चौधरी चरण सिंह के बाद अगर किसी ने किसानों की असल समस्या समझी और उसके लिए आगे आकर संवेदनहीन तंत्र से जूझकर किसानों के हक की लड़ाई लड़ी तो वे चौधरी टिकैत ही थे। उनके जाने के बाद किसानों को अपने हक के लिए आंदोलन का रास्ता दिखाने वाला दूर-दूर तक कोई निस्वार्थी नेता नजर नहीं आता है। उनके जाने से किसान आंदोलन को गहरा झटका लगा है। विडंबना है कि सरकार तेल कंपनियों का घाटा पाटने के लिए तेल के दाम तो नौ महीनों में नौ बार बढ़ा देती है, लेकिन कथित विकास कायरें की भेंट चढ़ती किसानों की कृषियोग्य भूमि और किसानों के उपज की वाजिब कीमत देने-दिलाने की चिंता की पहल कहीं से नहीं हो रही है। ऐसे ही मुद्दे और सवाल टिकैत के आंदोलन की नींव बनते रहे। 1987 में बिजली की बढ़ी दरों के खिलाफ खेड़ीकरमू पावर हाउस पर टिकैत के किए गए आंदोलन ने उनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर पर पुख्ता की और इस आंदोलन का ही असर था कि सरकार को उनके आगे झुकना पड़ा। तत्कालनी मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह को सिसौली आकर किसानों की पंचायत को संबोधित कर उनकी मांगें माननी पड़ी। ये था टिकैत की गर्जना का असर। इसके बाद तो टिकैत की आवाज जब-जब गूंजी, सरकारें कांप गईं। देखते ही देखते वे किसान से भगवान बन गए और उनका पैतृक गांव सिसौली किसानों का तीर्थस्थल। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के निधन के बाद टिकैत ने सफलतापूर्वक किसान आंदोलन की बागडोर अपने हाथों में ली और 17 अक्तूबर 1986 को गैर राजनीतिक संगठन भारतीय किसान यूनियन की स्थापना कर किसानों की जुझारू वृत्ति को धार दी। उनके खाते में 1990 में जनता दल सरकार के खिलाफ प्रदर्शन, लखनऊ पंचायत का आयोजन एवं सात सूत्री मांग को लागू करने के लिए आंदोलन, गाजियाबाद के किसानों को मुआवजा दिलाने के लिए प्रदर्शन, चिनहट काथुआटा के किसानों की अधिग्रहीत भूमि के पर्याप्त मुआवजे के लिए आंदोलन जैसी असाधारण सफलताएं शामिल हैं। उन्होंने कई बार विश्र्व व्यापार संगठन और सरकार की कृषि नीति में किसानों के साथ नाइंसाफी के विरोध का भी बिगुल फूंका।
किसान मसीहा भारतीय किसान यूनियन के जनक स्वर्गीय बाबा चौधरी महेंद्र सिंह जी टिकैत जी उनकी पुण्यतिथि पर शत शत नमन 💐
जब तक सूरज चाँद रहेगा बाबा टिकैत का नाम रहेगा