बुध्द की पावन जन्मस्थली कपिलवस्तु (पिप्परहवा) में मिले पवित्र अस्थीधातु - हिरे जवाहरात की हाँगकाँग में ७ में २०२५ को खुली निलामी : भारत सरकार की खामोशी

 


👌 *बुध्द की पावन जन्मस्थली कपिलवस्तु (पिप्परहवा) में मिले पवित्र अस्थीधातु - हिरे जवाहरात की हाँगकाँग में ७ में २०२५ को खुली निलामी : भारत सरकार की खामोशी !*

     *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म प्र 

         बुध्द की पावन जन्मस्थली कपिलवस्तु (पिप्परहवा) में, सन १८९८ को अंग्रेज शासन काल मे खुदाई की गयी थी. उस खुदाई में बुध्द के महापरिनिर्वाण के बाद, बुध्द की पावन अस्थिधातु आठ भागों में बाटी गयी. उस का एक भाग *"शाक्य वंश"* को मिला था. और उन्होंने उस पावन अस्थिधातु का जतन *"पांच अस्थि करंडक"* में, कपिलवस्तु (पिप्परहवा) स्तुप में सुरक्षीत रखने का इतिहास है. अंग्रेज शासन काल में पिप्परहवा स्तुप में हुये उत्खनन में, वह पांच करंडक तथा कुछ मुल्यवान रत्न - हिरे जवाहरात आदी मिले थे. अंग्रेज अफसर *विलियम क्लैक्सटन पेपे* इन्होने कुछ भाग को भारत में रखकर, बाकी सभी अस्थिधातु - हिरे जवाहरात आदी इंग्लंड ले गये. *मुझे व्यक्तिश:* भी, उन पावन स्थानों को भेट देने का अवसर भी मिला. भारत के नामचीन पत्रिका ने, उस बुध्द अस्थीधातु निलामी ७ मई २०२५ को होने की खबर छाप दी. और बडा तहलका मच गया. सदर *"निलामी"* को रोकने की मांग उठी. तो कुछ मान्यवरों ने *"भारत सरकार"* को, वह बुद्ध अस्थिधातु भारत वापस लाने की मांग की. कुछ मान्यवरों का मुझे मेसेज भी आया. मुंबई - नासिक प्रवास से आठ दिन पहले नागपुर आने के बाद, मैं व्हायरल फिवर से ५ दिनों सें पिडित रहा. उसी हालात  में, मुझे एक करीबी रिस्तेदार के अंतसंस्कार को तथा एक अन्य आंबेडकरी कार्यकर्ता के अंतसंस्कार को जाना भी पडा. मैं पुर्णतः स्वस्थ भी नहीं हो पाया. इस महत्वपूर्ण विषय पर लिखने का मन बना चुका.

         बुध्द की पावन अस्थिधातु यह भारत का, बडा अनमोल ठेवा है. अत: भारत सरकार / पुरातत्व विभाग का वह नैतिक कर्तव्य है कि, उस निलामी को रोक दे. तथा आवश्यक मुल्य चुकाकर, हाँगकाँग से उसे भारत लाये. *"युनेस्को कन्व्हेशन १९७०"* अंतर्गत, इस तरह की खुली निलामी करना उचित भी नहीं है. परंतु भारत के प्राचिन बुद्ध धरोहर की हालात, हम देख रहे है. पुरातत्व विभाग सोया हुआ है. मुझे प्राचिन बुद्ध धरोहर के प्रति प्रेम होने से, मैं अकसर अकेला तो कभी कभी मेरे मित्र के साथ भेट देते आया हुं. वह यादें मैं बहुत संजोगे रखता भी हुं. *श्रीलंका प्रवास* में भी मुझे उसका अच्छा अनुभव आया है. और *चक्रवर्ती सम्राट अशोक* के महान कार्यों को भुलना, कभी संभव भी नहीं है. यहां सवाल तो, भारत की अस्मिता *"जिंदापन"* का है. भारत सरकार हो या, भारत की आवाम हो, उनकी *"चेतना"* भी जीवित है या नहीं ? यह प्रश्न हैं. क्यौं कि *"थायलंड / मलेशिया / सिंगापूर / नेपाल / श्रीलंका / व्हिएतनाम / साऊथ कोरिया"* इन देशों कें, मेरे प्रवास में, उन विदेशी बुध्द लोगों की भावनांओं को, मैने बहुत करीब से देखा है. वह चेतना / भावना भारत में मृतप्राय दिखाई देती है. *"बुध्दगया"* विषय हो या, मुंबई का *"राजगृह"* विषय हो, वह कभी *"संघ शक्ति"* नहीं बन पाया है.

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▪️ *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

       नागपुर, दिनांक ६ मई २०२५

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