❤☸ बौद्ध धम्म का सार
बौद्धों के कर्तव्य और जवाबदारी
मनुष्य जीवन मे दुःख तीन प्रकार के उत्पन्न होते है। 1. आध्यात्मिक दुःख (वैयक्तिक दुःख) -- व्यक्ति के अज्ञान के कारण , तृष्णा के कारण, अकुशल कर्म करने के कारण उसके जीवन मे दुख उत्पन्न होते है जो उसे, उसके परिवार को या समाज को भी भुगतने पड़ते है। 2. आदिभौतिक दुःख (सामाजिक दुख) -- आदमी आदमी के प्रति जो अनुचित व्यवहार करता है उसी मे से आदमी का सारा दुख पैदा होता है। आदमी अपने लोभ द्वेष मोह (तृष्णा) के कारण दुसरों के प्रति अनुचित व्यवहार करता है , दुसरों का शोषण जुल्म अन्याय भेदभाव करता है। उससे विभिन्न प्रकारकी विषमतायें असमानतायें, दरिद्रता उत्पन्न होती है, सामाजिक दुःख उत्पन्न होते है, वर्ग संघर्ष उत्पन्न होता है। 3. आदिदैविक दुःख (नैसर्गिक आपदाओं से उत्पन्न दुख)-- निसर्ग मे विभिन्न प्रकार की घटनाए घटित होती है जिनपर मनुष्य नियंत्रण नही कर सकता। अतिवृष्टी अनावृष्टी बाढ़ सूखा भूकंप सूनामी तुफान बवंडर हिमपात आदि विभिन्न आपदाओं से मनुष्य जीवन मे संकट, दुःख उत्पन्न होते रहते है।
इस प्रकार सारा संसार दुःख से भरा पड़ा है। धर्म का उद्देश्य इस दूख को दूर करना है, ऐसे दुख का नाश करना है। इसके अतिरिक्त सद्धम्म और कुछ नही है।सद्धम्म को कर्मकाण्ड के क्रियाकलापों से कुछ भी लेनादेना नही है। इन दुःखों को पंचशील, अष्टांग मार्ग और दस पारमिताओं का पूर्णता पालन करके और प्रभावी न्यायपूर्ण प्रशासनिक और गैर प्रशासनिक सही प्रयत्नों के द्वारा दुर किया जा सकता है। बौद्ध धर्म के मुलभूत तत्व, सिध्दांत ही आज की विषमतापूर्ण भेदभावपूर्ण अन्यायपूर्ण दुखद स्थिती को बदलने के लिए प्रभावशाली मार्ग है।
बौद्ध धर्म के आधारभूत मूलतत्व -- सिध्दांत इस प्रकार है --
1. अनित्य 2. दुःख 3. अनात्म 4. अनिश्वरवाद 5. प्रतित्यसमुत्पाद (हेतूवाद बुद्धिवाद) 6. सामाजिक वर्ग संघर्ष 7. अष्टांगिक मार्ग , पंचशील, पारमिताए 8. प्रज्ञा शील करूणा 9. मैत्री प्रेम सत्य अहिंसा शांति सहिष्णुता 10. न्याय, स्वातंत्र्य, समता, भाईचारा 11. स्त्रीदास्य जातिवर्णभेद अंत 12. नैतिकता और जनसेवा जनकल्याण।
बहुजन हिताय- बहुजन सुखाय, भवतु सब्ब मंगलं , सब्बे सत्ता सुखी होन्तु । संक्षेप मे, लोकतांत्रिक समाजवादी मूल्य, मानवतावाद(करुणा भाईचारा मानव अधिकार) ,समानतावाद, नैतिकता, बुद्धिवाद पर आधारित समाजव्यवस्था (विश्व का महत्तम नैतिक-क्रम) का निर्माण करना। यही बौद्ध धर्म का सार है। यही सद्धम्म है। यही सर्वोत्तम " धम्मराज्य" है। दुनिया मे इसी सद्धम्म की स्थापना करना है। प्रत्येक बौद्धो ने इन सभी तत्व सिद्धांतो को पढना चाहिए , जानना समजना चाहिए और इन पर आचरण करना चाहिए .
मनुष्य को जीने के लिए प्रथम ज्ञान यानि जाणकारी, शिक्षा और दुसरा रोजगार धंदा यानि भोजन , पेट भरने का साधन, इन दो मुलभूत चिजो की जरूरत होती है। किसी भी देश, किसी भी शासनसत्ता, किसी भी वर्ग ने इन दो बुनियादी चिजो को किसी भी दुसरे वर्ग से, किसी भी दुसरे मनुष्य से कभी छिनना नही चाहिए , नाही इन पर कोई बंधन लगाना चाहिए।
भारतीय जनता इस तत्वप्रणाली का गहनतासे, गंभीरतासे अध्ययन करे और तदनुसार सही आचरण, सही कार्य करे। बौध्दों ने इन तत्वों, सिध्दांतो का गहन अध्ययन करना चाहिए और स्वयं के प्रत्यक्ष आचरण के साथ साथ इन तत्वों सिद्धांतो का सही प्रचार प्रसार भी करना चाहिए। दुनिया मे ऐसे सर्वोत्तम "धम्मराज्य" की स्थापना करने के लिए संघर्ष करना चाहिए।
संदर्भ-- 6 मई 1955 बुद्धपुर्णीमा पर सोपारा,मुंबई मे बाबासाहेब आंबेडकर का भाषण , और बुद्ध और उनका धम्म।
भगवान बुद्ध का धम्म त्रिशरण पंचशील अष्टांगी मार्ग पर आधारित है। डॉ बाबासाहेब अंबेडकर ने जो 14 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धम्म की दीक्षा दी हैं,उसमें 22 प्रतिज्ञाओं का समावेश किया है। जिस व्यवस्था ने हमें पशुओं से भी गया बीता समझा, उस व्यवस्था के खिलाफ डॉ बाबासाहेब अंबेडकर ने 22 प्रतिज्ञा दिया है। इसलिए हमें डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा दिए गए बुद्ध धम्म को अपनाना अत्यंत आवश्यक है। डॉ आंबेडकर के द्वारा दिए गए बौद्ध धम्म के अनुरूप ही हम अपना सर्वांगीण कल्याण कर सकते हैं। आज विश्व शांति के अग्रदूत, मानवता के संदेशवाहक, करुणा के सागर, सत्य अहिंसा करुणा के प्रेरणादायक, तथागत गौतम बुद्ध का जन्मदिन जयंती है। इस महान पर्व पर मैं समस्त देश दुनियां के बौद्धों को बधाई मंगल कामनाएं प्रेषित करता हूं। विजय बौद्ध संपादक दि बुद्धिस्ट टाइम्स भोपाल मध्य प्रदेश,