*~~~झुग्गी झोपड़ियों को तोड़ा~~~*
*~~~~तोड़ दिये हैं महल पुराने~~~*
*उधर भी पक्के इधर भी पक्के, अन्ध भक्त ही झगड़ रहे हैं।*
*उन्हें नहीं कुछ अता पता है, समाज अपना रगड़ रहे हैं।*
धूप और बरसात न देखी, ठिठुर रहे हैं वे सर्दी में।
लिवास कोई न जिनका जाना, देख समझ लो इस वर्दी में।
*प्रश्न हजारों गूँज रहे हैं, नहीं जवाब किसी का आया।*
*देश अभी भी भटक रहा है, ले कर अपनी जर्जर काया।*
इन्हीं अन्ध भक्तों के कारण, हवा विषैली हो बैठी है।
दिल्ली के दरम्यान देख लो, अपना आपा खो बैठी है।
*झुग्गी झोपड़ियों को तोड़ा, तोड़ दिये हैं महल पुराने।*
*लगे हुये बाजार उजाड़े, नजर आ रहे हैं वीराने।*
फुटपाथों की किस्मत फूटी, कितना बोझा उठा चुके हैं।
रोटी दाल चलाने वाले, अपना सब कुछ लुटा चुके हैं।
*आजादी के बंटवारे से, फिर से अंकुर फूट रहे हैं।*
*जिन्हें बताते थे वे अपना, आज उन्हें ही लूट रहे हैं।*
भक्ति भाव में डूबे हैं जो, उन्हें झूठ का ज्ञान नहीं हैं।
भटक रहे अन्धी गलियों में, सच की भी पहचान नहीं है।
*माया मोह भगाने वाले, माया से ही सराबोर हैं।*
*रखवाली कितनी पक्की है, छिप कर बैठे कहाँ चोर हैं ?*
ये टुकड़ों पर पलने वाले, भीड़ बढ़ाने ही जाते हैं।
पाँसे फेंक रहे उकसाकर, इन्हें चढ़ाने ही आते हैं।
*नाली के पानी में छल है, या प्रतिविम्ब उसी का चेहरा।*
*कहाँ कहाँ छिप कर बैठा है, राज हुआ है काफी गहरा।*
एक मार कर धक्का निकला, वहीं दूसरा पकड़ रहे हैं।
अब इतने अन्धे हो बैठे, आपस में ही अकड़ रहे हैं।
*उधर भी पक्के इधर भी पक्के, अन्ध भक्त ही झगड़ रहे हैं।*
*उन्हें नहीं कुछ अता पता है, समाज अपना रगड़ रहे हैं।*
*मदन लाल अनंग*
द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।
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