*~~~इक्कीस बार क्या हो पाया~~~* *~~~इसका भी उनको ध्यान रहे~~* *दिग्भ्रमित किया है लोगों को, कुछ छोरों और जवानों को।* *जब सारा आलम डूब गया, अब आग लगे अरमानों को।* हम सोच रहे थे नई फ़सल, भारत भर में लहरायेगी। था नहीं पता नादान बहुत, ये मिथकों में भहरायेगी। *भेड़ों की चाल देख ली है, आगे वालों की अनुगामी।* *है सोच न पीछे वालों में, वे देख सके न कुछ खामी।* आचरण उजड्डों जैसे हैं, है पड़ा अकल पर ताला ही। अज्ञान भरा है नस नस में, होगा अन्दाज निराला ही। *जो तोड़ रहे हैं शब्दों को, जो बदल रहे हैं परिभाषा।* *उनके मन की हालत जानो, बदहाल हुयी उनकी भाषा।* तू तू मैं मैं हर ओर यहाँ, तूफान उठा है बातों में। सब चक्रवात में उलझे हैं, कंट्रोल नहीं जज्बातों में। *सरकार निकम्मी ही समझो, हालत उसकी बेदीन हुयी।* *पहले चाहे जैसी भी हो, अब बिगड़ी हुयी मशीन हुयी।* ऐसा ही जाल बिछाया है, जिसका है कोई अन्त नहीं। वैरागिन संध्या सिमट रही, जैसे हो उसका कन्त नहीं। *तलवार म्यान से बाहर है, पर हुनर नहीं रखने का है।* *कुछ परशुराम ने चखा दिया, अब और मजा चखने का है।* था धनुष वही टंकार वही, पर युद्ध रुका होते होते। थी शक्ल बड़ी पर ...