फ्राँस ने भारत को राफेल का सोर्स कोड देने से इंकार किया है

 



पोस्ट थोड़ीसी लंबी है... जरूर पढ़े।

फ्राँस ने भारत को राफेल का सोर्स कोड देने से इंकार किया है🤣

और_ हम सोर्स कोड के बिना राफेल मे रूसी S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली लगाने में असमर्थ है_👇

"लवंड्येन् भोज्यम् हो गया है"सायरन बजेगा, तुरंत बत्ती बुझाओ — 2025 में 1965 की स्क्रिप्ट !

(गोबर ओर गौमूत्र सेवन को ही दुनिया की सर्वश्रेष्ठ खोज बताने वाले, गोबर पुत्रों की एक और चूतिया स्क्रिप्ट )

“सायरन बजेगा, बत्ती बुझाओ!”

हाँ जी, 2025 में सरकार ने एक और राष्ट्रवादी शो पेश किया है —

नाम है: ब्लैकआउट ड्रिल—मिशन अंधेरा 

युद्ध की तैयारी के नाम पर

जनता से कहा जा रहा है:

“बिजली बंद करो, दुश्मन को चकमा दो!”

अब सवाल ये है —

क्या सच में अंधेरा लाइट से लड़ाकू विमान या मिसाइलें निशाना चूक जाती हैं?

थोड़ा इतिहास में झाँकते हैं…

1939 से 1945 तक जब दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था —

तब वाकई ब्लैकआउट एक गंभीर रणनीति थी।

शहरों की बत्तियाँ बुझाई जाती थीं ताकि

दुश्मन के विमान ऊपर से देख न सकें

कि कहाँ बम गिराना है।

1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध में भी

ब्लैकआउट अपनाया गया था —

क्योंकि उस वक़्त न तो उपग्रह थे, न ही जीपीएस।

विमान पायलट अपनी आँखों से

शहर की पहचान करते थे —

तो अंधेरा जान बचाने में मदद करता था।

लेकिन अब 2025 में?

अब दुश्मन की मिसाइलें कहती हैं:

“हमें रोशनी नहीं चाहिए, लोकेशन चाहिए!”

और वो लोकेशन तो आपके

मोबाइल फोन, स्मार्ट टीवी,

इंटरनेट राउटर, यहाँ तक कि

आपके कॉलोनी में लगे मोबाइल टॉवर दे रहे हैं।

आज के मिसाइल और जेट विमान होते हैं —

• GPS-guided

• satellite-tracked

• infrared-seeking

• AI-enabled

• terrain-mapping ready

यानि अब हमला कुछ यूँ होता है:

“लोकेशन मिल गई? बस, बटन दबाओ!”

लाइट जल रही है या बंद है —

हमले पर कोई असर नहीं पड़ता।

तो फिर ये ‘सायरन-बत्ती ड्रामा’ क्यों?

सरकार कहती है:

“मॉक ड्रिल है, नागरिक अभ्यास है…”

लेकिन दरअसल, यह युद्धोन्माद की रिहर्सल है।

जैसे कोरोना काल में ताली-थाली से वायरस को भगाया गया,

दीयों से महामारी को भस्म किया गया —

अब सायरन और ब्लैकआउट से

मिसाइलों और ड्रोन को चकमा दिया जा रहा है!

ये एक नया इमोशनल ड्रामा है —

थाली-ताली, दिया-मोमबत्ती के बाद

अब अंधेरे में अंधराष्ट्रवाद का पारा चढ़ाने की तैयारी!

असल उद्देश्य क्या है?

• लोगों में डर फैलाओ

• युद्धोन्माद को तेज करो

• युद्ध का माहौल बनाकर अंध-राष्ट्रवाद के इंजेक्शन लगाओ

• ताकि कोई पूछे ही नहीं —

बेरोज़गारी क्यों है?

•पेट्रोल-डीजल के दाम कम क्यों नहीं हो रहे हैं?

अडानी-अंबानी को सब कुछ क्यों सौंपा जा रहा है?

