ब्राह्मण-मुस्लिम संबंध: इतिहास, सत्ता और राजनीति

 


ब्राह्मण-मुस्लिम संबंध: इतिहास, सत्ता और राजनीति 

क्या ब्राह्मणवाद की सत्ता संरचना का अंत संभव है?


भारत का इतिहास केवल युद्धों और विजयों का नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, वैचारिक और सत्ता साझेदारियों का भी रहा है। ऐसे ही एक जटिल संबंध का विश्लेषण है—ब्राह्मण और मुस्लिमों के बीच का रिश्ता। आज जहाँ हिंदुत्व की राजनीति इस संबंध को टकराव और शत्रुता के रूप में चित्रित करती है, वहीं इतिहास के आईने में यह संबंध कहीं अधिक सहयोगात्मक और रणनीतिक रहा है। यह लेख इसी विरोधाभास की परतें खोलता है।


1. मध्यकालीन इतिहास: साझेदारी और सत्ता-संरचना


मुस्लिम शासनकाल, विशेषकर सुल्तनत और मुगल काल में, ब्राह्मण केवल एक धार्मिक वर्ग नहीं थे—वे प्रशासन, राजस्व व्यवस्था, शिक्षा और ज्योतिष जैसे क्षेत्रों में उच्च पदों पर कार्यरत थे।

• अकबर के नवरत्नों में ब्राह्मण मंत्री शामिल थे, जैसे टोडरमल।

• संस्कृत ग्रंथों का फारसी में अनुवाद ब्राह्मणों की भागीदारी से हुआ।

• फ्रांसिस बर्नियर, अबुल फज़ल और तैमूर की आत्मकथा जैसे दस्तावेज़ों में ब्राह्मणों को एक सहयोगी वर्ग के रूप में चित्रित किया गया है।


यह संबंध किसी धार्मिक सद्भावना का नहीं बल्कि सत्ता-प्रबंधन का हिस्सा था—जहाँ ब्राह्मणों ने शासकों को वैधता दी और बदले में विशेषाधिकार पाए।


2. सत्ता का धर्मनिरपेक्ष यथार्थ


ब्राह्मणों ने इतिहास में कभी भी एक मुसलमान शासक से इस आधार पर विरोध नहीं किया कि वह “म्लेच्छ” है। यदि सत्ता और संरक्षण मिल रहा हो, तो ब्राह्मणवाद ने धर्म से ऊपर सत्ता को वरीयता दी।

• हूण, शक, कुशान, और बाद में राजपूतों को भी ब्राह्मणों ने शुद्धिकरण के बाद क्षत्रिय घोषित किया।

• मुस्लिम शासक ईरानी-तुर्की मूल के थे, जो ब्राह्मणों के पश्चिमी स्रोतों (जैसे यहूदी, पारसी, यूनानी) से नज़दीकी दिखाते हैं।

• आबू पर्वत शुद्धिकरण सम्मेलन (8वीं सदी) ब्राह्मणवाद के सत्ता-व्यवस्थापक चेहरे का प्रमाण है।


3. वैचारिक टकराव: बौद्ध-इस्लाम बनाम ब्राह्मणवाद


ब्राह्मणों के लिए वास्तविक वैचारिक चुनौती कभी मुस्लिम शासन नहीं रहा—बल्कि बौद्ध धर्म और उसके समानता के मूल्य थे।

इस्लाम के आगमन से पहले ही भारत में बौद्ध धर्म ब्राह्मणवाद को चुनौती दे रहा था:

• बुद्ध ने जाति व्यवस्था और वेदों की सत्ता को खारिज किया।

• इस्लाम ने भी जातिविहीन समाज और एकेश्वरवाद को बढ़ावा दिया।


ब्राह्मणवाद ने इन दोनों धाराओं से सत्ता छीनी—एक को समूल नष्ट किया (बौद्ध धर्म) और दूसरे को “शत्रु” की छवि देकर राजनीतिक लाभ उठाया (इस्लाम)।


4. वर्तमान दौर: गढ़ी गई दुश्मनी और राजनीतिक प्रयोग


मोदी युग में ब्राह्मणवादी राजनीति ने मुसलमानों के खिलाफ जो नफरत फैलाई है, वह इतिहास के तथ्य नहीं, बल्कि राजनीतिक रणनीति है।

• गौरक्षा, लव जिहाद, घर वापसी, और मंदिर-मस्जिद विवाद—ये सब ब्राह्मणवादी सत्ता के स्थायित्व के लिए तैयार “दुश्मनी के मंचन” हैं।

• टीवी मीडिया, सिनेमा और WhatsApp यूनिवर्स के ज़रिए मुस्लिमों को एक विलेन के रूप में प्रचारित किया गया है।

• इसका असली उद्देश्य: दलित, पिछड़े और मुसलमानों की संभावित एकता को तोड़ना।


5. निष्कर्ष: साझेदारी से शत्रुता तक


इतिहास हमें यह सिखाता है कि ब्राह्मण और मुस्लिमों के बीच शत्रुता कोई शाश्वत सत्य नहीं, बल्कि एक निर्मित मिथक है।

सच यह है:

• ब्राह्मण और मुस्लिम शासक राजनीतिक सहयोगी रहे हैं।

• ब्राह्मणवाद का विरोध उन विचारों से है जो समानता, वैज्ञानिकता और सामाजिक न्याय की बात करते हैं—जैसे बौद्ध धर्म, इस्लाम, और आज का बहुजन विमर्श।

• आज की नफ़रत राजनीतिक स्वार्थ और सत्ता-संरचना की रक्षा के लिए तैयार की गई रणनीति है।


आगे की राह


यदि अनुसूचित, पिछड़े, मुसलमान और अन्य वंचित समुदाय इस ऐतिहासिक सच्चाई को समझें और आपसी मतभेद भुलाकर एक साथ आएँ, तो ब्राह्मणवाद की हजारों वर्षों की सत्ता संरचना का अंत निश्चित है।

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