*~~~~परजीवी हैं इसीलिये~~~~*
*~~~प्रतिबन्ध लगाते शिक्षा पर~~*
*अगर भरोसे के पत्थर तुम, सदा नींव में डालोगे।*
*रिश्ते भी मजबूत बनेंगे, उनको तुम्हीं संभालोगे।*
दरक रही हैं दीवारें, रिश्तों का बन्धन टूट रहा।
मौका पा कर अवसरवादी, देखो सबको लूट रहा।
*पहले जब संग्राम छिड़ा था, गिने चुने ही लोग रहे।*
*जो थे उनके फँसे जाल में, वही त्रासदी भोग रहे।*
जो धारा अविरल बहती थी, उसमें कुछ व्यवधान पड़ा।
भागीदार जिसे होना था, देख रहा था खड़ा खड़ा।
*उसको भी अब समझ आ गयी, खिड़की कहाँ झरोखा है ?*
*उनकी बातें मीठी हैं पर, कदम कदम पर धोखा है।*
जो भी उनके साथ रहा, उसने अपना घर तोड़ लिया।
फिर सारे गद्दारों ने, सम्बन्ध उन्हीं से जोड़ लिया।
*कुछ पल घड़ी और दिन बीते, सभी शून्य की ओर चले।*
*देखो सब राज्यों की हालत, चन्दा और चकोर चले।*
मची हुयी है धूम गया में, अब बिहार की बारी है।
हालत पतली है सत्ता की, फिरती मारी मारी है।
*पाटलिपुत्र वही है जिसने, परिवर्तन को जोड़ा था।*
*नयी दिशा दे कर मानव को, तीर अनोखा छोड़ा था।*
श्रम से रहे दूर जो भी थे, वे सारे घबराये थे।
आज सामने जो भी है, ऐसे षड्यंत्र रचाये थे।
*वे पत्थर में प्राण डाल कर, कितना मूर्ख बनाते हैं ?*
*जब जब दिशा सही मिलती है, वे सबको उलझातेे हैं।*
उनके घर में मरा है कोई, क्या जीवित कर पायेंगे ?
मरें डूब कर अगर कुम्भ में, तो मर कर तर जायेंगे।
*परजीवी हैं इसीलिये, प्रतिबन्ध लगाते शिक्षा पर।*
*उनका हर दारोमदार तो, टिका हुआ है भिक्षा पर।*
हम सबको उलझा कर वे, हमको ही मारा करते हैं।
जगह जगह पर हमें दबा कर, वारा न्यारा करते हैं।
*यदि चुपचाप रहोगे तो, खुद को किस तरह बचा लोगे ?*
*अपनी धरती पर ऐसे, दुश्मन को कब तक पालोगे ?*
*अगर भरोसे के पत्थर तुम, सदा नींव में डालोगे।*
*रिश्ते भी मजबूत बनेंगे, उनको तुम्हीं संभालोगे।*
*मदन लाल अनंग*
द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।
*1-* वैचारिक खोज बीन के आधार पर समसामयिक, तर्कसंगत और अकाट्य लेखन की प्रक्रिया *मध्यम मार्ग समन्वय समिति* के माध्यम से जारी *2500 से अधिक लेख/रचनायें* सोशल मीडिया पर निरंतरता बनाये हुए हैं।
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