*~~~नौसिखियों ने काम संभाला~~*
*~~~देखो सबको सिखा रहे हैं~~~*
*अपनी अपनी चढ़ा के हांडी, अपनी किस्मत फोड़ रहे हैं।*
*सूरज अभी निकलने को था, बीच भंवर में छोड़ रहे हैं।*
नीबू मिर्च टाँगने वाले, नजर का लगना बता रहे हैं।
इसीलिये हर जगह देख लो, जान के दुश्मन सता रहे हैं।
*नहीं किताबी पन्ने पलटे, वक्त पलट कर ही आया है।*
*जिस दिन से ये कदम उठे थे, घूम रहा काला साया है।*
तीर चलाये सबने अपने, मगर निशाना कहाँ लगा था ?
गहरे उतरे तब ये जाना, अपनों ने ही यहाँ ठगा था।
*धूप निकल कर सिमट रही है, गरज रहे बादल दीवाने।*
*अन्धकार सा घिरा हुआ है, कौन किसे कैसे पहचाने ?*
तारीखों पर तारीखें हैं, कैसी लूट खसोट मची है ?
आँख खोल कर खूब देख लो, साजिश सबने यही रची है।
*सोच रहे थे सभी यहाँ पर, अभी किनारे आते होंगे।*
*जो बह कर के लगे डूबने, वे सारे पछताते होंगे।*
अब तो नयी दिशा तय करनी, उनके बस की बात नहीं है।
कौन कहाँ भटका लटका है, मिल पायी सौगात नहीं है।
*नहीं एक हो पाये फिर भी, ये संग्राम चलाते रहना।*
*अन्धकार चाहे जैसा हो, दीपक यही जलाते रहना।*
कठिन दौर पैदा कर के वे, अपनी मस्ती दिखा रहे हैं।
नौसिखियों ने काम संभाला, देखो सबको सिखा रहे हैं।
*घड़ा पाप का कहाँ धरा है, खाली है या भरा हुआ है।*
*चोट लगी है काफी गहरी, घाव यहाँ फिर हरा हुआ है।*
कुछ तो मस्त गुलामी में हैं, वे अब तक क्या जान सके हैं ?
किसके साथ कहाँ बैठे हैं, अब तक न पहचान सके हैं।
*झंडा ऊँचा वही लिये हैं, सबसे आगे दौड़ रहे हैं।*
*जो लगाम थामें हैं उनकी, गलियों गलियों मोड़ रहे हैं।*
*अपनी अपनी चढ़ा के हांडी, अपनी किस्मत फोड़ रहे हैं।*
*सूरज अभी निकलने को था, बीच भंवर में छोड़ रहे हैं।*
*मदन लाल अनंग*
द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।
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