अभी यह प्रयोग सीमित क्षेत्रों में किया जा रहा है, रिस्पॉन्स देखते हुए इसे पूरे देश में फैलाने की पूरी संभावना है, और फिर टॉस्क दिये जाने पर अगर किसने बत्ती नहीं बुझाई —

तो क्या होगा?

संघी पड़ोसी बोलेगा: “ये देशद्रोही है!”

अंधभक्त चाचा कहेंगे: “इसने राष्ट्र का अपमान किया है!”

और फिर अगली सुबह

आपकी तस्वीर तिरंगे के नीचे वायरल हो सकती है:

“ब्लैकआउट के दौरान देशद्रोही पकड़ा गया!”

खैर, जब देश का प्रधानमंत्री एक नॉन-बायोलॉजिकल अजूबा हो, तो ऐसे हास्यास्पद ड्रामे हर सप्ताह संभव हैं।

याद है वो दिन?

जब प्रधानमंत्री जी ने कहा था:

“बादल थे, तो हमने पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक कर दी —

क्योंकि मैंने दिमाग़ लगाया, बादलों की वजह से दुश्मन का रडार काम नहीं करेगा !”

पीएम के इस ‘बादल बनाम रडार’ सिद्धांत पर

पूरा देश-दुनिया अपनी हँसी नहीं रोक पाये—

इसरो चुप, डीआरडीओ मौन,

मौसम विभाग शर्मिंदा,

पर भक्त तब भी बोले:

“देखो! ये है देसी वैज्ञानिक सोच! मोदी का मास्टरस्ट्रोक ”

अब 2025 में फिर वही स्क्रिप्ट —

थोड़ा नया मेकअप, वही पुराना ढकोसला।

सायरन बजेगा,

बत्ती बुझाओगे,

दुश्मन को चकमा दे दोगे!

सच तो ये है:

असल जीत बत्ती बुझाने से नहीं,

दिमाग की बत्ती जलाने से हासिल होगी।

तो अगली बार जब सायरन बजे - 

तो बत्ती बंद करने से पहले

थोड़ा सोच भी चालू कर लीजिए।

कहीं ऐसा न हो कि

अंधेरा सिर्फ कमरे में ना हो,

बल्कि दिमाग़ में,

समाज में,

और लोकतंत्र में भी फैल चुका हो ।

50/60 साल पहले की जंग में सायरन बजते थे, घरों की बत्तियां बुझा दी जाती थीं, स्ट्रीट लाइट भी यहां तक कि घर के अंदर भी टॉर्च जलाने की मनाही थी. 

जब भारत पाकिस्तान का 1971 में युद्ध हुआ था तो लोगों ने घरों की खिड़कियों के शीशों पर अखबार चिपका दिए थे कि रौशनी बाहर न निकले. 

ब्लैक आउट इसलिए हो रहा था कि पाकिस्तानी जहाजों को शहर न दिख जाए और वो बमबारी न कर दें.

रिक्शों में लाउडस्पीकर लगाकर अनाउंस किया जाता था.

रेडियो से भी एनाउंस किया जाता था.

अब हम 21वीं सदी में हैं. जहाज रोशनी देखकर नहीं कॉर्डिनेट्स से टार्गेट पर बम गिराते हैं. 

जहाज और पायलट दोनों के पास नाइट विज़न इक्विपमेंट होते हैं. 

गूगल मैप ने दुनिया के हर कोने के कॉर्डिनेट बता दिए हैं. 

दुनियां के हर देश को एक दूसरे के बारे में सब कुछ पता है.

अमेरिकी ड्रोन के पायलटों ने 10 हजार किमी दूर अमेरिका में बैठ कर कंप्यूटर स्क्रीन देख कर अफगानिस्तान में बमबारी की थी.

लेज़र गाइडेड प्रिसिशन बॉम्बिंग के जमाने में इस तरह की नौटंकी की जा रही है।

भांड मीडिया पहले से ही झूठी और उत्तेजक खबरें फैलाकर मोदी को योद्धा बता रहे है।

अब खुद तमाशा गुरु  ने युद्ध जैसे संवेदनशील और रणनीतिक मुद्दे को इवेंट बना दिया है.

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