क्या शूद्रो का शातिर दुश्मन सही मायने में मुसलमान है?

 




*🔥 क्या शूद्रो का शातिर दुश्मन सही मायने में मुसलमान है?🔥* 

   आज मेरी उम्र 74वें साल में चल रही है। बचपन में याद है, एक देवकुर घर ( भगवान का घर) हुआ करता था। अनपढ़, गवार कोई भी पुरोहित, पंडित  हर एकादशी , महीने में दो बार  शाम को घर पर आता, पाव किलो देशी घी का हवन करता। कुछ घी ले भी जाता था। रूपये पैसे के अलावा दक्षिणा में चावल, आटा दाल भी देना पड़ता था, यही नहीं, वह दक्षिणा भी उसके घर तक हम लोगों को ही पहुंचाना पड़ता था।

   *सभी छोटे बड़ो को तिलक लगाता, सभी लोग उसके पैर छूते और वह सबको आशीर्वाद देता था। अर्थात सबको अपने से नींच बनाता था। बचपन में कहानी भी सुनते थे, "आन का आटा, आन का घी, भोग लगाएं पंडित जी, शाबास -शाबास बाबा जी "* 

    भगवान् के नाम पर एक सामाजिक धार्मिक परम्परा बनायी गई थी, कहीं-कहीं और कुछ परिवारों में तो अभी भी चालू है। इस तरह से ढोंगी पाखंडी  काम, जैसे  बच्चे के जन्म के समय को मूर या अपशकुन बता देना, मंगली करार कर देना और फिर उसे पूजा-पाठ करके शुद्धि करण करते हुए पैसे ऐंठना एक साधारण बात होती थी। ऐसे ही धार्मिक पाखंड कभी बच्चे का नामकरण, कभी गृह प्रवेश, कभी समय खराब या ग्रहण लगा है, कभी उसकी शुद्धिकरण या सत्यनारायण कथा आदि रूपो में चलता रहता है। ब्राह्मणों ने हिन्दू धर्म में जीवन पर्यन्त अपने पेटपूजा या भरण पोषण के लिए एक और तरीका निकाला हुआ है, जिसका नाम है *मां बाप का गुरू-मुख होना*। इसके माध्यम से गुरु- मुख दम्पति की कमाई से 25% की हर साल हिस्सेदारी लेना और जब कभी गुरू-मुख किए हुए पंडित जी सामने दिखाई दिए तो, दंडवत प्रणाम करना अनिवार्य है , अन्यथा अनर्थ होने का डर, दिलो-दिमाग में भर दिया गया है। दूध-दही या कुछ दक्षिणा मांग दिया तो अपने बच्चे का हक्कानी मारकर उसको देना पहली प्राथमिकता होती है। हर इंसान के दिलो-दिमाग में कयी तरह के धार्मिक डर पैदा कर दिया गया था। हमें याद आ रहा है, आठवी कक्षा में (1966)  हम लोगों (10 ) के साथ एक ब्राह्मण का लड़का भी पढ़ता था , वह कितना भी बदमाशी करता था, हमलोग उसे, इस डर से कि बरम लगेगा, कभी उसे गाली या मारते नहीं थे।

  *इसी तरह शादी -विवाह या मरने के बाद अन्तिम संस्कार में भी भाग्य -भगवान्, पाप -पुन्य का डर और लालच दिखा कर जन्म से लेकर मरने तक आर्थिक, मानसिक, सामाजिक शोषण करता रहता है।इस परम्परा द्वारा ब्राह्मण अपने जजमान शूद्रों को अपने से नींच बनाने का षणयंत्र रचा है। इस तरह शूद्रों को बौद्धिक रूप से कमजोर करना, उनके मनोबल को गिराना और उन्हें धार्मिक गुलाम बनाए रखना, एक तरह से मानवता को कलंकित करने वाला, विश्व का सबसे बड़ा अपराध लगता है ।* 

 *अफसोस हमलोग आज भी  अज्ञानता और मूर्खता में अपने पुर्वजों के अपराधियों को ही मान सम्मान देते चले आ रहे हैं।* 

    आज भी जब कभी मैं गांव जाता हूं तो, हमारे समकक्ष या छोटी उम्र का अनपढ़  गवार, ब्राह्मण, यहां तक कि ठाकुर भी, सामने होने पर, जिज्ञासा भर, वह यह उम्मीद करता है कि, मैं ही पहले उसे इज्जत देते हुए नमस्कार या पाय लागू बोलूं। इसी अनुभव को देखते हुए बार बार दिमाग में खटकता है कि, *हम ब्राह्मण से नींच क्यों है और कब-तक बनें रहेंगे? यह भी सवाल उठता है कि, मेरे अंदर ही यह प्रश्न क्यों बार बार उठता है? आप लोगों में क्यों नहीं?, क्या आप बुजदिल हैं? आश्चर्य तब और होता है कि, मुझे सामाजिक व्यवहार और परिस्थितियों को देखकर तथा उसे महसूस कर स्वयं ज्ञान प्राप्त हुआ है, लेकिन आप को बताने पर भी  महसूस क्यों नहीं हो रहा है? जबकि माननीय अखिलेश यादव जी को कयी मौकों पर अपमानित होने पर शूद्र होने का एहसास हो गया है। आप को खुद इसपर चिंतन मनन करने की जरूरत है।*

