*🔥बिहार चुनाव और मुम्बई में हलचल 🔥*
मुझे ऐसा लगता है कि, इस बार के बिहार के विधान सभा के चुनाव को भाजपा ने अपनी प्रतिष्ठा और राजनीतिक मरण जीवन का सवाल बना लिया है। वे किसी भी सूरत में चुनाव जीतना चाहते हैं। चुनाव तो बिहार में हो रहा है लेकिन खलबली पूरे देश और विदेश तक कई रूपों और कयी मोर्चों पर दिखाई दे रही है। कुछ दिखाई दे रहा है, तो कुछ अनुमानित है, तो कुछ अदृश्य भी है।
उसी में से मुझे, अभी दो दिन पहले नालासोपारा में एक यादव जी से औपचारिक मुलाकात से हो गई, वे हमें थोड़ा बहुत जानते थे, लेकिन मैं उनको बराबर नहीं जानता था। उनके हाथ में एक रजिस्टर था, ऐसे ही उत्सुकता बस पूछ लिया और रजिस्टर उनके हाथ से देखने के लिए, लेने की कोशिश करने लगा, पहले तो वो आनाकानी करते हुए, ऐसा कुछ भी बताने या छिपाने जैसा नहीं है। साथ में दो तीन लोग थे, तो उन्हें मजबूरी में देना पड़ा।
जब खुद मैं देखने लगा, तो वह खुद ही बड़े गर्व से बताना शुरू किये।
मुम्बई या उसके आस-पास जितने भी बिहार के लोग यहां रहते हैं और जिनका बिहार में वोटिंग लिस्ट में नाम शामिल हैं , उन सभी का विधान सभा चुनाव क्षेत्र, गांव का पता, मुखिया का नाम, परिवार का विवरण, मोबाइल फोन नंबर आदि एक रजिस्टर में दर्ज करना है। सभी कार्यकर्ताओं को अपनी अपनी एरिया की लिस्ट बना कर बिहार भेजना है। चुनाव के समय उनको बिहार भेजने की जिम्मेदारी हम सभी की है। हवाई जहाज से भी भेजना पड़ेगा तो हम उन्हें भेजने का प्रबंध करेंगे। मुंबई के वोटरों की पहचान वहां कर ली जाएगी। कैसे भी मुम्बई वालों का भी वोट बिहार चुनाव में पड़ेगा। मैंने सवाल कर दिया कि एक वोट के लिए इतना खर्च, उसका कहना था कि एक विधायक को खरीदने की कीमत से तो, इस तरह जिताना सस्ता ही पड़ता है।
मैं रजिस्टर में क्रमानुसार बिहारियों के वोटरों का पूरा विवरण देखकर दंग रह गया।
उनके लगन, दृढ़संकल्प, संगठन और मेहनत पर सोचने को मजबूर हुआ। कम संख्या होने पर भी बहुमत पर राज करने का फार्मूला भी समझ में आ गया। काश! शूद्रों में भी ऐसी भावना पैदा हो जाती। अभी तो उन बेचारों को अपनी अपनी जाति के घमंड और उच्चता बनाए रखने के लिए ही, आपस में लड़ना पड़ रहा है। संगठित शूद्र वर्ण को ही 6000 जातियों में बांटकर राजनीतिक रोटी सेंकने और चौराहे पर बिकने के लिए सैकड़ों नाम से टुकड़े करते जा रहे हैं। फिर शूद्र को ही अलग-अलग नामों जैसे - दलित , शोषित, कमेरा, अर्जक, बहुजन, मूलनिवासी, अनार्य, पीडीए, पीडीएम, मोस्ट -- आदि-आदि नामों से राजनीतिक पार्टी बनाते जा रहे हैं।दो हजार साल से, जो तुम्हारी 6000 जातियों के बाप के रूप में शूद्र की पहचान बनी है। उसी को गौरवान्वित महसूस करते हुए, सवर्णों की तरह क्यों नहीं एक हो जाते हो? अन्यथा आपस में ही किसी एक मजबूत पर सहमति क्यों नहीं करते हो? अफसोस ! शूद्रों को अपने अंदर के ब्राह्मणवाद से लड़ने से ही फुर्सत नहीं मिल रही है, तो दुश्मन के ब्राह्मणवाद से लड़ने की बात तो बहुत दूर की है। फिर बेचारे ब्राह्मणवाद को कोसने और गाली देने से ही संतुष्ट होने लगते है। ए नहीं सोचते हैं कि जो समाज, जब तुम्हें घोड़ी पर चढ़ना बर्दाश्त नहीं कर सकता है, वह समाज तुम्हें अपने जाति के बलबूते पर प्रधानमंत्री के कुर्सी पर कैसे बर्दाश्त कर सकता है? उनकी एकता की हिम्मत, तुम्हारी टुकड़ों में बटे अनेकता पर भारी पड़ रही है। मांंफी चाहता हूं, यदि ऐसे ही चलता रहेगा तो आगे भी भारी ही पड़ने वाला है।धन्यवाद!
गूगल @ *गर्व से कहो हम शूद्र हैं*
आप के समान दर्द का हमदर्द साथी!
गूगल @ *शूद्र शिवशंकर सिंह यादव*