*एक मिट्टी की मूर्ति बनाकर, उसका रंग रोगन करके, उसको वस्त्र और आभूषण पहनाकर, उसका साज-सज्जा करके, उसे फूल-माला पहनाकर उसी के सामने हाथ जोड़कर, जब एक सुशिक्षित ग्रैजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट, प्रोफेसर, डाक्टर, इंजीनियर, बैंक मैनेजर गाता है कि -*
*मैं मुरख खल कामी कृपा करो भर्ता* -
*तो ऐसा प्रतीत होता है कि सचमुच उसकी पढ़ाई-लिखाई पर खर्च किया गया पैसा और समय व्यर्थ गया।*
दिमाग की बत्ती जलाओ!
धार्मिक अँधविश्वास दूर भगाओ!
जय विज्ञान !
जय संविधान !!
हीरालाल राउत