  एक उदाहरण देना उचित होगा।

     *तीन-चार साल पहले, मैं अपने गांव में एक सम्पन्न यादव परिवार के खुले द्वार पर 5-6 लोगों के साथ बैठा हुआ था। वहां पर एक 40-50 साल का ब्राह्मण भी बैठा हुआ था। वह पान खाते हुए, पिच पिच करते हुए, बड़ी शान से कुर्सी पर जहां बैठा था वहीं थुककर साफ सुथरी जगह पर गंदगी भी कर रहा था। उसका यह व्यवहार मुझे पसंद नहीं आ रहा था। कुछ उसकी उम्र से छोटे और बड़े भी वहां आते, कुछेक पाया लागी पंडित जी करते और कुछ एक लोग उसके पैर छूते थे। इसके बदले में वह सभी को आशिर्वाद देता था। मुझसे रहा नहीं गया, टोक ही दिया। पंडित जी आप अपने से बड़ों को आशीर्वाद देने के लायक है? लोगों की आस्था है, पैर छूते हैं इसलिए मैं आशिर्वाद देता हूं। मैंने कहा, आप ऐसा करने से मना क्यों नहीं करते हैं? जवाब था, मैं किसी को पैर छूने या पाय लागी बोलने के लिए थोड़े कहता हूं। मैंने कहा, मानवीय शिष्टाचार निभाते हुए, आप अपने से बड़ों को देखते ही पहले, पाय लागी, प्रणाम या नमस्कार क्यों नहीं कर देते हैं? कुछ मिनटों बाद ही उठकर चले गए। मैंने हिदायत भी दी कि ऐसे गन्दे लोगों को अपने द्वार पर क्यों बैठाते और मान-सम्मान देते हैं।*

    कुछ सामंती अहंकारी शूद्रों का इसे नकारते हुए यह कहना कि, आप की परवरिश के माहोल के कारण आप के साथ ऐसा होता हैं, हमारे बाप दादा के साथ ऐसा कभी नहीं हुआ है, ब्राह्मण के बच्चे भी हमलोगों को नमस्कार या प्रणाम करते हैं। एक दो अपवाद हो सकते हैं, उसे मैं नकार नहीं रहा हूं। मेरे साथ भी छुआछूत, ऊंच-नीच जैसा व्यवहार कभी नहीं हुआ है, लेकिन अज्ञानता में बचपन में खुद करते हुए महसूस किया है। इस तरह का मानवीय अत्याचार खूब देखा और सुना भी है। मैं आज भी मुंबई में काफी संपन्न यादवों को "पांव लागी पंडित जी" संबोधन करते हुए देखता हूं। हमारे एक चिर- परिचित सम्मानित डाक्टर साहब को, जिनकी उम्र करीब 75 साल हैं, अपने ब्राह्मण परिचित रोगियों को पांव लागी पंडित जी संबोधन करते देखा है। इस व्यवहार पर उन्हें टोका भी है, उनका कहना है कि, यह शिष्टाचार बहुत पहले से चला आ रहा है।

    *हिन्दू धर्म का मुख्य तत्व ज्ञान भी यही है कि ब्राह्मण सिर्फ मान सम्मान पाने का अधिकारी है, दूसरों को देने का नही ।* 

     हमारा बचपन से लेकर आज तक मुसलमानों से सरकारी नौकरी पेशा में या सामाजिक जीवन चर्या में, हमेशा साथ रहा है। मैं 1979 - 1998 तक मुस्लिम बहुल क्षेत्र जोगेश्वरी पश्चिम, यादव नगर में रहा हूं। यादव नगर का अध्यक्ष होने के कारण भी, मैं यह दावा कर सकता हूं कि,  कभी किसी भी तरह से किसी को भी अकारण अपमानित नही किया है। उल्टे जब भी सामना  हुआ है, हमें मान सम्मान और सहयोग ही दिया है और लिया भी है। कुछ असामाजिक तत्व तो हर समाज में होते है, इसे नकारा नही जा सकता है।

