कभी संविधान ने हमें दिशा दी थी, आज उसी दिशा पर धुंध छाई है।
मील के पत्थर तो लगे हैं रास्ते में, पर मुसाफिरों की नज़र मंज़िल पर नहीं—अपने-अपने स्वार्थ पर है।
संविधान सिर्फ किताबों में नहीं, ज़मीन पर उतरने की मांग करता है—और यही आवाज़ इस रचना के हर शब्द में सुनाई देती है।