*~~~~~वे गुलामों की तरह~~~~*
*~~~~फिर से दबाना चाहते हैं~~~*
*चेतना के स्वर अभी, कुछ और उठने चाहिये।*
*जिस तरह लूटे गये हम, वे भी लुटने चाहिये।*
हम नहीं प्रतिशोध की, ज्वाला जलाना चाहते हैं।
क्या करें मजबूर हम भी, घर चलाना चाहते हैं।
*हम अगर पक्के मकानों में, अभी रहने लगे हैं।*
*बड़प्पन के जो किले थे, वे सभी ढहने लगे हैं।*
वे हमारी नारियों को, नग्न कर के चल रहे थे।
चर्च भी थे और घर भी तो, वहाँ पर जल रहे थे।
*वे गुलामों की तरह, फिर से दबाना चाहते हैं।*
*है खुला मैदान हम भी, आजमाना चाहते हैं।*
जिन्दगी है चार दिन की, हम संभालें किस लिये ?
पीढ़ियों पर हम अभी, कीचड उछालें किस लिये ?
*बाजुओं में दम लगा कर, अब कदम बढ़ते रहेंगे।*
*भूल जायें दिन पुराने, हम सदा चढ़ते रहेंगे।*
अल्प संख्यक भी यहाँ, लेने लगे अंगड़ाइयाँ हैं।
है उन्हें मालूम आगे भी, बहुत सी खाइयाँ हैं।
*छ्द्म छाया में अभी भी, बहुत सारे पल रहे हैं।*
*जैन जैसे हैं कई सँग में, पकौड़े तल रहे हैं।*
बेटियाँ ब्याहीं मुसलमानों में, इसका राज क्या ?
लोग समझेंगे नहीं, है पंख क्या परवाज क्या ?
*दूर की कौड़ी यहाँ पर, फेंक कर भरमा रहे।*
*कौम पसमांदा उसी पर, इस तरह गरमा रहे।*
धर्म ढीला पड़ गया, आचार्य चारों मौन हैं।
शुंग वंशज कह रहे हैं, ये यहाँ पर कौन हैं ?
*राज की है नीति इसको, तोड़ कर चलते रहो।*
*बाद बाकी जो बचे बस, हाथ ही मलते रहो।*
आ गया है क्षण वही, वे रोज कुटने चाहिये।
टेकने हर हाल में, उनको ही घुटने चाहिये।
*चेतना के स्वर अभी, कुछ और उठने चाहिये।*
*जिस तरह लूटे गये हम, वे भी लुटने चाहिये।*
*मदन लाल अनंग*
द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।
*1-* वैचारिक खोज बीन के आधार पर समसामयिक, तर्कसंगत और अकाट्य लेखन की प्रक्रिया *मध्यम मार्ग समन्वय समिति* के माध्यम से जारी *2700 से अधिक लेख/रचनायें* सोशल मीडिया पर निरंतरता बनाये हुए हैं।
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