त्याग से बनी नेता

 


"त्याग से बनी नेता को ग़लत मत समझो!"

1978 से लेकर 2003 तक, एक महिला ने कांशीराम साहेब के साथ कदम से कदम मिलाकर DS-4, BAMCEF और फिर बहुजन समाज पार्टी (BSP) को खड़ा करने में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उस महिला का नाम है — बहन मायावती।

बहनजी ने एक सपना देखा था — कलेक्टर बनने का। लेकिन जब उन्होंने मान्यवर कांशीराम साहेब के विचारों से खुद को जोड़ा, तो उस सपने को ठुकरा दिया। उन्होंने न शादी की, न घर-परिवार बसाया। समाज के लिए, आंदोलन के लिए, बहुजन स्वाभिमान के लिए उन्होंने सब कुछ छोड़ दिया। तब पार्टी भी नहीं बनी थी। वो उस दौर में गली-गली जाकर समाज को जागरूक कर रही थीं, जब बहुजन समाज की बहन-बेटियाँ शाम ढलते ही दरवाज़ा बंद कर लेती थीं।

कुछ लोग आज कहते हैं कि "बहनजी ने तो पका पकाया खा लिया।"

साफ़ कहूँ — ऐसी बात कहने वाला व्यक्ति या तो अज्ञानी है या बेहद चालाक। और जो आंख मूंदकर ऐसे नेताओं का समर्थन करते हैं, उन्हें समाज और इतिहास की समझ अभी नहीं आई है।

1984 में जब BSP बनी, उसके बाद से लेकर 2003 तक मान्यवर साहेब ने संगठन को मज़बूती से खड़ा किया और बहनजी को अपना उत्तराधिकारी बनाया।

2003 में जब साहेब को ब्रेन हैमरेज हुआ, तब बहनजी ही थीं जिन्होंने पार्टी को संभाला।

2006 में साहेब का निधन हुआ, लेकिन उससे पहले वो कई सालों तक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते रहे। उस कठिन दौर में भी बहनजी पार्टी के सिद्धांतों पर डटी रहीं।

आज कुछ मौकापरस्त नेता बहुजन समाज को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। वो खुद को "नई उम्मीद" बताकर समाज को भरमा रहे हैं।

लेकिन याद रखिए — ऐसे नेता बाबा साहेब और कांशीराम साहेब के समय में भी थे, और आज भी हैं।

ये नाम बदलते हैं, चेहरे बदलते हैं, पर काम वही होता है — समाज को तोड़ना, भ्रम फैलाना, और निजी स्वार्थ के लिए जनता की भावनाओं से खेलना।

मैं ऐसे किसी का नाम नहीं लेना चाहता, क्योंकि इनका काम ही इनकी पहचान है।

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