही घी बत्ती फुल माला, नारियल, पैसा, धातु, वस्त्र चावल, जौ, पंचानी धूप , लच्छा, चढ़ाने हाथ जोड़ना, पैर पड़ना , माथा टेकना , गिड़ गिड़ाने से है?
पूजा का अर्थ पूरी जानकारी पाना या उसका संरक्षण करने से है? बिना किताब की पूजा सम्मान किए उसे पढ़ नहीं सकते? जो इसे नहीं मानते वे वैज्ञानिक नहीं बने? मोबाइल को बिना पूजा सम्मान किए उपयोग नहीं करते? सैनिक शस्त्र की पूजा किए चला नहीं सकता? अंधविश्वास फैलाने वाले message, video group में न भेजने की जरूरत हे