गढ़े गये जो यहाँ कथानक~~~* *~~~राह रोकते रहते हैं~

 

*~~~गढ़े गये जो यहाँ कथानक~~~*

*~~~~~राह रोकते रहते हैं~~~~~


*जैसी करनी वैसी भरनी, क्या खेल अजब ये खेला है ?*

*फँसा दिया जिस किसी भट्ट को, वो ही नहीं अकेला है।*

रचने को षड्यंत्र यहाँ पर, इसी तरह के रचते हैं।

चारों तरफ कुआँ खाई है, देखो कितने बचते हैं ?

*सीधे सादे लोग देश के, समझौता कर लेते हैं।*

*फँस कर उनके चक्रव्यूह में, बिना मौत मर लेते हैं।*

किसने करनी को जाना है, भरनी का विस्तार किया।

केवल भय पैदा करने को, कितना बंटाढार किया ?

*जिन्हें लगाया गया काम से, फिर उनको भी साफ किया।*

*अंदर की बातें हैं सारी, किसने किसको माफ़ किया ?*

गहरे राज छिपे हैं अब तक, महलों की दीवारों में।

फँसे हुये हैं लोग आज भी, इन बेहूदे नारों में।

*जिनको भ्रम था महल किले, बर्बाद नहीं हो पायेंगे।*

*अब इतने बर्बाद हुये, आबाद नहीं हो पायेंगे।*

करनी का फल नहीं इसे, आँखों का धोखा कहते हैं।

मन जाता है हार इसी को, रूप अनोखा कहते हैं।

*कदम कहीं भी कभी उठाओ, लोग टोकते रहते हैं।*

*गढ़े गये जो यहाँ कथानक, राह रोकते रहते हैं।*

कहावतों का मुहावरों का, एक अनोखा मेला है।

जो भी फँसा देख लो, उसके हाथ टका न धेला है।

*जैसी करनी वैसी भरनी, क्या खेल अजब ये खेला है ?*

*फँसा दिया जिस किसी भट्ट को, वो ही नहीं अकेला है।*


*मदन लाल अनंग*

द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।

*1-*  वैचारिक खोज बीन के आधार पर समसामयिक, तर्कसंगत और अकाट्य लेखन की प्रक्रिया *मध्यम मार्ग समन्वय समिति* के माध्यम से जारी  *2300 से अधिक लेख/रचनायें* सोशल मीडिया पर निरंतरता बनाये हुए हैं।

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