*~~~~ये बाहर की नहीं हमें~~~~*
*~~ अंदर की साजिश लगती है~~*
*इतना सब हो रहा किसी से, क्या आँखें दो चार करें ?*
*लोग मरें तो मर जाएँ, पर वे अपना व्यापार करें।*
जब से होश संभाला हमने, हर घटना ही ठगती है।
ये बाहर की नहीं हमें, अन्दर की साजिश लगती है।
*पुलवामा का पार्ट तीसरा, नहीं समझ में आयेगा।*
*जिसको शोर मचाना है, वो जी भर शोर मचायेगा।*
नहीं पनपने देंगे ये, आतंकवाद को सीमा में।
दो दस नहीं करोड़ों उलझे, मिलने वाले बीमा में।
*जब किसान दिल्ली के अन्दर, दखल नहीं कर पाये थे।*
*जो शहीद हो गये उन्होंने, क्या क्या ख्वाब सजाये थे।*
बार बार तकिया कलाम को, रटने वाले बाबू हैं।
तब से अब तक नजर उठाओ, हर हालत बेकाबू है।
*और करो विश्वास भगोड़ों के, मेढक बरसाती पर।*
*नहीं उठे तो मूँग दलेंगे, वे हम सबकी छाती पर।*
है चुनाव का वक्त उन्हें, अपनी मनमानी करनी है।
लोगों को बहला फुसला कर, चूनर धानी करनी है।
*दिल्ली के दरम्यान हुआ जो, मुफ्त रोशनी नहीं मिली।*
*खून चूसने वालों की, सूरत कितनी है खिली खिली।*
आँखों में आक्रोश, ये जनता घूँट खून के पीती है।
आस पास उठ चुकी सुनामी, पर ये मर मर जीती है।
*क्यों बंगाल उपद्रब छाया, क्यों कश्मीर निशाना है ?*
*है सरकार दूसरे दल की, जाम वहीं छलकाना है।*
क्रोनोलोजी समझ नहीं, पायेंगे जो दुमछल्ले हैं।
इधर मरो या उधर मरो, उनके तो बल्ले बल्ले हैं।
*उनकी जान सुरक्षित हो, बस वही कवायद होती है।*
*जो उनकी है वो भी अपना, शीश पकड़ कर रोती है।*
खबर नहीं कोई पाओगे, मुखर मीडिया ठंडा है।
दिल्ली की गद्दी पर बैठा, एक अनाड़ी पंडा है।
*भरे तैश में लोग हजारों, सड़कों पर मिल जायेंगे।*
*ऐसे ऐसे घाव हुये हैं, कभी नहीं सिल पायेंगे।*
अपनी अपनी गली में सारे, भौंक भौंक कर वार करें।
अगर निपटना है तो मिल कर, मार करें बस मार करें।
*इतना सब हो रहा किसी से, क्या आँखें दो चार करें ?*
*लोग मरें तो मर जाएँ पर, वे अपना व्यापार करें।*
*मदन लाल अनंग*
द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।
*1-* वैचारिक खोज बीन के आधार पर समसामयिक, तर्कसंगत और अकाट्य लेखन की प्रक्रिया *मध्यम मार्ग समन्वय समिति* के माध्यम से जारी *2700 से अधिक लेख/रचनायें* सोशल मीडिया पर निरंतरता बनाये हुए हैं।
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