इतना मालूम होते हुए भी जंगली भैसे बनकर जी रहे है.जब शिकारीको शिकार की जरूरत होती है तो शिकारी अपने जालमे बडे आराम से शिकार को घसीट लेता है उसकी अक्लपर पर्दा डालकर. शिकारी की योजनाओंमे शिकार खुदही शिकार बन जाते है.कभी कभी बना लिए जाते है. और शिकार खुद ही खुदकी जालमें फंसते जाते है.इस लिए धारण किया भैसेंका भेष तन मन से हटा दो. "जो जैसा वेष धारण करेगा वो वैसा ही जीता रहेगा. और तो और अपने भविष्योंको भी वैसे ही जिलाएगा ". भिकारीपणसे (याचनाओंसे) बाज आओ, अपने आपको पहचानो. आजका अंतर्गत अराजक युध्द यह सांस्कृतीक सत्तानितिक युध्द है. जो सम्राट अशोक के मरणोपरांत भारतीय संविधान लागू होनेतक लढा गया है. और अब डाॅ. बाबासाहब आंबेडकरजीके नही होने के पश्चात लढा जा रहा है. यह बौध्द संस्कृति बनाम/ (विरुध्द) ब्राम्हण संसकृतीसह गुलाम संस्कृती (हिन एवम् दुराचारी=हिंदु शब्द बना है (गैरकानुनी अमान्यताप्राप्त फौज में इनका ही भरना अधिक रहता है इनका उपयोग कुटील दांव रचनेवाले कभी भी अपनी इप्सितताको साध्य करने के लिए इस्तमाल कर सकते है.)
अपने आपको हिन्दुस्थानी का गर्व करनेके ऐवजमें सिंधूस्थानी का गर्व हो. हमारे बाप जादाओ ने सिंधू नदी का जल पीकर बौध्दिकतापूर्ण, वीरतापूर्ण, शौर्यपूर्ण जीवन जीया है और अपने वंशोजोको भी जिलाया है. इसलिए हमे "सिंधु" इस विशेष शब्द के धारण का गर्व होना चाहिए. ना की गुलामी का संकेत देनेवाले "हिंदु"शब्दका .बौध्दोंकी मुल भूमी भारत है सिंधूस्थान है नाकी गुलामी को, हिनता को , दुराचारको सांकेतिकतासे बोधीत कराने वाले शब्द हिन्दुस्थानसे.आज सत्ता का संचालन करनेवाले ब्राम्हण संस्कृतीके लोग है वे अपने दिलोदिमागमे कभी भी सिंधू संस्कृती अपभ्रंश हिन्दु संस्कृती को अपनाऐंगे नही. बौध्द संस्कृती ही भारतीय संस्कृती है.और यह चला हुआ गनिमी सांस्कृतिक युध्द है जो औरोंके हाथो हिन्दुओंकी संख्या घटानेके लिए हिंन्दुओंपर दहशत फैलानेके लिए, उनकी मानसिकता का खच्चीकरण करनेके लिए खेली जा रही एक चाल है ताकी ब्राम्हण राज पणपता रहे.सांप भी मरे और लाठी भी ना टुटे. ये सत्तानितिक चाले खेली जा रही है.डा.बाबासाहब आंबेडकरजी और भारतीय संविधानका विरोध और अवमानना कुछ गुलामोंके माध्यमसे सत्ता चलाने वाला दल क्यों कर रहा इसके आडमे यह राज हो सकता है, नही, है.जागो सावधान हो जाओ गलत नेतृत्व ना करो.और ना स्विकारो.भेडिया धसान और भैसा फसान वृत्ती छोडो "कु-हाडीचा दांडा गवतास काळ" वृत्ती छोडो.तारिफ और लोभ के बहावमे बहना बंद कर दो.तैरना सिखो.और इसका मार्गदर्शन, कोई नही कर सकता, सिर्फ और सिर्फ सिवाय भारतीय संविधानके. सत्तासीन,भारतीय संविधानसे लाभ उठा रहे रहे और वंचित कहे जानेवाले,रहनेवाले भारतीय संविधानको दुर्लक्षित कर पाखंडी और पाखंड से घिर करकर खुदका अस्तित्व और अस्मिता खोते जा रहे है.यहां घटित हो रही घटनाए और कुछ नही है, गहरी नशेकी नींदमे सोए हुए को जख्म करने वाले चुहे का पता ही नही चलता और जब जागता है तो अपने आपकी दशापर भयभीत होता है, विभ्रमित होता है और अपने आपको कोसता है.इस लिए "कल करे सो आज कर आज करे सो अभी पल मे चिडिया चुग जाएगी खेत, बहुरी करेगा कभी" इस नौबतके लिए इसके जिम्मेवार कोई नही वह स्वयं है जो बहकावेमें आकर खुदकाही सर्वनाश करनेपर तुले है और साथ ही उक्त समाजका भी. खुबसुरती देखनेके लिए जो आइना दिखाया जा रहा उसमे उन्हे तुम विदुषक नजर आते हो भले तुम स्वयंके सौदर्यकी कितनी ही तारिफ कर लो लेकिन उनका अपना रुप देखनेका आईना अलग और वास्तविक है और उसीकी बगलमे विदुषकी छबी दिखाने वालाआईना है. जो प्रतिपक्षोंके लिए है.जो स्वयंही अपने तारीफ के पुल बांधकर स्वयंपर ही मोहीत हो स्वयं को ही कमजोर कर रहे है.और बने रहनेमें अपनी शान समझ रहे है. असलमें आजकी सत्ताके लिए यहांका सत्तावर्णीय दल /समाज को छोडा जाय तो बहुतादायोंपर विदुषकी वस्त्र परिधान कराया नजर आता है.भिखारीका वस्त्र धारण करोगे तो कभी भी खुदकी कुर्सीपर बैठनेकी चाह नही करोगे.और न रखोगे.यह भिखारी मानसिकता है.औरोकी तारीफ करोगे लेकिन अपने आपको उस लायक नही समझोगे.खुदकी कुर्सी औरोंको देकर खुद नीचे बैठोगे बस ऐसी ही मानसिकता तैयार कि गयी है,बनायी जा रही है, "भिखारी कुर्सीपर नही बैठ सकता." यह आज की सत्ताके माध्यमसे प्रशिक्षण शुरू है. खुद जान जाओ. आने वाले भविष्यको भांप लो और सावधान हो जाओ.
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