एक मेडिकल छात्रा ने पोस्ट लिख कर हम जैसे युद्ध विरोधी बुद्धिजीवियों से पूछा है :-
‘ आतंकवाद को खत्म करने की आपकी क्या योजना है??
युद्ध न हो तो सरकार और सेना को इन आतंकवादीयों से कैसे निपटना चाहिए??
घुसपैठ और आये दिन होने वाली आतंकी गतिविधियों,सीज़ फायर का उल्लंघन,बॉर्डर पर होने वाली गोलीबारी का जवाब सेना को कैसे देना चाहिए?
पाकिस्तान जैसे आतंकी देश के साथ कैसे डिप्लोमेटिक रिलेशन मेंटेंन करना चाहिए??
निहत्थे मासूमो पर गोली दागने के बाद देश को सांप्रदायिक आग में झोंक के जाने वाले दहशतगर्दों के साथ क्या सलूक होना चाहिए??
कृपया कविता,पोस्टर, no to war,"जंग मसलों का हल नहीं जैसी घिसी पिटी लाईन लिखने के साथ ही साथ इन समस्याओं के उपाय पर भी विस्तृत लेख लिखें, जिससे भारत सरकार और सेना को भी कुछ ज्ञान मिले...
और वो आपके बताये रास्ते पर चलते हुए पूरा देश उन हरामखोरों के नाम कर दें ’
अब आइये बिना क्रोधित और चिढ़े हुए शांत दिमाग से इन प्रश्नों का उत्तर तलाशते हैं |
मैं युवाओं का प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाता हूँ उसमें मेडिकल और इंजीनियरिंग आईआईटी मेनेजमेंट के छात्र अक्सर इस तरह के सवाल पूछते हैं और हम इन मुद्दों पर उनसे बात करते हैं और उनका समाधान करते हैं |
पहला सवाल अपने आप से पूछिए कि भारत और पाकिस्तान के बीच जो आतंकवाद है उसका आधार क्या है ? यानी क्या वह धार्मिक आतंकवाद है, जातीय आतंकवाद है या आर्थिक आतंकवाद है ?
तो आपको जवाब मिलता है कि यह धार्मिक आतंकवाद है |
अब दूसरा उत्तर खुद से पूछिए कि इस धार्मिक आतंकवाद का सम्बन्ध धार्मिक कट्टरता से है या नहीं है ?
जवाब है कि हाँ इस आतंकवाद का सम्बन्ध धार्मिक कट्टरवाद से है |
अब अपने से ही अगला सवाल पूछिए कि धार्मिक कट्टरवाद को पैदा करने, पालने पोसने और उसका सत्ता पाने के लिए इस्तेमाल करने के लिए दोनों देशों की राजनीति ज़िम्मेदार है या नहीं है ?
आपको जवाब मिलेगा कि बेशक दोनों देशों में धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा देने में राजनीति का हाथ है |
अब खुद से सवाल पूछिए कि राजनीति धार्मिक कट्टरता को क्यों बढ़ावा देती है और क्यों उसे सत्ता पाने के लिए धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा देना पड़ता है ?
तो आपको जवाब मिलेगा क्योंकि राजनीति जनता से जुड़े मुद्दों पर काम नहीं करती है इसलिए चुनाव में जनता को धर्म के नाम पर बहका कर सत्ता प्राप्त करने का हथकंडा अपनाती है |
अब एक हाईपोथिकल सवाल खुद से पूछिए कि अगर दोनों देशों की राजनीति धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा नहीं देगी तो चुनाव जीतने के लिए उसे कौन सी राजनीति करनी पड़ेगी ?
तो उसका जवाब यह है कि फिर दोनों देशों की सरकारों को जनता के हित की राजनीति करनी पड़ेगी |
अब सवाल आएगा कि जनता कौन है और उसका हित क्या है और उसके हित की राजनीति का क्या मतलब है ?
तो आँख खोल कर अपने ही देश में चरों तरफ नज़र घुमा कर देखो की जनता कौन है और वह क्या मांग रही है |
इसका जवाब आपको यह मिलेगा कि जनता का मतलब है मजदूर, किसान, छात्र, बेरोजगार युवा, अल्पसंख्यक और महिलाएं |
और इस जनता के हित की राजनीति का क्या मतलब है ?
इस जनहित की राजनीति का मतलब है कि मजदूरों से जो अधिकार छीने गए हैं उन्हें वापिस दो, उनका न्यूनतम वेतन निर्धारित करने की पुरानी मांग मान लो, किसान जो न्यूनतम खरीदी मूल्य की मांग कर रहा है उसे पूरा करो, पूंजीपतियों के लिए आदिवासी की ज़मीन मत छीनो, महिलाओं को बराबरी दो पितृसत्ता के सामने मत झुको, अपने देश के अल्पसंख्यकों की लिंचिंग करने वाले संघियों को जेल में डालो |
लेकिन अगर सरकार यह सब करेगी तो क्या उसे चुनावी चंदा देने वाले पूंजीपति चंदा देंगे ?
क्या अपने देश के सवर्ण, अमीर पुरुष इस सब को पसंद करेंगे ?
नहीं करेंगे |
और सरकार इन ताकतवर लोगों के विरोध से डरती है इसलिए वह कभी इनके हितों के विरुद्ध कोई नीति नहीं बनाती |
तो दोनों देशों के बीच इस आतंकवाद को हमेशा के लिए समाप्त करने का रास्ता यह है कि हम मिलकर अपने अपने देश की राजनीति को इन धार्मिक जातिवादी पूंजीवादी मर्दवादी लोगों के प्रभाव से आज़ाद करें |
इसके बाद ही हम दोनों देशों के नौजवान मिलकर अपने अपने देशा में ऐसी राजनीति को मजबूत कर पाएंगे जो धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा देने की बजाय जनता के मुद्दों की राजनीति करने के लिए मजबूर हो |
इसी रास्ते से हम दक्षिण एशिया में स्थाई शान्ति ला सकते हैं |
लिख कर रख लीजिये फौजी कार्यवाहियां इसका कभी समाधान नहीं कर सकती |