*~~~मौसम से घबरा कर ऐसे~~~*
*~~~~दूर कहाँ तक भागोगे~~~~*
*फूल बिखेरे बहुत चमन में, कौन इसे ले पायेगा ?*
*खुशबू अजब निराली इसकी, किस किस को दे पायेगा ?*
जैसा देखा वही लिखा है, इसमें कोई कला नहीं।
किया प्रयास खूब जी भर कर, पर टल पायी बला नहीं।
*जो मोती हैं चुनो उन्हें ही, शायद उनसे काम चले।*
*सुबह जिन्दगी प्यार भरी हो, और किसी की शाम जले।*
हमने अपना तन मन दे कर, सींचा इसी बगीचे को।
किसने बोला ऊपर चढ़ कर, नहीं झाँकना नीचे को।
*अब तो हवा ठहरती पल भर, खुशबू ले कर जाती है।*
*जो आता है बीच राह में, ये सबको महकाती है।*
नये नये जो फूल खिले हैं, सराबोर कर देना है।
जहाँ जहाँ तक हवा चले, सबकी झोली भर देना है।
*ये सागर है इसमें गागर, खाली खाली लगती है।*
*भर जाने पर यही जान लो, अजब निराली लगती है।*
मौसम से घबरा कर ऐसे, दूर कहाँ तक भागोगे ?
अगर भटक कर लटक गये तो, नहीं कभी भी जागोगे।
*अभी चमन में फूल बहुत हैं, जागो और निहारो तो।*
*जगह जगह पर घूम घूम कर, उनको कुछ पुचकारो तो।*
गुलशन सारा महक उठेगा, बेला और चमेली का।
जैसे यौवन महका करता दुल्हिन नई नवेली का।
*सावन का सावन प्यासा है, कैसे प्यास बुझायेगा ?*
*ढूँढ़ो भव पतवार कहाँ है, नाव कौन खे पायेगा ?*
*फूल बिखेरे बहुत चमन में, कौन इसे ले पायेगा ?*
*खुशबू अजब निराली इसकी, किस किस को दे पायेगा ?*
*मदन लाल अनंग*
द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।
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