   *कुछ लोग तो कुछ कारणो से इतने अच्छे होते है कि हम सोच भी नही सकते, जैसे ब्याज या सूद न लेना, दूध में पानी न मिलाना, आपस में भाई चारे से रहना, असहाय और गरीबो की  यथाशक्ति मदद करना। मेरा साधारण सा अनुभव भी कहता है कि, यदि मुसलमानो के साथ राजनीतिक दुर्भावना, काश्मीर मसला और पर्सनल बाद -विवाद को अनदेखी करके देखें तभी सही आंकलन होगा।  झगड़ा या वाद-विवाद तो हर परिवार में, अपने दर-दयाद में और भाई भतीजे के साथ ही ज्यादा होते रहते हैं। यदि प्रमाण देखना है तो पुलिस थाने में दर्ज शिकायत या कोर्ट मुकदमा जाकर देख लीजिए। मुसलमानों को अपना दुश्मन समझने का भूत उतर जाएगा। यदि आप स्वस्थ मानसिकता से देखें तो कहीं कोसो दूर तक, धर्म आधारित हिन्दू-मुसलमान दुश्मनी का कारण नजर नही आता है। यही नहीं स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजी शासन में तथा सैकड़ों सालों तक मुगल मुसलमान पिरियड में भी , राजा रजवाड़ों के साम्राज्य विस्तार में  धार्मिक हिंदू-मुस्लिम की नफरत भारत के इतिहास में कहीं नहीं दिखाई देती है।* 

 *एक अनुभव शेयर करना उचित समझता हं।* 

  बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद मुम्बई में 1993 में बहुत बड़ा हिन्दू -मुस्लिम दंगा हो गया। मुस्लिम बहुल जोगेश्वरी पश्चिम यादव नगर के साथ साथ कुछ और हिन्दू बस्ती चारो तरफ से मुस्लिम बस्तीयों से घिरी हुई थी । यादव नगर के हनुमान मंदिर और मुस्लिम सगुफा बिल्डिंग के मस्जिद की दीवार कामन थी। बाहर से कुछ असामाजिक तत्व आते थे, गलत अफवाह फैलाकर दंगा कराने की कोशिश करते रहते थे। 

   *किसी भी कीमत पर यादवों और मुसलमानों में दंगा कराना उनका मकसद रहता था। एक ब्राह्मण भी बाहर से अपनी पहचान छिपा कर आता था, जो तथाकथित हिन्दुओं का रक्षक होने का दावा भी करता था। उसको बराबर जबाब देकर मैं भगा देता था। उसका बार बार अफवाही मैसेज जैसे, वहां --- मुसलमानों ने हिन्दुओं को काट डाला, सगुफा बिल्डिंग और मस्जिद में आज रात को हथियारों का जखीरा रखा गया है। मैंने कहा, तुम यहां से दूर रहकर हथियारों का जखीरा देख लेते हो, जब कि हमलोग बाजू में रहकर रात-भर पहरेदारी करके भी नहीं देख पाए।*

    हिन्दू -मुस्लिम शान्ति एकता कमेटी भी बनाई गई थी। जोगेश्वरी रेल्वे स्टेशन, आने जाने के लिए करीब  500 मीटर मुस्लिम बस्ती से ही गुजरना पड़ता था। किसी हिन्दू को कोई नुकसान न हो, मुस्लिम भाई पूरे रास्ते की चौकसी करते हुए सुरक्षा की जिम्मेदारी लिए हुए थे । मैं भी कुछ लोगो के साथ  यादव नगर के बाहर चौराहे पर ही हर समय चौकसी करता रहता था। एरिया में शान्ति बनी हुई थी। 

    *एक बार पुलिस की गाड़ी आई, मैं खुद सामने आकर अधिकारी से बात किया और कहा साहब यहां सब नार्मल है, चिन्ता की कोई बात नहीं है। इतना कहते ही मुझ-पर डंडे चला दिया और कहा यह तुम्हारा काम नहीं है, अपने घर से बाहर मत निकलो।*

    उनके गलत इरादों को भांपते हुए भी अपना फर्ज निभाया और यादव नगर मे दंगा भड़काने के लाख कोशिशों के बाद भी, कहीं किसी को एक खरोच तक नहीं आने दिया।

  *ठीक है मान लिया स्वतंत्रता से पहले तुम्हारा मनु का संविधान था। तुमने शूद्रों को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक तथाकथित हिन्दू बनाकर शोषण किया। लेकिन आज समता, समानता और बन्धु त्वं पर आधारित संविधान होने के बावजूद भी, शूद्रों के मूलभूत  सम्वैधानिक अधिकारो का हनन और विरोध भी तथाकथित हिन्दू ही करता है, जबकि मुसलमान सहयोगी और हमदर्द हर मौके पर दिखाई देता है ।* 

  अब आकलन आप को करना है, विशेष रूप से अंधभक्तों को कि, आप का शातिर दुश्मन कौन है? 

*आप का समान दर्द का हमदर्द साथी!* 

 गूगल@ *गर्व से कहो हम शूद्र हैं*

  गूगल@ *शूद्र शिवशंकर सिंह यादव* 

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